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Home फिल्म/वेब रिव्यू

रिव्यू-सिक्के का तीसरा पहलू दिखाती ‘बदला’

Deepak Dua by Deepak Dua
2019/03/09
in फिल्म/वेब रिव्यू
0
रिव्यू-सिक्के का तीसरा पहलू दिखाती ‘बदला’
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-दीपक दुआ… (This review is featured in IMDb Critics Reviews)

एक औरत और उसका प्रेमी मज़े करके लौट रहे हैं। रास्ते में एक हादसा होता है। पुलिस बुलाई तो दोनों के घरों में पता चला जाएगा। सो, उसे दुनिया से छुपाने के लिए यह एक झूठ गढ़ते हैं, फिर दूसरा, तीसरा…। तभी प्रेमी का खून हो जाता है और यह औरत उसे मारने के इल्ज़ाम में पकड़ी जाती है। लेकिन इसका कहना है कि वह बेकसूर है। एक नामी वकील को वह सारी कहानी सुनाती है। परत-दर-परत सच सामने आने लगता है। क्या है सच? क्या उस हादसे और इस खून में कोई नाता है? और यहां कौन, किससे बदला ले रहा है? किस बात का बदला?

कहते हैं कि एक सस्पैंस थ्रिलर में आप वो नहीं देखते जो देखना चाहते हैं बल्कि वो देखते हैं जो एक लेखक या निर्देशक आपको दिखाना चाहता है। अक्सर इस किस्म की कहानियों में लेखक-निर्देशक आपको अपने मनचाहे रास्ते पर ले जाते हैं और आप न चाहते हुए भी उनकी दिखाई गलियों में उलझ कर रह जाते हैं। लेकिन यहां ऐसा नहीं है। एक स्पेनिश फिल्म के इस ऑफिशियल रीमेक में सुजॉय घोष अपनी स्क्रिप्ट को लगातार रोचक बनाए रखते हैं और ज़रूरी सस्पैंस के साथ-साथ देखने वालों की दिमागी कसरत का सामान भी तैयार रखते हैं। एक बंद कमरे में इस औरत (तापसी पन्नू) और उसके वकील (अमिताभ बच्चन) की लंबी बातचीत के दौरान कई बार ऐसा लगता है कि जो सुनाया-दिखाया जा रहा है, वही सच है। अचानक कुछ और सच लगने लगता है। फिर कुछ तीसरा ही सच सामने आता है।

‘वो मूर्ख होता है जो सिर्फ सच को ही जानता है, पर सच और झूठ के फर्क को नहीं जानता।’ ‘बदला लेना हर बार सही नहीं होता, लेकिन माफ कर देना भी हर बार सही नहीं होता।’ ‘सच वही होता है जिसे साबित किया जा सके।’ ‘क्या मैं वही 6 देख रहा हूं जो तुमने मुझे दिखाया या वो 9 जो मुझे देखना चाहिए था?’ जैसे संवादों के साथ-साथ फिल्म में बार-बार महाभारत के संर्दभों का इस्तेमाल किया गया है जो इसे भारतीय दर्शकों से जोड़ता है। लेकिन फिल्म कमियों से भी अछूती नहीं है। एक कमी तो यही है कि यह कहानी एक विदेशी मुल्क में घटती है। बेहतर होता कि इसे भारत के किसी शहर में स्थित किया जाता। ‘कहानी’ बना चुके सुजॉय घोष वैसे भी अपनी कहानियों में शहर को भी किरदार बना देते हैं। लेकिन उनका यह जादू स्कॉटलैंड में नहीं चल पाया, मुमकिन है भारत में चल जाता। दूसरी कमी रही इसमें कायदे के सहायक कलाकारों को न लिया जाना। तापसी के प्रेमी के किरदार में कोई मंजा हुआ अभिनेता ज़्यादा असर छोड़ता। मानव कौल जैसे टेलेंटिड कलाकार को कायदे का रोल ही नहीं मिल पाया। अमिताभ अपनी मौजूदगी से ही माहौल गर्मा देते हैं। तापसी अपने किरदार की ज़रूरतों को समझ कर उसे अच्छे से निभाती हैं। अमृता सिंह प्रभावी रहीं। उनके पति के किरदार को ज़्यादा तवज्जो मिलनी चाहिए थी।

कहीं-कहीं फिल्म थोड़ी रूखी लगती है। लगता है, कुछ और ड्रामा होना चाहिए था। फिल्म के नाम और तापसी-अमिताभ की बातचीत से इसकी कहानी के हश्र का पहले से ही अहसास होने लगता है। बातचीत से पहले तापसी एक रिकॉर्डर ऑन करती है, उसका बाद में कोई ज़िक्र ही नहीं होता। अंत में एक राज़ खुलता है तो वह ‘फिल्मी-सा’ लगता है। सुजॉय इसे ‘कहानी 3’ के नाम से लाते तो यह और असरदार हो सकती थी। सस्पैंस कहानियां पसंद करने वालों को इसे ज़रूर देखना चाहिए। कहीं न कहीं यह फिल्म विवाहेत्तर संबंध रखने वालों को चेताती भी है। और हां, फिल्म के दौरान वॉशरूम जाने, पॉपकॉर्न खाने या मोबाइल चैक करने की गलती करके अगर आपने एक भी सीन मिस किया तो फिर बिखरे धागे पकड़ना मुश्किल हो जाएगा।

अपनी रेटिंग-तीन स्टार

Release Date-08 March, 2019

(दीपक दुआ फिल्म समीक्षक व पत्रकार हैं। 1993 से फिल्म-पत्रकारिता में सक्रिय। मिज़ाज से घुमक्कड़। ‘सिनेयात्रा डॉट कॉम’ (www.cineyatra.com) के अलावा विभिन्न समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, न्यूज पोर्टल आदि के लिए नियमित लिखने वाले दीपक ‘फिल्म क्रिटिक्स गिल्ड’ के सदस्य हैं और रेडियो व टी.वी. से भी जुड़े हुए हैं।)

Tags: amitabh bachchanamrita singhbadla reviewmanav kaulsujoy ghoshtaapsee pannu
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