• Home
  • Film Review
  • Book Review
  • Yatra
  • Yaden
  • Vividh
  • About Us
CineYatra
Advertisement
  • होम
  • फिल्म/वेब रिव्यू
  • बुक-रिव्यू
  • यात्रा
  • यादें
  • विविध
  • हमारे बारे में
No Result
View All Result
  • होम
  • फिल्म/वेब रिव्यू
  • बुक-रिव्यू
  • यात्रा
  • यादें
  • विविध
  • हमारे बारे में
No Result
View All Result
CineYatra
No Result
View All Result
ADVERTISEMENT
Home फिल्म/वेब रिव्यू

रिव्यू : कतरा-कतरा सुलगती ‘फायरब्रांड’

Deepak Dua by Deepak Dua
2019/03/04
in फिल्म/वेब रिव्यू
0
रिव्यू : कतरा-कतरा सुलगती ‘फायरब्रांड’
Share on FacebookShare on TwitterShare on Whatsapp

-दीपक दुआ… (This review is featured in IMDb Critics Reviews)

किशोरावस्था में बलात्कार का शिकार हुई एक औरत आखिर कैसे जीती होगी? क्या वह सब कुछ भूल चुकी होगी, या उस आदमी से बदला लेने के लिए तड़पती होगी, या फिर उस दर्द को रोज़ जीती-महसूस करती होगी? इस कहानी की नायिका सुनंदा के साथ स्कूली-दिनों में ऐसा ही हुआ था। आज वह शहर की तेज़तर्रार वकील है-एकदम फायरब्रांड। तलाक के मुकदमों में अपनी मुवक्किल को इंसाफ दिलाने के लिए मशहूर। लेकिन रोज़ाना रात को सपने में उसका बलात्कारी आता है, उसके साथ ज़बर्दस्ती करता है। यहां तक कि अपने पति के साथ वह बिस्तर में भी सहज नहीं रह पाती। सुलग रही है वह भीतर ही भीतर। कैसे जीतती है वह खुद अपना ही केस, कैसे दिलवा पाती है खुद को इंसाफ, यही इसकी कहानी है।

सुनंदा कोई बेचारी औरत नहीं है। न ही वह किसी की हमदर्दी चाहती है। दफ्तर या कोर्ट-रूम में होती है तो औरतों को उससे उम्मीदें होती हैं, खुद अपने साथ हुई नाइंसाफी को अपनी ताकत में तब्दील कर वह दूसरों को इंसाफ दिलाती है। बावजूद इसके वह अपने उस ज़ख्म को नहीं भूल पाती। मनोचिकित्सकों की मदद के बावजूद वह खुद से हारती रहती है जबकि उसका पति माधव हर कदम पर उसका साथ देता है। कहानी में एक पति-पत्नी के तलाक का केस भी समानांतर चलता है। इस केस में सुनंदा हार जाती है, या कहें कि जान-बूझ कर ठीक से नहीं लड़ती क्योंकि उसे लगता है कि इस बार सच उसकी क्लाइंट की तरफ नहीं बल्कि उसके पति की तरफ है। उसके पति की ही मदद से वह अपनी पीड़ा से भी उबरती है। मगर कैसे?

अरुणा राजे को इस तरह की कहानियां कहने और बनाने का हुनर बखूबी आता है। अपनी इस फिल्म में भी वह पूरी महारत के साथ इंसानी रिश्तों और जज़्बातों को साधती हुई नज़र आती हैं। एक बलात्कार-पीड़ित को बेचारी, दबी-कुचली हुई अबला न दिखा कर अपने और दूसरों के लिए लड़ते हुए दिखाना, उसके पति को हर कदम उसका साथ देते हुए दिखाना और जिस तरह से यह औरत अपने अतीत को झटकती है, लगता ही नहीं कि यह कोई फिल्म है। ज़िंदगी के पन्ने कुछ ऐसे ही उलटे-पलटे जाते हैं। सलाम उन प्रियंका चोपड़ा को भी जो लगातार इस तरह का सिनेमा बना रही हैं। मराठी की ‘वेंटिलेटर’ के बाद अब मराठी में ही उनका यह नया कदम काबिले-तारीफ है। कहानी में कुछ एक सिरे खुले न छोड़े जाते तो यह फिल्म और कस कर बांध सकती थी।

सुनंदा के किरदार को उषा जाधव अपनी प्रतिभा से एक अलग ऊंचाई देती हैं। उनके पास दिखाने को नाटकीय इमोशंस नहीं, बोलने को लंबे संवाद नहीं, लेकिन अपनी मौजूदगी भर से वह दर्शक को अपने होने का अहसास करा देती हैं। फिल्म खत्म होने के बाद उषा दिल में जगह बना लेती हैं। गिरीश कुलकर्णी माधव के किरदार की विशेषताओं को आत्मसात करते दिखाई देते हैं। सचिन खेडेकर, राजेश्वरी सचदेव, रुशद राणा और बेबी मृणाल ओक का काम भी सराहनीय रहा है। इस फिल्म की धीमी रफ्तार, इसके मीठे गीत इसे हौले-हौले दिल में उतारते हैं। कतरा-कतरा सुलगती सुनंदा की यह कहानी आपको कब प्यारी लगने लगती है, पता ही नहीं चलता। नेटफ्लिक्स के खज़ाने में ‘वन्स अगेन’ के बाद यह एक और हीरा जुड़ा है।

अपनी रेटिंग-साढ़े तीन स्टार

Release Date-22 February, 2019

(दीपक दुआ फिल्म समीक्षक व पत्रकार हैं। 1993 से फिल्म-पत्रकारिता में सक्रिय। मिज़ाज से घुमक्कड़। ‘सिनेयात्रा डॉट कॉम’ (www.cineyatra.com) के अलावा विभिन्न समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, न्यूज पोर्टल आदि के लिए नियमित लिखने वाले दीपक ‘फिल्म क्रिटिक्स गिल्ड’ के सदस्य हैं और रेडियो व टी.वी. से भी जुड़े हुए हैं।)

Tags: aruna rajefirebrand reviewgirish kulkarnimarathi moviemrunal oakNetflixpriyanka choprarushad ranasachin khedekarusha jadhav
ADVERTISEMENT
Previous Post

रिव्यू-सेफ गेम है ‘लुका छुपी’

Next Post

रिव्यू-सिक्के का तीसरा पहलू दिखाती ‘बदला’

Related Posts

रिव्यू-सिंगल शॉट में कमाल करती ‘कृष्णा अर्जुन’
CineYatra

रिव्यू-सिंगल शॉट में कमाल करती ‘कृष्णा अर्जुन’

रिव्यू-चिकन करी का मज़ा ‘नाले राजा कोली माजा’
CineYatra

रिव्यू-चिकन करी का मज़ा ‘नाले राजा कोली माजा’

रिव्यू-मज़ा, मस्ती, मैसेज ‘जय माता जी-लैट्स रॉक’ में
CineYatra

रिव्यू-मज़ा, मस्ती, मैसेज ‘जय माता जी-लैट्स रॉक’ में

वेब-रिव्यू : झोला छाप लिखाई ‘ग्राम चिकित्सालय’ की
CineYatra

वेब-रिव्यू : झोला छाप लिखाई ‘ग्राम चिकित्सालय’ की

रिव्यू-अरमानों पर पड़ी ‘रेड 2’
CineYatra

रिव्यू-अरमानों पर पड़ी ‘रेड 2’

रिव्यू-ईमानदारी की कीमत चुकाती ‘कॉस्ताव’
फिल्म/वेब रिव्यू

रिव्यू-ईमानदारी की कीमत चुकाती ‘कॉस्ताव’

Next Post
रिव्यू-सिक्के का तीसरा पहलू दिखाती ‘बदला’

रिव्यू-सिक्के का तीसरा पहलू दिखाती ‘बदला’

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

  • होम
  • फिल्म/वेब रिव्यू
  • बुक-रिव्यू
  • यात्रा
  • यादें
  • विविध
  • हमारे बारे में
संपर्क – dua3792@yahoo.com

© 2021 CineYatra - Design & Developed By Beat of Life Entertainment

No Result
View All Result
  • होम
  • फिल्म/वेब रिव्यू
  • बुक-रिव्यू
  • यात्रा
  • यादें
  • विविध
  • हमारे बारे में

© 2021 CineYatra - Design & Developed By Beat of Life Entertainment