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Home फिल्म/वेब रिव्यू

रिव्यू-सेफ गेम है ‘लुका छुपी’

Deepak Dua by Deepak Dua
2019/03/03
in फिल्म/वेब रिव्यू
0
रिव्यू-सेफ गेम है ‘लुका छुपी’
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-दीपक दुआ… (This review is featured in IMDb Critics Reviews)

मथुरा के त्रिवेदी जी की बेटी रश्मि को शुक्ला जी के बेटे गुड्डू से शादी करने से पहले लिव-इन में रहना है ताकि वे दोनों एक-दूसरे को अच्छे-से जान-समझ सकें। लेकिन दिक्कत यह है कि त्रिवेदी जी ठहरे ‘संस्कृति रक्षा मंच’ के मुखिया। प्यार-मोहब्बत करने वाले लौंडे-लौंडियों के मुंह काले करके अपनी संस्कृति को ‘भ्रष्ट’ होने से बचाने का काम करते हैगे जे लोग। गुड्डू और रश्मि दूसरे शहर में जाकर शादीशुदा होने का नाटक करके साथ रहने लगे। घरवालों को पता चला तो रश्मि की डोली गुड्डू के घर पहुंचा दी गई। लेकिन ये दोनों तो शादीशुदा हैं ही नहीं। तो शुरू हुई इनकी लुका छुपी घर वालों के साथ, समाज के साथ और खुद अपने साथ।
लिव-इन यानी बिना शादी के साथ रहने को भले ही कानून ने सही मान लिया हो, बड़े शहरों में ढेरों जोड़े लिव-इन में रह रहे हों लेकिन अभी भी भारतीय समाज और परिवारों ने इसे नहीं स्वीकारा है। ऐसे बदलते माहौल में मथुरा जैसे एक छोटे और परंपरावादी शहर के दो पुराने ख्यालों वाले परिवारों के युवाओं की इस कहानी को लिखना रोहन शंकर के लिए साहसिक काम रहा होगा और उन्होंने इसे बखूबी किया भी है। फिल्म सही तरीके से अपनी बात कहती है और उसे एक संतुलन के साथ साधती हुई चलती है ताकि लिव-इन और शादी, दोनों के पक्षधरों को खुश कर सके। ऊपर से इस पर जो कॉमेडी का हल्का-फुल्का लेप लगाया गया है वह इसे बोझिल नहीं होने देता। लेकिन दिक्कत यह है कि यह फिल्म वर्जनाएं नहीं तोड़ती। ये साहस की बात तो करती है, लेकिन खुद साहस नहीं दिखा पाती। ये कोई नया पैमाना नहीं बनाती। मुख्यधारा के सिनेमा में शायद इससे ज़्यादा दुस्साहस दिखा पाना इसकी व्यावसायिक सेहत के हानिकारक होता।

सबसे पहले तो यह लिव-इन की सिर्फ मिठास दिखाती है, उसकी अड़चनों को नहीं। गुड्डू-रश्मि बीस दिन तक लिव-इन में रहते हैं लेकिन ये दोनों एक-दूसरे को कैसे ‘जानते-समझते’ हैं, फिल्म नहीं बताती। इतना प्यार तो असल पति-पत्नी के बीच भी बीस दिन के हनीमून में नहीं होता। और क्या होता यदि बीस दिन के बाद ये लोग एक-दूजे के साथ पूरी ज़िंदगी न रहना चाहते? लिव-इन में रहने के दौरान माथे पर (सिंदूर का) एक टीका लगाना और गले में (मंगलसूत्र की) एक माला पहनना जिस रश्मि को नहीं अखरता, उसी लड़की को बिन-ब्याही दुल्हन बनने के बाद ये दोनों चीज़ें वज़नी लगने लगती हैं। ज़ाहिर है कि फिल्म बनाने वाले शादी की अवधारणा को लिव-इन से ऊपर मान कर चल रहे हैं। फिर लड़के-लड़की, दोनों को एक ही धर्म, एक ही जाति का दिखाने से और लिव-इन में रहने वाले एक फिल्म स्टार को मुसलमान दिखाने से साफ लगता है कि लेखक-निर्देशक सेफ-गेम खेल रहे हैं। ये लोग वर्जनाओं को तोड़ने की बात तो कर रहे हैं लेकिन एक ऐसे बंद दायरे में रह कर, जहां कोई इन पर उंगली तक न उठा सके।

फिल्म की नमकीन पटकथा और चुटीले संवाद आपको हंसाते-गुदगुदाते हैं। कहीं-कहीं ‘ऐसे क्या देख रहे हो, दूसरे ग्रह से नहीं आया हूं, सिर्फ मुसलमान ही हूं’ जैसे मारक संवाद भी हैं इसमें। सबसे उम्दा हैं फिल्म के किरदार। इधर कुछ समय से हिन्दी पट्टी की ऐसी कहानियों में रंग-बिरंगे किरदारों के ज़रिए रौनक-मेला जमाने का काम फिल्मकार बखूबी करने लगे हैं। छोटे शहरों के इन किरदारों, इनके नाम, बोली, वेशभूषा, रहन-सहन, सोच आदि की मदद से फिल्म एक अपना-सा माहौल रचती है जो सुहाना लगता है। अपनी इस पहली हिन्दी फिल्म में निर्देशक लक्ष्मण उटेकर टिकट-खिड़की को ध्यान में रख कर चलते नज़र आते हैं। दृश्यों के बैकग्राउंड में पुराने फिल्मी गीतों का सटीक प्रयोग सराहनीय रहा है।

कार्तिक आर्यन आसानी से गुड्डू के किरदार में ढल जाते हैं। कृति सैनन रश्मि के अपेक्षाकृत हल्के किरदार को भी कायदे से निभाती हैं। गुड्डू के दोस्त अब्बास के रूप में अपारशक्ति खुराना उस दौर की याद दिलाते हैं जब हीरो का एक दोस्त हर फिल्म में रंग जमाने के लिए मौजूद रहता था। विनय पाठक, अतुल श्रीवास्तव, अलका अमीन, नेहा सराफ जैसे किरदार रंगत बिखेरते हैं। पंकज त्रिपाठी को बड़ा-ही रंगीला किरदार और उतनी ही रंगीन पोशाकें मिलीं। एक कमज़ोर किरदार को कैसे अपनी अदाकारी से उठाया जाता है, पंकज सिखाते हैं। फिल्म को सेफ-गेम बनाने की एक मिसाल इसका गीत-संगीत भी है। ब्रज-भूमि मथुरा के ब्राह्मण-परिवारों की इस कहानी में हर वक्त पंजाबी में हिट हो चुके गाने बजते हैं। ऐसे तो ‘संस्कृति’ की रक्षा न हो सकेगी भैया। खैर, हल्के-फुल्के टाइमपास मनोरंजन के लिए फिल्म बुरी न है, देख लेयो।

अपनी रेटिंग-तीन स्टार

Release Date-01 March, 2019

(दीपक दुआ फिल्म समीक्षक व पत्रकार हैं। 1993 से फिल्म-पत्रकारिता में सक्रिय। मिज़ाज से घुमक्कड़। ‘सिनेयात्रा डॉट कॉम’ (www.cineyatra.com) के अलावा विभिन्न समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, न्यूज पोर्टल आदि के लिए नियमित लिखने वाले दीपक ‘फिल्म क्रिटिक्स गिल्ड’ के सदस्य हैं और रेडियो व टी.वी. से भी जुड़े हुए हैं।)

Tags: alka aminaparshakti khuranaatul shrivastavakartik aaryankriti sanonlaxman utekarluka chuppi reviewpankaj tripathivinay pathak
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