• Home
  • Film Review
  • Book Review
  • Yatra
  • Yaden
  • Vividh
  • About Us
CineYatra
Advertisement
  • होम
  • फिल्म/वेब रिव्यू
  • बुक-रिव्यू
  • यात्रा
  • यादें
  • विविध
  • हमारे बारे में
No Result
View All Result
  • होम
  • फिल्म/वेब रिव्यू
  • बुक-रिव्यू
  • यात्रा
  • यादें
  • विविध
  • हमारे बारे में
No Result
View All Result
CineYatra
No Result
View All Result
ADVERTISEMENT
Home फिल्म/वेब रिव्यू

रिव्यू-उम्मीदों की किश्ती पर सवार ‘हामिद’

Deepak Dua by Deepak Dua
2019/03/13
in फिल्म/वेब रिव्यू
0
रिव्यू-उम्मीदों की किश्ती पर सवार ‘हामिद’
Share on FacebookShare on TwitterShare on Whatsapp

-दीपक दुआ… (This review is featured in IMDb Critics Reviews)
‘अगर बच्चों के उसूलों पर चले, तो दुनिया कब की जन्नत हो गई होती…।

इस फिल्म का यह संवाद फिल्म खत्म होने के बाद भी याद रह जाता है। दिल के किसी कोने में यह अहसास भी जगता है कि क्यों नहीं यह दुनिया बच्चों के हिसाब से चलती? क्यों नहीं सब मासूम हो जाते? क्यों नहीं हम बीते ज़ख्मों को भुला कर आगे बढ़ जाते?

कहने को इस फिल्म में धरती के जन्नत कहे जाने वाले कश्मीर की मौजूदा तस्वीर के सारे रंग हैं। सुरक्षा बलों पर पत्थर फेंकते युवा, आज़ादी की मांग करते लोग, उनके लिखे आज़ादी के नारे पर मूतते सुरक्षा बल, बेहद तनाव में अपनी ड्यूटी बजाते सिपाही, लापता हो गए कश्मीरी मर्दों को तलाशती उनकी ‘अधूरी बेवाएं’ (हाफ विडो), कश्मीरियों नौनिहालों का ब्रेनवॉश करने में जुटे लोग, और इन सबके बीच में रोज़मर्रा की ज़िंदगी जीते आम कश्मीरी। लेकिन यह कहानी इनकी नहीं है। यह हामिद की कहानी है। उसकी मां इशरत की कहानी है। उसके गायब हो चुके पिता रहमत की कहानी है। रहमत, जो नाव बनाने का काम करता था। शायरी भी लिखता था। एक रात वह घर से निकला और लापता हो गया। अब इशरत पुलिस-स्टेशन के चक्कर काटती है और किसी तरह से हामिद को पालती है। मासूम हामिद को उसके पिता का यूं चले जाना बहुत खलता है। उसके पिता ने उसे कहा था कि 786 अल्लाह का नंबर होता है। वह इन अंकों वाला एक फोन नंबर डायल करता है जो वहीं के एक सिपाही के फोन में जा बजता है। हामिद को पूरा यकीन है कि उसकी बात अल्लाह से हो रही है। फिल्म का अंत मार्मिक है और सुखद भी। हामिद के पिता ने ही उसे बताया था कि जब कोई अल्लाह को प्यारा हो जाता है तो उसे इसलिए दफनाते हैं ताकि उसे भुलाया जा सके। जब हामिद को अहसास हो जाता है कि उसके पिता अब वापस नहीं आएंगे तो वह उनसे जुड़ी चीज़ें ज़मीन में दफना देता है और उस किश्ती को पूरा करने में जुट जाता है जो उसके पिता अधूरी छोड़ कर अल्लाह के पास जन्नत की मरम्मत करने के लिए चले गए थे।

हामिद के रोल में अरशद रेशी अपनी मासूमियत और संवाद अदायगी से दिल जीतते हैं। इशरत बनी रसिका दुग्गल बेहद प्रभावी रही हैं और रहमत के छोटे-से किरदार में सुमित कौल अपना असर छोड़ते हैं। सिपाही बने विकास कुमार अपने किरदार में समाए दिखते हैं। फिल्म के संगीत में मिठास है और कैमरा कश्मीर की खूबसूरती के साथ-साथ वहां के तनाव और वहां की उदासियों को भी बखूबी उकेरता है। ऐजाज़ खान का निर्देशन परिपक्वता लिए हुए है।

फिल्म की रफ्तार धीमी है। कई जगह यह खलने भी लगती है। लेकिन फिर अहसास होता है कि शायद इस तरह की कहानी के लिए यही रफ्तार सही है। मसाला मनोरंजन के मुरीदों के लिए नहीं है यह फिल्म। फिल्म में कुछ सीन गैरज़रूरी और लंबे हैं। इसका नाम भी अपने-आप में अधूरा-सा लगता है। लेकिन फिल्म एक साफ संदेश दे जाती है कि बिना बीती बातों को दफनाए आगे के सफर पर नहीं निकला जा सकता। उम्मीदों की किश्ती को पानी में तैराना है तो अतीत का बोझा उतार फेंकना होगा।

अपनी रेटिंग-साढ़े तीन स्टार

Release Date-15 March, 2019

(दीपक दुआ फिल्म समीक्षक व पत्रकार हैं। 1993 से फिल्म-पत्रकारिता में सक्रिय। मिज़ाज से घुमक्कड़। ‘सिनेयात्रा डॉट कॉम’ (www.cineyatra.com) के अलावा विभिन्न समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, न्यूज पोर्टल आदि के लिए नियमित लिखने वाले दीपक ‘फिल्म क्रिटिक्स गिल्ड’ के सदस्य हैं और रेडियो व टी.वी. से भी जुड़े हुए हैं।)

Tags: aijaz khanhamid reviewrasika dugalsumit kaulTalha Arshad Reshivikas kumar
ADVERTISEMENT
Previous Post

रिव्यू-सिक्के का तीसरा पहलू दिखाती ‘बदला’

Next Post

रिव्यू-भटकी हुई फिल्म ‘मेरे प्यारे प्राइम मिनिस्टर’

Related Posts

रिव्यू-चैनसुख और नैनसुख देती ‘हाउसफुल 5’
CineYatra

रिव्यू-चैनसुख और नैनसुख देती ‘हाउसफुल 5’

रिव्यू-भव्यता से ठगती है ‘ठग लाइफ’
CineYatra

रिव्यू-भव्यता से ठगती है ‘ठग लाइफ’

रिव्यू-‘स्टोलन’ चैन चुराती है मगर…
CineYatra

रिव्यू-‘स्टोलन’ चैन चुराती है मगर…

रिव्यू-सपनों के घोंसले में ख्वाहिशों की ‘चिड़िया’
CineYatra

रिव्यू-सपनों के घोंसले में ख्वाहिशों की ‘चिड़िया’

रिव्यू-दिल्ली की जुदा सूरत दिखाती ‘दिल्ली डार्क’
फिल्म/वेब रिव्यू

रिव्यू-दिल्ली की जुदा सूरत दिखाती ‘दिल्ली डार्क’

रिव्यू-लप्पूझन्ना फिल्म है ‘भूल चूक माफ’
फिल्म/वेब रिव्यू

रिव्यू-लप्पूझन्ना फिल्म है ‘भूल चूक माफ’

Next Post
रिव्यू-भटकी हुई फिल्म ‘मेरे प्यारे प्राइम मिनिस्टर’

रिव्यू-भटकी हुई फिल्म ‘मेरे प्यारे प्राइम मिनिस्टर’

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

  • होम
  • फिल्म/वेब रिव्यू
  • बुक-रिव्यू
  • यात्रा
  • यादें
  • विविध
  • हमारे बारे में
संपर्क – dua3792@yahoo.com

© 2021 CineYatra - Design & Developed By Beat of Life Entertainment

No Result
View All Result
  • होम
  • फिल्म/वेब रिव्यू
  • बुक-रिव्यू
  • यात्रा
  • यादें
  • विविध
  • हमारे बारे में

© 2021 CineYatra - Design & Developed By Beat of Life Entertainment