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Home फिल्म/वेब रिव्यू

रिव्यू-भटकी हुई फिल्म ‘मेरे प्यारे प्राइम मिनिस्टर’

Deepak Dua by Deepak Dua
2019/03/13
in फिल्म/वेब रिव्यू
0
रिव्यू-भटकी हुई फिल्म ‘मेरे प्यारे प्राइम मिनिस्टर’
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-दीपक दुआ… (This review is featured in IMDb Critics Reviews)
मुंबई की एक झोंपड़पट्टी में रहने वाले हज़ारों लोगों की बस्ती में ‘हल्के’ होने के लिए कोई टॉयलेट नहीं है। औरतें रोज़ मुंह अंधेरे डब्बे उठा कर एक साथ जाती हैं। एक दिन सरगम अकेली जाती है और कोई उसका रेप कर देता है। सरगम का बेटा और कोई रास्ता न देख दिल्ली जाकर प्रधानमंत्री को अपनी चिट्ठी देता है। कुछ दिन बाद उसकी बस्ती में टॉयलेट बन जाता है।

भई वाह, कितनी सीधी, सरल, सुंदर, कहानी है। लेकिन इसी कहानी को आप पर्दे पर देखिए तो लगता है कि डायरेक्टर ने सीधे-सीधे बात कहने की बजाय जलेबियां क्यों बना दीं? ओह सॉरी, ‘शिट’ वाली फिल्म में मिठाइयों की बात नहीं।

ज़रा इस बस्ती के लोगों की ज़िंदगी देखिए। हज़ारों लोग रोज़ाना बिना किसी शिकायत के खुले में ‘हल्के’ होते हैं। बिना किसी शिकायत के वॉटर माफिया को पैसे देकर पानी भरते हैं। बिना किसी शिकायत के दड़बे जैसे घरों में हंसते-गाते रहते हैं। किसी को कोई वांदा नईं, कोई दर्द नईं। सरगम के साथ रेप होता है तो बस दो मिनट के लिए चंद आवाज़ें उठती हैं, फिर से सब पुराने ढर्रे पर आ जाता है। कोई आंदोलित नहीं होता। सिर्फ उसके बेटे को लगता है कि उसकी मां के लिए टॉयलेट होना चाहिए। इसके लिए वह अपने दोस्तों के साथ कोशिशें करने लगता है। यानी बड़ी उम्र वालों को अभी भी टॉयलेट की कोई ज़रूरत महसूस नहीं होती। ये बच्चे भी मज़े-मज़े में दिल्ली होकर लौट आते हैं। उतने ही मज़े-मजे़ में इनकी चिट्ठी पर एक्शन भी हो जाता है। वाह रे, मेरे प्यारे प्राइम मिनिस्टर…!

फिल्म को ‘फिल्मी’ बनाने के लिए इसमें काफी कुछ है। कंडोम से लेकर डब्बा-पार्टी वाली औरतों की सैक्स-टॉक तक। लेकिन ये सब इस कहानी में रचा-बसा नहीं, जबरन घुसेड़ा गया लगता है। सबसे बड़ी बात तो यह कि फिल्म जो कहना चाहती है, वही कायदे से नहीं कह पाती। हां, कैमरे की नज़र से बस्ती के रंग बखूबी दिखाती है। सरगम बनीं अंजलि पाटिल प्रभावित करती है। राबिया बनीं रसिका अगाशे (यह अभिनेता मौहम्मद ज़ीशान अय्यूब की पत्नी हैं) भी जंचती हैं। एक्टिंग तो बाकी सब की भी अच्छी है और सरगम के बेटे कन्हैया बने ओम कनोजिया की भी लेकिन यह बच्चा जिस तरह से साफ ज़ुबान बोलता है, वह सहज नहीं लगती। गीत-संगीत इसे सहारा नहीं दे पाता।

और हां, इस फिल्म का इसके नाम से कोई ताल्लुक नहीं दिखता। सच तो यह है कि इस फिल्म का इसके विषय से भी ताल्लुक नहीं दिखता। फिल्म का ट्रेलर बताता है कि यह फिल्म ‘रंग दे बसंती’ और ‘भाग मिल्खा भाग’ वाले निर्देशक (राकेश ओमप्रकाश मेहरा) ने बनाई है। जबकि सच तो यह है कि यह फिल्म ‘मिर्ज्या’ वाले निर्देशक (राकेश ओमप्रकाश मेहरा) ने बनाई है। उस फिल्म की तरह यह भी भटकी हुई है जो न आपको छूती है, न कचोटती है, न सोचने पर मजबूर करती है।

अपनी रेटिंग-डेढ़ स्टार

Release Date-15 March, 2019

(दीपक दुआ फिल्म समीक्षक व पत्रकार हैं। 1993 से फिल्म-पत्रकारिता में सक्रिय। मिज़ाज से घुमक्कड़। ‘सिनेयात्रा डॉट कॉम’ (www.cineyatra.com) के अलावा विभिन्न समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, न्यूज पोर्टल आदि के लिए नियमित लिखने वाले दीपक ‘फिल्म क्रिटिक्स गिल्ड’ के सदस्य हैं और रेडियो व टी.वी. से भी जुड़े हुए हैं।)

Tags: anjali patilatul kulkarnimakrand deshpandeMere Pyare Prime Minister reviewom kanojiyarakeysh omprakash mehrarasika agashe
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