-दीपक दुआ… (This Review is featured in IMDb Critics Reviews)
2016 में एक तमिल एक्शन-थ्रिलर फिल्म आई थी ‘थेरी’। इसमें कहानी, स्क्रिप्ट और निर्देशन एटली का था। वही एटली, जिन्हें हम हिन्दी वाले अब शाहरुख खान की फिल्म ‘जवान’ के डायरेक्टर के तौर पर पहचानते हैं। हालांकि ‘थेरी’ भी कोई ओरिजनल फिल्म नहीं थी लेकिन उस समय तमिल में यह सुपरहिट हुई और बाद में इसके डब संस्करण को हिन्दी वालों ने भी यहां-वहां खूब देखा। अब इतने साल बाद उसी ‘थेरी’ का हिन्दी रीमेक आया है जिसके निर्माताओं में एटली भी हैं। लेकिन एटली ने इसे निर्देशित नहीं किया है बल्कि साऊथ के ही कालीस से निर्देशित करवाया है।
अपनी बेटी के साथ केरल के एक छोटे-से कस्बे में बेकरी चला रहा बेबी जॉन मारधाड़ से परे रहने वाला आदमी है। लेकिन तभी कुछ ऐसा होता है कि वह वापस अपने उस हिंसक अवतार में आ जाता है जब वह एक दबंग पुलिस अफसर हुआ करता था जो बुरे लोगों को पटक-पटक कर मारता था। क्या कारण था कि जो उसने पुलिस की नौकरी छोड़ी? अब क्या कारण है कि वह वापस मारधाड़ करने लगा?
किसी कारण से पुलिस या सेना के काम से रिटायरमैंट लेकर गुमनाम ज़िंदगी जी रहे और फिर किसी कारण से वापस मिशन पर लग जाने वाले नायक की कहानी का प्लाट इतना पुराना है कि इस पर एक सौ पिछत्तीस मंज़िल की इमारत बनाई जा चुकी है। बावजूद इसके गाहे-बगाहे इसी प्लॉट पर एक और लैंटर डाल दिया जाता है। प्लॉट बुरा नहीं है, लेकिन कहानी की मज़बूती, स्क्रिप्ट की मोटाई और उसमें इस्तेमाल किए जाने वाले मसालों की क्वालिटी अगर सही न रखी जाए तो नतीजे के तौर पर बनती हैं ‘बेबी जॉन’ जैसी फिल्में, जो टिकाऊ कम और थकाऊ-पकाऊ ज़्यादा होती हैं। चलिए, एक-एक करके हिसाब मांगते हैं।
पहले तो एटली साहब, माना कि आपकी एजेंडा फिल्म ‘जवान’ को कुछ लोगों से गालियां पड़ी थीं, लेकिन हम हिन्दी वालों ने उसे सुपरहिट करवाया था न? तो फिर आपने क्यों हमें अपनी एक बासे विषय वाली बासी फिल्म का रीमेक नई थाली में परोसा? परोसा तो इसे खुद डायरेक्ट न करके उन कालीस से ही क्यों निर्देशित करवाया जो अब तक सिर्फ एक (और वह भी बेहद खराब) तमिल फिल्म ‘की’ (2019) दे चुके हैं? क्या आपको कालीस पर तरस आया या हिन्दी के दर्शकों से कोई दबी हुई खुंदक निकालनी थी?
(रिव्यू : मसालों संग उपदेश की दुकान-‘जवान’)
कालीस जी, आपने ‘बेबी जॉन’ को लिखा भी है तो सबसे ज़्यादा छित्तर-पूजा आप ही की होनी चाहिए। भाई साहब, आपकी लिखी हुई स्क्रिप्ट इस कदर लचरात्मक और कचरात्मक है कि खराब सिनेमा लिख कर गालियां खाने वाले लेखक आपको अपना गुरु बना सकते हैं। और न ही बतौर डायरेक्टर आप कोई ऐसा काम कर पाए कि वाहवाही की जा सके। कालीस जी, आप वहीं साऊथ में ही रहो। हमारे यहां आप जैसे बहुत सारे क्लेशमेकर (ओह सॉरी, फिल्ममेकर) पहले से ही मौजूद हैं। दरअसल आपकी फिल्म 2010 में आई हिन्दी की ‘दबंग’ जैसी उन फिल्मों का ही विस्तार है जिसके बारे में मैंने लिखा था कि इन फिल्मों को देखते हुए ठीक उसी तरह का मज़ा आता है जो अक्सर अपनी चमड़ी पर हो गए दाद को खुजाने में आता है। एक ऐसा आनंद जो क्षणिक है लेकिन जिसका भविष्य दाद के कोढ़ बनने की आशंका से घिरा है। बधाई हो, आपने मेरी उस चेतावनी को सच करते हुए हिन्दी सिनेमा को कोढ़ दे दिया है।
वरुण धवन जी, एक हम हैं कि कभी ‘अक्टूबर’, कभी ‘बदलापुर’, कभी ‘सुई धागा’ तो कभी ‘भेड़िया’ में आपकी तारीफ किए जाते हैं और एक आप हैं कि बार-बार छिछोरी फिल्मों में छिछोरे रोल करके हमारे लिखे पर पानी फेर देते हैं। वामिका गब्बी जी, अगर आपने बड़े पर्दे पर आने के लालच में इसी तरह के कमज़ोर रोल स्वीकारने हैं तो आप गलत दिशा में आगे बढ़ रही हैं। कीर्ति सुरेश जी, आपने काम तो अच्छा किया लेकिन हिन्दी सिनेमा में एंट्री के लिए फिल्म गलत चुन ली। आप को सलाह रहेगी कि वहीं साऊथ में रहिए। वैसे भी आपकी शक्ल हमारे यहां की आलिया भट्ट और सई मांजरेकर का मिश्रण है। हम उन दोनों से काम चला लेंगे। जैकी श्रॉफ दादा, आप क्यों इस उम्र में फटकार सुनना चाहते हैं?
एक्शन टीम वालों, आपने जो दिखाया, उससे कई गुना बेहतर काम अब हिन्दी में होने लगा है। कुछ हालिया हिन्दी फिल्में आप लोगों ने देख ली होतीं तो बेहतर था। बैकग्राउंड म्यूज़िक वाले भैया, सच बताना आप पार्ट टाइम में सिरदर्द की गोलियां भी बेचते हो न? साउंड वाले लोगों, आपने लगता है ध्यान नहीं दिया कि फिल्म में बहुत सारे संवाद बुदबुदाने वाले अंदाज़ में बोले गए हैं, पकड़ में ही नहीं आते। इरशाद कामिल भाई, आपका कसूर नहीं है। आपने तो गीतों में बढ़िया शब्द लिख दिए लेकिन संगीतकार भाई उस पर कोई बहुत गहरी धुनें नहीं बना पाए और पर्दे पर आते-आते वे गीत कहानी का हिस्सा नहीं बन पाए। एडिटिंग वाले लोगों, आप पर कोई बंदूक तो नहीं ही तानी गई होगी। कुछ सीन छोटे कर देते, कुछ गायब कर देते तो दर्शकों पर रहम होता।
हो गया सब…? अरे नहीं सलमान खान तो रह ही गए। भाई जान, माना कि आप इस तरह की कचरात्मक फिल्मों के ब्रांड अंबेसेडर हैं। लेकिन इस फिल्म के अंत में दो मिनट को आकर आपने वरुण के साथ मिल कर जो हमें पकाया है न, कसम से आपकी काबिलियत को सलाम है।
साऊथ के दर्शकों, यार आप लोग न ऐसी फिल्में हिट न करवाया करो। कुछ साल बाद उसका कहर हम पर गिरता है ‘बेबी जॉन’ की शक्ल में।
और अंत में हिन्दी के दर्शकों, और करवाओ कचरा फिल्मों को हिट। लो अब मज़े एक और छिछोरी फिल्म के। जो बोओगे, वही तो पाओगे।
(रेटिंग की ज़रूरत ही क्या है? रिव्यू पढ़िए और फैसला कीजिए कि यह कितनी अच्छी या खराब है। और हां, इस पोस्ट के नीचे कमेंट कर के इस रिव्यू पर अपने विचार ज़रूर बताएं।)
Release Date-24 December, 2024 in theaters
(दीपक दुआ राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त फिल्म समीक्षक हैं। 1993 से फिल्म–पत्रकारिता में सक्रिय। ‘सिनेयात्रा डॉट कॉम’ (www.cineyatra.com) के साथ–साथ विभिन्न समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, वेब–पोर्टल, रेडियो, टी.वी. आदि पर सक्रिय दीपक ‘फिल्म क्रिटिक्स गिल्ड’ के सदस्य भी हैं।)
बिना पानी के ही धो डाला पा ‘ जी 😅😅😅
बुराई आपकी समीक्षा में नहीं ….🎥 फिल्म में रही होगी ।
लिखा है तो सच भी होगा ।
बिना धुआँ के आग नहीं लगती साहेब जी ।
आभार , टिकट का धन बचा दिया ।
क्या बात है….!!!!
मज़ा आए गया पढ़कर….
जबरदस्त