-दीपक दुआ…
बावड़ियों या सीढ़ीदार कुओं का निर्माण प्राचीन काल से अपने यहां होता आया है। राजस्थान में आभानेरी की बावड़ी या गुजरात की ‘रानी की वाव’ जैसी बावड़ियां तो विश्वप्रसिद्ध हैं। वहीं देश के कई राज्यों में ऐसी अनेक बावड़ियां हैं जो आज भी मौजूद हैं और जिन्हें देखना बीते हुए कल के करीब जाने जैसा है। दिल्ली की ही बात करें तो महरौली में ‘राजों की बावली’ या आमिर खान की फिल्म ‘पी के’ के चलते लोकप्रिय हो गई क्नॉट प्लेस के पास स्थित ‘अग्रसेन की बावड़ी’ के अलावा भी इस शहर में कई पुरानी बावड़ियां मौजूद और संरक्षित हैं, भले ही इनमें आज पानी न हो।
पिछले दिनों किसी काम से दिल्ली के द्वारका इलाके में जाना हुआ। काम खत्म होने के बाद जिज्ञासु मन ने गूगल मैप खंगाला तो पता चला कि कुछ ही दूरी पर एक बावड़ी है जिसे लोधी काल की बावड़ी कहा जाता है। चंद ही मिनटों में हम लोग वहां थे। लेकिन जिस जगह यह बावड़ी स्थित है उसके बाहर वहां कोई बोर्ड या सूचना उपलब्ध नहीं है। आपकी सूचना के लिए बता दूं कि द्वारका सैक्टर-12 के गंगोत्री अपार्टमैंट के बगल वाले मैदान में यह बावड़ी है और इस मैदान का इस्तेमाल गाड़ियों की पार्किंग के लिए किया जाता है।
यह ज़रूर है कि इस बावड़ी को अब संरक्षित करके इसके चारों तरफ लोहे के जंगले लगा दिए गए हैं जिसके बाहर से ही इसे देखा जा सकता है। यह दरअसल लुहार हेड़ी गांव की ज़मीन पर बनी है जिसे लोधी काल (1451 से 1526) में 16वीं शताब्दी के शुरूआती वर्षों में स्थानीय लोगों की पानी की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए बनवाया गया था। हालांकि यह एक बहुत छोटी-सी बावड़ी है जिसमें मात्र 22 सीढ़ियां हैं फिर भी इसे देख कर घुमक्कड़ मन को तसल्ली मिलती है कि अतीत की इस धरोहर को कायदे से संजोया गया है।
Article date-26 December, 2021
(दीपक दुआ फिल्म समीक्षक व पत्रकार हैं। 1993 से फिल्म-पत्रकारिता में सक्रिय। मिज़ाज से घुमक्कड़। ‘सिनेयात्रा डॉट कॉम’ (www.cineyatra.com) के अलावा विभिन्न समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, न्यूज पोर्टल आदि के लिए नियमित लिखने वाले दीपक ‘फिल्म क्रिटिक्स गिल्ड’ के सदस्य हैं और रेडियो व टी.वी. से भी जुड़े हुए हैं।)