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Home यात्रा

यात्रा-जम्मू और चिनाब किनारे अखनूर (भाग-10-अंतिम किस्त)

Deepak Dua by Deepak Dua
2020/08/09
in यात्रा
0
यात्रा-जम्मू और चिनाब किनारे अखनूर (भाग-10-अंतिम किस्त)
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-दीपक दुआ…
पिछले आलेख में आपने पढ़ा कि पटनीटॉप पहुंच कर हमने कुदरती नज़ारे तो बहुत देखे लेकिन बारिश के चलते हम ज़्यादा घूम-फिर नहीं पाए और बिजली से गर्म होने वाले कंबलों में दुबके रहे (पिछला आलेख पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)। अगली सुबह मौसम बिल्कुल साफ था और हमारा मन था कि नाश्ते के बाद नत्था टॉप के लिए निकल जाएं। लेकिन वहां नया कुछ मिलना नहीं था और यहां गुनगुनी धूप में बैठ कर सामने बर्फ से ढकी हिमालय की चोटियों को निहारना ज़्यादा सुख दे रहा था। सो, यहां कुछ और वक्त बिताने के बाद हमने जम्मू का रास्ता पकड़ लिया। रास्ते में एक बार फिर से कुद में ‘प्रेम दी हट्टी’ से पतीसा पैक करवाया और कुछ ही घंटे में हम लोग जम्मू शहर में ‘जामवंत गुफा’ के दर्शन के लिए जा पहुंचे। मान्यता है कि भगवान राम के सहयोगी ऋक्षपति (रीछ) जामवंत ने यहां तपस्या की थी। यहां के बाद हमारा अगला पड़ाव था जम्मू रेलवे स्टेशन के बिल्कुल करीब बना हुआ वैष्णो देवी श्राइन बोर्ड का होटल ‘वैष्णवी धाम’ जहां मैंने दो महीने पहले ही एक सुइट बुक करवा लिया था।

रघुनाथ मंदिर और बाज़ार
शाम हुई तो मन हुआ कि क्यों न रघुनाथ मंदिर चला जाए। मोनू ड्राईवर अपनी गाड़ी के साथ मौजूद था ही। उसने कुछ ही मिनटों में हमें वहां पहुंचा दिया। रघुनाथ मंदिर के पीछे स्थित मशहूर हरि भवन धर्मशाला में मैं बचपन में ठहर चुका हूं। लगभग दो सौ साल पुराना रघुनाथ मंदिर काफी भव्य है। सुरक्षा कारणों से मोबाइल फोन, कैमरा आदि अंदर ले जाना मना है। इस मंदिर के आसपास का बाज़ार मुझे हमेशा से ही बहुत आकर्षित करता रहा है। यहां अखरोट, मेवे, फल, गर्म कपड़े आदि की बहुत सारी दुकानें हैं। लेकिन इस बाज़ार में मोलभाव और ठगी भी काफी होती है। कुछ देर यहां टहलने के बाद हमने एक रेस्टोरैंट में डिनर किया और ‘वैष्णवी धाम’ लौट आए। अगले दिन हमें एक ऐसी जगह जाना था जहां का मैंने सिर्फ नाम ही सुना था।

अखनूर नहीं बहुत दूर
अब हमारे पास पूरा एक दिन था। मोनू ड्राईवर ने बताया कि यहां से सिर्फ 30 किलोमीटर दूर प्राचीन शहर अखनूर है जहां चिनाब (चंद्रभागा) नदी बहती है। अगले दिन सुबह नाश्ते के बाद हम लोग अखनूर के लिए निकल पड़े। घंटे भर में हम वहां पहुंच गए। चिनाब नदी के ऊपर से होकर हम इस शहर में दाखिल हुए और मुझे याद आता रहा फिल्म ‘सोहनी महिवाल’ का वो गाना-‘सोहणी चनाब दे किनारे, ते पुकारे तेरा नाम, आजा…’। यहां सबसे पहले हम लोग ‘पांडव गुफा’ देखने गए। इस गुफा के बारे में मान्यता है कि पांडव यहां कुछ दिन छुप कर रहे थे। इस गुफा मंदिर के सामने ही चिनाब नदी बहती है जहां हम लोग काफी देर तक बैठे रहे। नदी का पानी छुआ तो वह बर्फ जैसा ठंडा था। यहां के बाद हम करीब ही अखनूर का किला देखने जा पहुंचे। हालांकि अब यहां सिर्फ खंडहर ही हैं लेकिन इन खंडहरों में काफी साफ-सफाई है और इसके ऊपर से पीछे बहती चिनाब को देखना बहुत अच्छा लगता है। अब हमारा अगला पड़ाव था अखनूर के बाहरी इलाके में स्थित अम्बारां जहां कई साल से पुरातत्व विभाग खुदाई करवा रहा है।

प्राचीन ऐतिहासिक स्थल अम्बारां
चिनाब नदी के दाएं किनारे पर स्थित इस जगह पर पुरातत्व विभाग को दो हज़ार साल पहले के अवशेष प्राप्त हुए हैं। यहां से निकली मूर्तियां देश-विदेश के कई संग्रहालयों में प्रदर्शित की गई हैं। यहां से निकली बहुत सारी चीज़ें यहां स्थित एक छोटे-से म्यूज़ियम में रखी गई हैं और इतिहास को करीब से खंगालने में रूचि रखने वालों के लिए यह एक अवश्य देखी जाने वाली जगह है। यहां से निकले तो करीब घंटे भर में हम लोग जम्मू के बाग-ए-बाहु में थे। अपने आखिरी पड़ाव पर।

बाहु किला और वापसी
बाग-ए-बाहु जम्मू का एक बहुत खूबसूरत बाग है जहां से तवी नदी और पूरे जम्मू शहर का खूबसूरत नज़ारा दिखता है। यह बाग बाहु किले के करीब बना हुआ है। यहां मैं पहले कई बार आ चुका हूं। इस बार देखा कि यहां सरकार ने अंडरग्राउंड एक्वेरियम बना दिया है। इसका प्रवेश द्वारा मछली के मुंह के आकार का है और बाहर निकलने का रास्ता मछली की पूंछ के आकार का। इस अत्याधुनिक एक्वेरियम में किस्म-किस्म की मछलियों और अन्य जल-जंतुओं को आप देख सकते हैं। मछलियां देखने और उन्हें पालने का शौक रखने वालों को यहां बहुत महत्वपूर्ण जानकारियां मिल सकती हैं। बाहु किले के अंदर ‘बावे वाली माता’ का मंदिर है। इसे जम्मू क्षेत्र के बेहद महत्वपूर्ण मंदिरों में गिना जाता है। यहां के स्थानीय लोगों के बीच इस मंदिर की बहुत मान्यता है। बाग-ए-बाहु के बाहर कुछ छोटे ढाबे हैं और आलू-कचालू की बहुत स्वादिष्ट चाट के ठेले भी। अब हमें वापस ‘वैष्णवी धाम’ पहुंचना था। उसी रात राजधानी एक्सप्रैस से हम लोग दिल्ली लौट आए-इन कुछ दिनों की ढेरों ऐसी यादें लिए जो हमारे मन से शायद ही कभी ओझल होंगी।

(दीपक दुआ फिल्म समीक्षक व पत्रकार हैं। 1993 से फिल्म-पत्रकारिता में सक्रिय। मिजाज़ से घुमक्कड़। ‘सिनेयात्रा डॉट कॉम’ (www.cineyatra.com) के अलावा विभिन्न समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, न्यूज पोर्टल आदि के लिए नियमित लिखने वाले दीपक रेडियो व टी.वी. से भी जुड़े हुए हैं।)

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