-दीपक दुआ…
पिछले आलेख में आपने पढ़ा कि सांझी छत से मात्र 4 मिनट की अपनी हैलीकॉप्टर यात्रा ने मेरी कैसी तो बुरी हालत कर दी थी। कटरा बस स्टैंड के पास स्थित मेरे फेवरेट ‘ज्वैल्स’ रेस्टोरैंट में लंच करने के बाद हम लोग अपने होटल में आकर सो गए और फिर शाम को अपने होटल से सटे हुए एक पार्क में टहलने जा पहुंचे। यह एक बहुत बड़ा और खूबसूरत पार्क है जो चिंतामणि मंदिर के सामने है। (पिछला आलेख पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें) इसके बाद हम लोग चिंतामणि मंदिर में जा पहुंचे। यह कटरा का एक बहुत ही विशाल मंदिर है जिसमें रहने के लिए भी काफी सारे कमरे हैं। वैष्णो देवी की यात्रा में बसें भर-भर कर ले जाने वाली बहुत सारी संस्थाएं अपने यात्रियों को यहीं ठहराती हैं। अब मुझे अपने दोस्त अनिल से मिलना था जिसकी वहीं पास ही में अखरोट आदि की दुकान है। अनिल से मेरी दोस्ती कुछ साल पहले यहीं कटरा में हुई थी और उसके बाद से मैं जब भी यहां गया मैंने अखरोट उसी से खरीदे। जम्मू-कटरा में अखरोट को लेकर ठगने के काफी मामले सामने आते हैं कि दुकानदार ने दिखाए तो वे अखरोट जो हाथ में लेते ही टूट जाएं लेकिन घर पहुंच कर थैले में से निकले ऐसे अखरोट, कि हथोड़ी टूट जाए मगर अखरोट नहीं। अपने साथ यह ठगी 1996 में हो चुकी थी जिसके बाद 1998 में कटरा के एक दुकानदार से दोस्ती हुई और बरसों तक उनसे मिलना-जुलना व अखरोट खरीदने का सिलसिला चलता रहा। फिर उन्होंने अपना काम बदल लिया जिसके बाद संयोग से अनिल से दोस्ती हो गई। अनिल से जिस जगह पर मेरी दोस्ती हुई थी, वो जगह कटरा के करीब ही है और मेरी पसंदीदा जगहों में से है। यहां मैं हर बार ज़रूर जाता हूं। इस बार भी गया। आगे उसका भी ज़िक्र करूंगा।
अनिल ने बताई अखरोटों की सच्चाई
अनिल की दुकान पर पहुंचे तो वह बड़ी गर्मजोशी से गले मिला और यह देख कर बहुत खुश हुआ कि इस बार मैं पूरे परिवार के साथ आया हूं। चाय तो आनी ही थी और अखरोट भी लेने ही थे। उसने अपने-आप ही सबसे अच्छी क्वालिटी के दस किलो अखरोट और बाकी वो सारी चीज़ें पैक कर दीं जो हमें दिल्ली पहुंच कर प्रसाद के तौर पर बांटनी थी। अनिल ने फिर से हमें याद दिलाया कि जो अखरोट ऊपर से उजले होते हैं उन्हें तेजाब मिले पानी से धोया जाता है ताकि ग्राहक उनकी चमकती सूरत देख कर झांसे में आ जाए। ये अखरोट अगर खाए जाएं तो बाद में जीभ पर और मुंह में छाले-से हो जाते हैं। काफी देर हो चुकी थी और हमें ऑटो पकड़ कर डिनर के लिए ‘ज्वैल्स’ जाना था। अनिल को यह बात बताई तो उसने कहा-आज आपको ऐसा खाना खिलाता हूं कि आप बाकी सब को भूल जाओगे। इतना कह कर वह हमें पास के ‘शालीमार’ भोजनालय में ले गया और बाहर शीशे के दरवाजे पर लिखी इबारत की तरफ इशारा करके बोला-भाई जी, पढ़ो क्या लिखा है? हमने पढ़ा तो हंसे बिना न रह सके।
छोटी दुकान ऊंचा पकवान
उस भोजनालय के दरवाजे पर लिखा था-‘यहां पर बढ़िया रेस्टोरैंट का खाना ढाबे के रेट पर मिलता है।’ अनिल ने खुद किचन में जाकर रसोइये को हमारे बारे में बताया और हमें वहीं बिठा कर अपनी दुकान संभालने चला गया। खाना सचमुच बहुत स्वादिष्ट था और रेट वाकई कम। खाना खाने के बाद हम लोग आसपास के बाज़ार में घूमते हुए, छोटा-मोटा सामान खरीदते हुए फिर से अनिल की दुकान पर जा पहुंचे ताकि अखरोट वगैरह के थैले उठा कर होटल ले जाएं। यहीं अनिल ने हमारी मुलाकात मोनू नाम के उस ड्राईवर से करवाई जो अपनी इंडिगो कार के साथ अगले चार दिन तक हमारा सारथी बनने वाला था। उस रात देर तक हम लोग होटल में अपने कमरे के बाहर बने लॉन में कुर्सियों पर बैठे सामने त्रिकुटा पर्वत पर वैष्णो देवी के भवन को जाने वाले रोशनियों से नहाए सर्पीले रास्ते को निहारते रहे और यह याद करके रोमांचित होते रहे कि इससे पिछली रात हम लोगों ने भवन पर कैसे खुले आसमान तले कड़कती ठंड में गुज़ारी थी।
बहुत कुछ है कटरा के आसपास
अगली सुबह हम लोग फिर से होटल के पास वाले पार्क में जा पहुंचे। वहां बहुत सारे लोग थे जो जॉगिंग या कसरत कर रहे थे या फिर हमारी तरह फोटो खींच रहे थे। थोड़ी देर तक यहां मस्ती करने के बाद हम लोग होटल में लौट आए और नाश्ते के बाद उस इंडिगो में सवार होकर घूमने निकल पड़े जो बीती शाम मेरे मित्र अनिल ने हमारे लिए बुक करवा दी थी। हमारा पहला पड़ाव था ‘अगहर जित्तो’ यानी मां वैष्णो के अनन्य भक्त जित्तमल या बाबा जित्तो का मंदिर। इस मंदिर की यहां के स्थानीय निवासियों में बहुत मान्यता है। यहां कुछ देर गुज़ारने के बाद हम लोग पहुंचे ‘नौ-देवी’। यहां दो-तीन प्राकृतिक गुफाएं हैं और पास से पानी की धारा बहती है। कोई खास ऐतिहासिक मान्यता न होने के बावजूद यहां की प्राकृतिक सुंदरता और इन गुफाओं में स्थानीय पंडितों द्वारा मूर्तियां-पिंडी आदि स्थापित कर दिए जाने के बाद पिछले कुछ सालों में यह जगह सैलानियों के बीच काफी लोकप्रिय हो चुकी है। दरअसल यह रास्ता कटरा से शिव खोड़ी की तरफ जाता है। बीते डेढ़-दो दशक में शिव खोड़ी की प्रसिद्धि काफी बढ़ी है और इसीलिए इस रास्ते से जाने वाले यात्री मार्ग में आने वाले दूसरे स्थानों के भी दर्शन करते हुए जाते हैं। अब हमें उस जगह पहुंचना था जो कटरा के आसपास की तमाम जगहों में से मेरी पसंदीदा जगह है। पढ़िएगा अगली किस्त में, इस पर क्लिक कर के।
(दीपक दुआ फिल्म समीक्षक व पत्रकार हैं। 1993 से फिल्म-पत्रकारिता में सक्रिय। मिजाज़ से घुमक्कड़। ‘सिनेयात्रा डॉट कॉम’ (www.cineyatra.com) के अलावा विभिन्न समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, न्यूज पोर्टल आदि के लिए नियमित लिखने वाले दीपक रेडियो व टी.वी. से भी जुड़े हुए हैं।)