-दीपक दुआ… (This review is featured in IMDb Critics Reviews)
अपने आशिक के लिए 21 बार घर से भाग चुकी है बिहार की रिंकू। नानी आदेश देती है कि किसी को भी पकड़ कर इसका ब्याह कर दो। पकड़ में आता है डॉक्टरी पढ़ने वाला तमिल लड़का विशु जिसकी किसी और लड़की से सगाई तय है। उधर रिंकू को अपने जादूगर आशिक सज्जाद का इंतज़ार है। विशु भी चाहता है कि वह सज्जाद के साथ चली जाए, लेकिन…! आखिर कौन है यह सज्जाद? जादूगर है या…? है भी या…!
छोटे शहरों के अतरंगी किरदारों की सतरंगी कहानियां गढ़ने में लेखक हिमांशु शर्मा को जितना मज़ा आता है, उन्हें उतने ही रंगीले-रसीले अंदाज़ में पर्दे पर बखूबी उतारना जानते हैं निर्देशक आनंद एल. राय। ‘तनु वैड्स मनु’ की दोनों फिल्में और ‘रांझणा’ इनकी कामयाबी की मिसालें हैं। लेकिन क्या वजह है कि जब इन्हें चमकते सितारे और बड़ा मैदान मिलता है तो ये फिसल जाते हैं? ‘ज़ीरो’ के बाद अब ‘अतरंगी रे’ भी इनकी लड़खड़ाहट का उदाहरण है। क्यों इनसे शाहरुख, अक्षय के स्टारडम का बोझ नहीं उठाया जाता?
इस फिल्म की कहानी बुरी नहीं है, न ही ट्रीटमैंट। बल्कि अपने कम्फर्ट ज़ोन से बाहर निकल कर कुछ नया कहने-दिखाने की हिमांशु-आनंद की ललक भी इसमें नज़र आती है। लेकिन यह ललक तो ये लोग ‘ज़ीरो’ में भी दिखा रहे थे। वहां तो मामला फिर भी कुछ ठीक था मगर इस बार तो इन लोगों ने ऐसी भूलभुलैया रच डाली कि खुद भी उलझे और दर्शकों को भी उलझा मारा।
विशु बिहार करने ही क्या गया था? वह रिंकू को अपनी सगाई में क्यों घसीट ले गया? इन जैसे तार्किक सवालों पर न भी जाएं तो भी यह सवाल तो बड़े ज़ोर से अपना जवाब मांगता ही है कि जिस सज्जाद के पीछे रिंकू पागल हो रही है उससे पीछा छुड़ाने के लिए विशु और उसके दोस्त कैसी ऊल-जलूल हरकते कर रहे हैं? और दोस्त भी कैसे, ये लोग विशु-रिंकू के लिए बावले हो रहे है लेकिन सिवाय एक दोस्त के न तो किसी का पर्दे पर चेहरा दिखा और न ही किसी को कोई डायलॉग मिला।
हालांकि एक अलग किस्म की कहानी को कहने के लिए मनोरंजन और कॉमेडी का जो वातावरण तैयार किया गया है वह दर्शक को बोर नहीं होने देता लेकिन इस वातावरण के भीतर का खोखलापन बहुत जल्द दिखने लगता है और फिल्म खत्म होने के बाद जब आप खुद को खाली हाथ पाते हैं तो ठगी का-सा अहसास भी साफ महसूस होता है।
अक्षय कुमार अपने किरदार में बूढ़े लगे हैं। यह सही है कि उम्र बढ़ने के साथ-साथ उन्हें इस तरह के एक्सपेरिमैंट भी करने चाहिएं लेकिन जब किरदार के पास कहने को ही कुछ नहीं होगा तो फिर उन्हें दर्शकों की चाहत कैसे मिलेगी? सारा अली खान ने रिंकू के बोल्ड और लाउड किरदार को पकड़ने में मेहनत की है लेकिन बहुत बार वह ओवर भी हुई हैं। सबसे ज़्यादा आनंद धनुष को देखने में आता है। बहुत ही सहजता है उनके काम में। ‘रांझणा’ जैसा किरदार होने के बावजूद वह प्यारे लगते हैं। उनके दोस्त बने आशीष वर्मा भी जंचे। सीमा विश्वास, पंकज झा जैसे कलाकार थोड़ी देर को आए और उतने में ही असर छोड़ गए।
फिल्म की लोकेशन उम्दा हैं। बारिश और रंगों का भी बखूबी इस्तेमाल हुआ है व पंकज कुमार अपने कैमरे से उन्हें सही से पकड़ते भी हैं। गीतकार इरशाद कामिल और संगीतकार ए.आर. रहमान की जोड़ी ने फिर से कुछ अच्छे गीत दिए हैं। लेकिन एक तो गीतों के बोल किरदारों की खासियतों से मेल नहीं खाते और दूजे इनके संगीत में दोहराव भी झलकता है।
इस फिल्म की कहानी पटरी पर ही है। लेकिन इस पटरी के नीचे बिछी पटकथा की गिट्टियां ज्यादा ठोस नहीं हैं। इसीलिए इस पर चलती गाड़ी बार-बार झोल खाती है और झटके बेचारे दर्शक को झेलने पड़ते हैं। बहुत बड़ी उम्मीदें पाल कर डिज़्नी-हॉटस्टार पर आई इस फिल्म को देखेंगे तो निराशा होगी। टाइम ही पास करना हो तो ठीक है।
(रेटिंग की ज़रूरत ही क्या है? रिव्यू पढ़िए और फैसला कीजिए कि फिल्म कितनी अच्छी या खराब है। और हां, इस रिव्यू पर अपने विचार ज़रूर बताएं।)
Release Date-24 December, 2021
(दीपक दुआ फिल्म समीक्षक व पत्रकार हैं। 1993 से फिल्म-पत्रकारिता में सक्रिय। मिज़ाज से घुमक्कड़। ‘सिनेयात्रा डॉट कॉम’ (www.cineyatra.com) के अलावा विभिन्न समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, न्यूज पोर्टल आदि के लिए नियमित लिखने वाले दीपक ‘फिल्म क्रिटिक्स गिल्ड’ के सदस्य हैं और रेडियो व टी.वी. से भी जुड़े हुए हैं।)
पा’ जी। रिव्यू पर तो क्या ही कमेंट करें। को तो हमेशा की तरह बेहतरीन है ही। 😅
Interesting lg rhi h
Ab to movie dekhni hi pdegi