-दीपक दुआ… (This review is featured in IMDb Critics Reviews)
सिद्धांत कपूर–पप्पा, मेरे लिए कोई पिक्चर बनाओ न। देखो न, श्रद्धा कितनी बड़ी स्टार बन गई जबकि मुझे कोई जानता तक नहीं।
शक्ति कपूर–अबे ढाक की चिकी, पिच्चर तो मैंने श्रद्धा के लिए भी नहीं बनाई, वो भी तो खुद ही चली है, तू भी चल ले।
सिद्धांत–पप्पा, मुझे कुछ नहीं पता। या तो आप मेरे लिए पिक्चर बनाओ वरना मैं मम्मी को बता दूंगा कि आप कहां-कहां आं-ऊं करते रहते हो।
शक्ति–धमकी दे रा है, तेरी तो…*@#$… चल बनवाते हैं किसी से। पकड़ते हैं किसी ऐसे को जिसे तेरे एक्टिंग के ’टेलेंट’ के बारे में न पता हो वरना तुझे लेकर कौन फिल्म बनाएगा। शूटिंग भी पूरी बाहर जाकर करेंगे और इसी बहाने थोड़ा-बौत आं-ऊं भी कर आएंगे।
सिद्धांत–कहानी यह वाली लेंगे कि मैं मॉरीशस में रह कर हिन्दी नाटक डायरेक्ट करता हूं, मेरे सारे शोज़ हाऊसफुल होते हैं और मैं बहुत अमीर हूं। लेकिन मेरे और ज़ोया के बीच तलाक हो चुका है और मैं अपने दोस्त रोहित से कहता हूं कि वो ज़ोया से शादी करके हलाला करे और फिर उसे तलाक दे दे ताकि मैं उससे दोबारा शादी कर सकूं।
शक्ति–हां, ऐसी ही कहानी लो जिसमें ऊपर से तो सोशल मैसेज दिखे तीन तलाक, हलाला-मलाला टाइप। लेकिन अंदर कुछ न हो क्योंकि ज़्यादा भारी चीज़ तो तुमसे संभलेगी नहीं। स्साले, हिन्दी नाटक यहां हिन्दुस्तान में कोई नहीं देखता और तू मॉरीशस में… चल रैन दे, सानूं की।
सिद्धांत–रोहित के रोल में किसे लें पप्पा?
शक्ति–किसी ऐसे को ले जिसकी एक्टिंग तेरे से भी गई-गुज़री हो वरना लोग उसे ही देखते रहेंगे और तू इस बार भी निकर संभालता रहेगा। अरे, वो प्रतीक बब्बर को ले ले। उस बेचारे को हीरो कोई बनाता नहीं और वो दिल्ली वाला फिल्म क्रिटिक तो कई बार लिख चुका है कि उसे एक्टिंग छोड़ देनी चाहिए।
सिद्धांत–हां पप्पा, प्रतीक तो कॉमिक सीन में भी इतना सीरियस दिखता है कि पब्लिक रो पड़े।
शक्ति–हां बेटे, ज़रूरी नहीं कि हर अच्छे एक्टर का बेटा भी अच्छा एक्टर ही हो। खुद को ही देख ले।
सिद्धांत–लेकिन पप्पा लड़की कोई अच्छी-सी ही लेंगे।
शक्ति–वो तो है ही, वरना तुम दोनों की शक्लें देखने कौन आएगा। कोई ऐसी लड़की लेंगे जो एक्टिंग भले ही ठंडी करे लेकिन छोटे-छोटे कपड़े पहन कर दर्शकों की आंखें ज़रूर गर्म कर दे। वो ‘प्यार का पंचनामा’ में आई थी न इशिता राज शर्मा, उसे ले लेंगे। तुम दोनों से तो बेहतर ही दिखेगी। और सुन, डायरेक्टर भी कोई ऐसा ही रखियो जो कहानी को किसी तरह से एंड तक पहुंचा दे और ज़्यादा लोड न ले। बस, बाकी का भाषण द एंड से पहले आकर मैं दे दूंगा। कोई जमा-जमाया डायरेक्टर लिया तो वो दूसरे ही दिन या तो तेरे को और प्रतीक को मार देगा या खुद खुशी से खुदकुशी कर लेगा।
सिद्धांत–और पप्पा म्यूज़िक…? एक गाना मैं भी गाऊंगा। श्रद्धा भी तो गाती है।
शक्ति–अबे पीपणी के, फिर तू खुद को श्रद्धा से कम्पेयर कर रहा है। अबे कहां वो और कहां तू। हां, म्यूज़िक ज़रूर ठीक-ठाक होना चाहिए, खासतौर से गाने देखने में आंखों को अच्छे लगने चाहिएं। वैसे भी बाहर की लोकेशन पर तो सब अच्छा ही लगेगा। और हां, गा लियो तू भी फिल्म के एंड में एक गाना। आखिर, पौने दो घंटे तक पकने के बाद लोग कोई अच्छा-सा गाना तो सुन कर घर जाएं।
सिद्धांत–पर पप्पा, यह फिल्म के नाम से पहले # क्यों लगाया है?
शक्ति–अबे ढक्कनी के, यह आजकल का ट्रेंड है। यंग जेनरेशन को यही सब जमता है।
सिद्धांत–लेकिन पप्पा, यह फिल्म रिलीज़ तो हो जाएगी न…?
शक्ति-बिल्कुल होगी। दिवाली से ठीक पहले रिलीज़ कर देंगे। उस समय सारा कूड़ा-कचरा खप जाता है। फिल्म चले न चले, अपने को क्या। प्रोड्यूसर सिर फोड़े या पब्लिक…!
(रेटिंग की ज़रूरत ही क्या है? रिव्यू पढ़िए और फैसला कीजिए कि फिल्म कितनी अच्छी या खराब है। और हां, इस रिव्यू पर अपने विचार ज़रूर बताएं।)
Release Date-18 October, 2019
(दीपक दुआ फिल्म समीक्षक व पत्रकार हैं। 1993 से फिल्म-पत्रकारिता में सक्रिय। मिज़ाज से घुमक्कड़। ‘सिनेयात्रा डॉट कॉम’ (www.cineyatra.com) के अलावा विभिन्न समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, न्यूज पोर्टल आदि के लिए नियमित लिखने वाले दीपक ‘फिल्म क्रिटिक्स गिल्ड’ के सदस्य हैं और रेडियो व टी.वी. से भी जुड़े हुए हैं।)