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Home फिल्म/वेब रिव्यू

रिव्यू-‘विक्रम वेधा’ में है एक्शन और थ्रिल का मसालेदार संतुलन

Deepak Dua by Deepak Dua
2022/09/30
in फिल्म/वेब रिव्यू
3
रिव्यू-‘विक्रम वेधा’ में है एक्शन और थ्रिल का मसालेदार संतुलन
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-दीपक दुआ… (This review is featured in IMDb Critics Reviews)

चोर-पुलिस की चूहा-बिल्ली जैसी भागमभाग पर बहुत सारी कहानियां आई हैं। यह कहानी इस मायने में अलग है कि चूहे के पीछे पड़ी बिल्ली जब उसे पकड़ने और मारने की जुगत में होती है तो ठीक उसी समय चूहा सामने आकर सरेंडर कर देता है और पूछता है-एक कहानी सुनाऊं?

लखनऊ और आसपास गैंग्स्टर वेधा का आतंक है। पुलिस की स्पेशल टास्क फोर्स एक-एक कर उसके करीबियों को ठोक रही है। लेकिन इससे पहले कि ये लोग वेधा तक पहुंचें, वह खुद आकर सरेंडर कर देता है। पुलिस अफसर विक्रम को वह अपने अतीत की एक-एक कर तीन कहानियां सुनाता है जिनके अंत में हर बार एक सवाल सामने आता है कि उन हालात में उसे क्या करना चाहिए था? या उसने जो किया, वह सही था या गलत?

सदियों से हम लोग ‘बेताल पच्चीसी’ की विक्रम-बेताल वाली कहानियां सुनते-पढ़ते आए हैं जिनमें राजा विक्रमादित्य की पीठ पर सवार बेताल उन्हें कोई कहानी सुना कर सवाल पूछता है और कहता है कि जवाब मालूम होने पर भी चुप रहे तो मरोगे और अगर बोले तो मैं वापस चला जाऊंगा। जिन्होंने न पढ़ी हों, उनके लिए फिल्म के शुरू में दो मिनट का एनिमेशन भी है। 2017 में आई आर. माधवन-विजय सेतुपति वाली इसी नाम की तमिल फिल्म के इस रीमेक में विक्रम और वेधा के बीच उसी तरह कहानियों का वर्णन और अंत में आने वाले धर्मसंकट की बात दिखाई गई है। यह फिल्म दरअसल पाप-पुण्य, गलत-सही, काले-सफेद, चोर-पुलिस के बीच की उसी शाश्वत लड़ाई को दिखाती है जो हम राम-रावण के समय से देखते-सुनते आए हैं।

इस फिल्म की कहानी से बढ़ कर इसकी स्क्रिप्ट है। ऐसी कसी हुई, दाव-पेंच दिखाती, चौंकाती पटकथाएं ही इस किस्म की फिल्मों को ऊंचाई पर ले जाती हैं। इस फिल्म में कहानी कहने का यह ढांचा इस कदर मज़बूत है कि उस पर चढ़ कर यह कद्दावर हुई है। मूल तमिल से इसे हिन्दी में ढालते समय पुराने चैन्नई शहर के बैकग्राउंड से कानपुर, लखनऊ तक पहुंचाते हुए वहां के माहौल, गलियों, किरदारों, बोली आदि का भी भरपूर ध्यान रखा गया है जो दर्शक को सुहाता है। विक्रम और वेधा के बीच चलने वाले संवाद इस फिल्म के असर को गहरा बनाते हैं। अंत में सच की परतें उधड़ती हैं तो हैरानी भी होती है। इन सब से भी बढ़ कर है इसका निर्देशन। तमिल वाले पुष्कर और गायत्री ने ही इसे हिन्दी में बनाया है इसलिए उनके काम में सहजता के साथ-साथ दृढ़ता भी दिखती है। कई सीन बहुत शानदार बने हैं। प्रतीकों का इस्तेमाल उन्हें और बेहतर बनाता है।

अभिनय सभी का बढ़िया है। सैफ अली खान और हृतिक रोशन को पर्दे पर देखना अच्छा लगता है। दोनों ने ही अपने-अपने किरदारों की खूबियों को कस कर पकड़ते हुए एक-दूसरे को भरपूर टक्कर भी दी है। हृतिक हालांकि कई जगह अपने ‘सुपर 30’ के दाढ़ी वाले गैटअप की याद दिलाते हैं लेकिन उनके अभिनय और संवाद अदायगी में दक्षता झलकती है। राधिका आप्टे जब-जब आती हैं, असर छोड़ती हैं। सत्यदीप मिश्रा, रोहित सराफ, मनुज शर्मा, योगिता बिहानी आदि अन्य सभी कलाकार भी अपने किरदारों के साथ न्याय करते हैं। शारिब हाशमी का अलग से उल्लेख ज़रूरी है। उन्हें अभी तक के अपने किरदारों से हट कर भूमिका मिली जिसे उन्होंने इस कदर सटीक ढंग से निभाया है कि देख कर तालियां बजाने का मन होता है।

फिल्म की एक बड़ी खासियत इसका एक्शन है। पिछले कुछ समय से हिन्दी फिल्मों में आ रहे ‘घूंसा मारा और उड़ गया’ वाले एक्शन से अलग इस फिल्म की मारधाड़ एकदम असली गैंग्स्टरों वाली है जिसे देख कर डर लगता है और उस डर से आनंद उपजता है। फिल्म के शुरू में हिंसा को महिमामंडित न करने वाला डिस्क्लेमर ही यह बता देता है कि आप एक हिसक-ज़ोन में प्रवेश करने जा रहे हैं। गाने सुनने से ज़्यादा देखने में अच्छे लगते हैं। बैकग्राउंड म्यूज़िक दमदार है और फिल्म के असर को कई गुना बढ़ाता है। कैमरा एक-एक पल को बारीकी से कैच करता है।

फिल्म की दो घंटे 40 मिनट की लंबाई इसका कमज़ोर पक्ष है। कुछ एक जगह यह हल्की पड़ती है। खासतौर से वेधा की सुनाई दूसरी कहानी बहुत लंबी लगने लगती है। दो-एक जगह लचकने, तर्क छोड़ने, खटकने और आने वाले सीक्वेंस का अंदाज़ा देने के बावजूद यह फिल्म एक्शन और थ्रिल का संतुलित, मसालेदार मनोरंजन परोसने में कामयाब रही है। यह एक इंटेलीजैंट किस्म की फिल्म है जो दिमाग से फिल्में देखने वालों को भरपूर सुहाएगी।

(रेटिंग की ज़रूरत ही क्या है? रिव्यू पढ़िए और फैसला कीजिए कि फिल्म कितनी अच्छी या खराब है। और हां, इस पोस्ट के नीचे कमेंट कर के इस रिव्यू पर अपने विचार ज़रूर बताएं।)

Release Date-30 September, 2022

(दीपक दुआ फिल्म समीक्षक व पत्रकार हैं। 1993 से फिल्म–पत्रकारिता में सक्रिय। मिज़ाज से घुमक्कड़। ‘सिनेयात्रा डॉट कॉम’ (www.cineyatra.com) के अलावा विभिन्न समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, न्यूज पोर्टल आदि के लिए नियमित लिखने वाले दीपक ‘फिल्म क्रिटिक्स गिल्ड’ के सदस्य हैं और रेडियो व टी.वी. से भी जुड़े हुए हैं।)

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Comments 3

  1. Dilip Kumar says:
    6 months ago

    बहुत दिनों बाद आपने किसी कमर्शियल फ़िल्म को पासिंग मार्क दिया है , जरूर देखेंगे

    Reply
  2. Rishabh Sharma says:
    6 months ago

    हमारी फिल्म जरा हटके है कह कर बासी बेस्वाद कहानी परोसने वाले मुंबई फिल्म नगरी में इन दिनों साउथ की फिल्मों का या यूं कहे की रीमेक चलन है क्यूं की दर्शक वर्ग कुछ नया महसूस करना चाहता है! और यही इस फिल्म की खासियत भी है जिसको हिंदी मै उसी फ्लेवर के साथ निर्देशक पुष्कर और गायत्री ने पेश किया है! उम्मीद के मुताबिक, सही संतुलन के साथ!! वैसे इतना सब कुछ लिखने का श्रेय सिर्फ दीपक दुआ जी को जाता है क्यूंकि उनकी लेखन शैली और सटीक रिव्यू पढ़ कर उनके लिए तालियां बजाने का सही मै मन करता है! धन्यवाद

    Reply
    • CineYatra says:
      6 months ago

      धन्यवाद

      Reply

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