-दीपक दुआ… (This Review is featured in IMDb Critics Reviews)
पहले तो इस फिल्म के नाम यानी ‘पोन्नियिन सेल्वन’ को समझा दिया जाए। इसका शाब्दिक अर्थ है पोन्नि का बेटा। पोन्नि यानी कावेरी नदी। असल में दसवीं सदी के दक्षिण भारत के महान चोल साम्राज्य के राजा अरुलमोरी वर्मन यानी राजराजा चोला को इस नाम से भी पुकारा जाता था। क्यों पुकारा जाता था, यह बात फिल्म बहुत देर बात बताती है।
अब फिल्म के किरदारों और कहानी को समझा दिया जाए। चोल राजवंश में एक बार बड़े बेटे की जगह छोटे सुंदर चोल को गद्दी मिली। बरसों बाद उसके बड़े भाई का बेटा मदुरांतकन उठ खड़ा हुआ कि गद्दी तो मेरी है। चोल वंश के विरोधी उसे हवा देने लगे। उधर खुद सुंदर चोल के दोनों बेटे आदित्य करिकालन और अरुलमोरी वर्मन भी गद्दी के हकदार हैं। इनमें से कौन राजा बनेगा और कैसे, यह फिल्म उन्हीं संघर्षों, षडयंत्रों और राजसी दाव-पेंचों की कहानी दिखाती है।
अब दिक्कत यह है कि ये जो दो बातें आपको इस रिव्यू में समझाई जा रही हैं, यह दायित्व असल में इस फिल्म को बनाने वालों का था। उन्हें चाहिए था कि फिल्म की शुरूआत में किरदारों व कहानी का परिचय थोड़ा खुल कर देते। लेकिन लगता है कि इसे लिखने-बनाने वाले यह माने बैठे थे कि सभी दर्शकों की इतिहास में गहरी रूचि है और सब के सब फिल्म देखने से पहले चोल राजाओं के बारे में पढ़-समझ कर आए होंगे। मुमकिन है दक्षिण के दर्शक इस मामले में थोड़ा आगे हों भी, लेकिन हिन्दी वालों से ऐसी उम्मीद भला कैसे की जाए? सो, हुआ यह है कि सामने पर्दे पर जो हो रहा है, वह अच्छा तो लगता है लेकिन क्या हो रहा है और क्यों हो रहा है, यह काफी देर बाद समझ में आता है और तब यह पता चलता है कि जो कहानियां चल रही थीं उनका असल कहानी से क्या संबंध है।
ख्यात तमिल लेखक कल्कि कृष्णमूर्ति के दशकों पहले लिखे गए उपन्यास पर आधारित इस फिल्म को बिना किसी झिझक के सिनेमा के पर्दे पर उतारी गई एक ऐसी अद्भुत, अलौकिक, दिव्य और भव्य महागाथा कहा जा सकता है जो हमें इतिहास की उन अनदेखी वीथियों में ले जाती है जिनके बारे में हमने पढ़ा भले हो, उन्हें जाना नहीं है। ऊपरी तौर पर यह फिल्म भले ही राजप्रासादों और राजपरिवारों में सतत चलने वाले संघर्षों और षडयंत्रों की कहानी कहती हो, भीतर से यह फिल्म इतिहास बनाने वालों और उसकी दिशा मोड़ने वालों के जीवट और जीवन को दिखाती है। इस फिल्म को देख कर भारत के गौरवशाली अतीत की झलक मिलती है और उस पर गर्व करने का मन होता है।
इस फिल्म को देख कर इस बात पर भी गर्व किया जा सकता है कि हम भारतीयों के पास इस स्तर का सिनेमा बनाने का कौशल भी है। फिल्म की लुक, लोकेशन, सैट्स, बिल्कुल वास्तविक लगते वी.एफ.एक्स, अद्भुत सिनेमैटोग्राफी, युद्ध व अन्य एक्शन सीक्वेंस, कास्ट्यूम आदि आपकी आंखों को मोहते हैं। दिव्य प्रकाश दुबे के लिखे हिन्दी संवाद आपको सुहाते हैं और मणिरत्नम का निर्देशन आपको भीतर तक प्रभावित करता है। ए.आर. रहमान का संगीत दक्षिण के फ्लेवर का है लेकिन अच्छा लगता है और गीतों को देखते हुए आनंद आता है। बैकग्राउंड म्यूज़िक असरदार है।
विक्रम, ऐश्वर्या राय बच्चन, प्रकाश राज, जयम रवि, तृषा कृष्णन, शोभिता धुलिपाला व अन्य सभी कलाकारों का अभिनय जानदार है लेकिन यह फिल्म असल में कार्ति के काम को उभार कर दिखाती है। हिन्दी में इन कलाकारों को आवाज़ देने वालों ने भी असरदार काम किया है।
मणिरत्नम की यह फिल्म आपको पकी-पकाई नहीं मिलती है। इसे समझने के लिए आपको भी मेहनत करनी पड़ती है। इसके किरदारों के मुश्किल नाम, उनके आपसी संबंध आपको धीरे-धीरे पल्ले पड़ते हैं। लेकिन जब एक बार आप इसकी कहानी के ताने-बाने पकड़ लेते हैं तो फिर इससे नज़रें हटा पाना असंभव हो जाता है। इसका बेहद प्रभावशाली क्लाइमैक्स आपको इस कदर जकड़ लेता है कि शुरू में अखर रही इसकी पौने तीन घंटे की लंबाई अब छोटी लगने लगती है। अंत में इसके अगले भाग की घोषणा के तुरंत बाद भी एक दृश्य आता है, उसे मिस मत कीजिएगा।
(रेटिंग की ज़रूरत ही क्या है? रिव्यू पढ़िए और फैसला कीजिए कि फिल्म कितनी अच्छी या खराब है। और हां, इस पोस्ट के नीचे कमेंट कर के इस रिव्यू पर अपने विचार ज़रूर बताएं।)
Release Date-30 September, 2022
(दीपक दुआ फिल्म समीक्षक व पत्रकार हैं। 1993 से फिल्म–पत्रकारिता में सक्रिय। मिज़ाज से घुमक्कड़। ‘सिनेयात्रा डॉट कॉम’ (www.cineyatra.com) के अलावा विभिन्न समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, न्यूज पोर्टल आदि के लिए नियमित लिखने वाले दीपक ‘फिल्म क्रिटिक्स गिल्ड’ के सदस्य हैं और रेडियो व टी.वी. से भी जुड़े हुए हैं।)
हमेशा की तरह बढ़िया रिव्यू है सर। 💐
धन्यवाद
Nyc review
Thanks
रिव्यू पढ़ के फिल्म देखने की इच्छा जाग उठी है
धन्यवाद
दुआ जी का रिव्यु हमेशा ही एक निष्कर्ष तक ले जाने वाला होता है। जिस तरह से इन्होंने इस मूवी के नाम का अर्थ बताया है और इतिहास से रूबरू और एक दक्षिण भारतीय महान उपन्यासकार का परिचय कराया है वह काबिले तारीफ है।
दुआ जी का रिव्यू इस मूवी को देखने की जिज्ञासा उतपन्न करता है, तो वाकई ये यह मूवी एक “मूवी” ही होगी न कि ‘इधर की ईंट, उधर का रोड़ा, कहीं से उठाकर, कहीं पे जोड़ा”।
और एक बात और कि मणिरत्नम जी की मूवी को देखने के लिए थोड़ा तो हमें अपने दिमाग पर ज़्यादा जोर डालना होता है।
धन्यवाद दुआ जी।
धन्यवाद