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Home फिल्म/वेब रिव्यू

रिव्यू-रंगीन चश्मा लगा कर देखिए ‘तू झूठी मैं मक्कार’

Deepak Dua by Deepak Dua
2023/03/08
in फिल्म/वेब रिव्यू
3
रिव्यू-रंगीन चश्मा लगा कर देखिए ‘तू झूठी मैं मक्कार’
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-दीपक दुआ… (This review is featured in IMDb Critics Reviews)

हीरो में सारे गुण हैं-काबिल, हैंडसम, गुडलुकिंग, रिच, फिट, पोलाइट, लवेबल, हंबल, रिस्पैक्टफुल, रोमांटिक…। लड़की भी गुणों की खान है। बस दिक्कत यह है कि जहां लड़का हर बात में फैमिली को आगे रखता है और अपने प्यार का भरोसा दिलाने के लिए कसम भी मम्मी की खाता है, वहीं लड़की अपने ही शहर में मां-बाप से अलग रहती है। उसे फैमिली से दिक्कत नहीं मगर उसे स्पेस की दरकार है। उसे लगता है कि लड़के की फैमिली कहीं उसके पंख न बांध दे। अब वह लड़के से अलग होना चाहती है। पर क्या हो पाती है…?

‘प्यार का पंचनामा’ वाले लव रंजन अपनी अधिकांश फिल्मों में प्यार का जो मसालेदार स्वाद, आपसी रिश्तों का जो तड़का, परिवार का जो रंगीन माहौल परोसते-दिखाते आए हैं, यह फिल्म उस से चार कदम आगे और छह इंच ऊपर ही है। अंदाज़ा आप इसी बात से लगा लीजिए कि हीरो मर्सिडीज़ कार के शोरूम का मालिक है और उसका लंगोटिया यार तो इतना अमीर है कि कुछ भी नहीं करता। फिर भी ये लोग दूसरों से लाखों रुपए लेकर उनका ब्रेकअप करवाने का पार्ट टाइम धंधा करते हैं। (कहीं सुना है ऐसा धंधा? नहीं सुना तो आपकी गलती, फिल्म वालों ने बोल दिया कि ऐसा धंधा होता है तो होता ही होगा)। अपने लंगोटिया यार की शादी से पहले ये लोग ‘बैचलर्स मनाने’ (यह क्या होता है?) गोआ, मनाली नहीं बल्कि स्पेन जाते हैं जहां हीरो को अपने यार की मंगेतर की सहेली से प्यार हो जाता है। लेकिन लड़की को हॉलीडे वाले प्यार में टाइमपास दिखता है। हां, अनजान लड़कों के साथ ‘फिज़िकल’ होने में उसे कोई दिक्कत नहीं है क्योंकि वह ‘किसी के लिए अपने-आप को बचा कर नहीं रखना चाहती’। लेकिन जब कमिटमैंट की बारी आती है तो वह आनाकानी करने लगती है।

प्यार, शादी, कैरियर, फैमिली के असमंजस पर हिन्दी फिल्मों ने हाल के बरसों में बहुत कुछ परोसा है। रंग-बिरंगे शहरी माहौल में कभी पैसे, कभी कैरियर तो कभी किसी और महत्वाकांक्षा के पीछे भाग रहे नई पीढ़ी के युवाओं की अंदरूनी कन्फ्यूज़न पर बनी ये कहानियां इसी माहौल के दर्शकों को लुभाती भी हैं। बाकी की कमियों को ढकने के लिए रंग-बिरंगे सहयोगी किरदार, चमकते चेहरे, दमकता माहौल, आंखों को सुहाती लोकेशंस वगैरह काम आती हैं जो यहां भी हैं।

हिन्दी वालों के पास अपने दर्शकों को देने के लिए ज़मीन से जुड़ी कहानियों की सख्त कमी है, यह बात इस फिल्म में भी साबित होती है। शुरुआत से ही इसकी कहानी किसी दूसरे ग्रह के चमकीले माहौल में घटती नज़र आती है। बड़ी मुश्किल से आप ‘कहानी’ से ध्यान हटा कर ‘दृश्यों’ पर खुद को एडजस्ट करते हैं तो पाते हैं कि इसे लिखने-बनाने वालों को सारा ज़ोर आपकी आंखों को राहत और कानों को बेवजह लंबे-लंबे संवाद देने पर ही लगा रहा। इंटरवल तक चढ़ता घटनाक्रम बहुत जल्दी थम जाता है और इंटरवल के बाद तो जैसे हिचकोले खाने लगता है। वह तो भला हो आखिरी के 15-20 मिनट का जिसने रफ्तार बढ़ा कर दर्शक को फिर से बांध लिया वरना बेचारा उबासियां लेता हुआ बाहर निकलता।

राहुल मोदी और अंशुल शर्मा इस फिल्म के क्रिएटिव डायरेक्टर हैं। यानी निर्देशक लव रंजन के दिए निर्देशों के मुताबिक शूटिंग का सारा काम देखने वाले लोग। लव रंजन से ही ट्यूशन ली है तो ज़ाहिर है कि उन की तरह ही काम करेंगे। रणबीर कपूर चार्मिंग हैं। शम्मी कपूर की मस्ती, शशि कपूर की क्यूटनैस, राज कपूर की अदाएं उनके भीतर हैं। श्रद्धा कपूर रंगीनियां बिखेरती हैं। स्टैंडअप कॉमेडियन अनुभव सिंह बस्सी का एक्टर-अवतार बुरा नहीं है, बस उन्हें रोल ही कायदे का नहीं मिला। डिंपल कपाड़िया कहीं-कहीं बहुत ओवर रहीं। बोनी कपूर को और सीन मिलने चाहिएं थे। मोनिका चौधरी, हसलीन कौर, इनायत वर्मा और बाकी सब सही रहे। प्रीतम के संगीत में अमिताभ भट्टाचार्य के गाने सुनने लायक हैं। उन्हें ‘देखने लायक’ बनाने का काम भी बखूबी किया गया है। बैकग्राउंड म्यूज़िक, सैट्स, लाइटिंग, कैमरा, लोकेशंस, ये सब मिल कर ‘दर्शनीय’ बनाते हैं।

तो, इस फिल्म को यदि आप सिर्फ ‘देखने के लिए’ देखें तो यह आपको लुभाएगी। इसके हीरो-हीरोइन का रोमांस आपको ‘अपना-सा’ भले न लगे, लेकिन सुहाएगा। इनकी मील भर लंबी चपर-चपर बातें आपको पूरी तरह से समझ भले न आएं लेकिन गुदगुदाएंगी। अब आज के ज़माने में रंगीनियत से भरी एक मसालेदार हिन्दी फिल्म से भला आप और क्या उम्मीद लगाते हैं?

(रेटिंग की ज़रूरत ही क्या है? रिव्यू पढ़िए और फैसला कीजिए कि यह कितनी अच्छी या खराब है। और हां, इस पोस्ट के नीचे कमेंट कर के इस रिव्यू पर अपने विचार ज़रूर बताएं।)

Release Date-08 March, 2023 in theaters

(दीपक दुआ फिल्म समीक्षक व पत्रकार हैं। 1993 से फिल्म–पत्रकारिता में सक्रिय। मिज़ाज से घुमक्कड़। ‘सिनेयात्रा डॉट कॉम’ (www.cineyatra.com) के अलावा विभिन्न समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, न्यूज पोर्टल आदि के लिए नियमित लिखने वाले दीपक ‘फिल्म क्रिटिक्स गिल्ड’ के सदस्य हैं और रेडियो व टी.वी. से भी जुड़े हुए हैं।)

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Comments 3

  1. Dr. Renu Goel says:
    3 weeks ago

    Holi pe aisi movie dekhni bnti h
    Nyc review

    Reply
  2. Rishabh Sharma says:
    3 weeks ago

    इस फिल्म के रिव्यू के इंतजार था! उम्मीद थी कि फील गुड मूवी होगी लेकिन… समझ नहीं आया कि किस लिए इस फिल्म को देखा जाए? शमशेरा और ब्रह्मास्त्र के बाद रणबीर कपूर का ग्राफ और नीचे आया है जबकि वह एक बेहतरीन अभिनेता है! श्रद्धा कपूर को लेकर भी यही कहा जाएगा! बाकी ऐसा कोई भी आट्रेक्शन नही है सिवाय खूबसूरत लोकेशन के! बाकी रंगीन चश्मे की क्या जरूरत है? दीपक जी की ऐनक है ना! धन्यवाद

    Reply
    • CineYatra says:
      3 weeks ago

      धन्यवाद… पढ़ते रहिए…

      Reply

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