-दीपक दुआ… (This review is featured in IMDb Critics Reviews)
इस फिल्म के डायरेक्टर कनु बहल की स्कूलिंग अलग ही माहौल में हुई है। अभिनेता-निर्देशक पिता ललित बहल से मिली परवरिश के बाद ‘लव सैक्स और धोखा’ में दिवाकर बैनर्जी की सोहबत-संगत का असर कनु की इस पहली फिल्म में साफ दिखाई देता है। नई दिल्ली की चौड़ी सड़कों या पुरानी दिल्ली की तंग गलियों से परे यह फिल्म जमुना पार की उन गलियों में ले जाती है जहां असुविधाओं की भरमार है, जहां एक ऐसा परिवार है जो छोटे-मोटे काम-धंधे और लूटमार करके अपना घर चलाते हैं। सबसे छोटे भाई तितली के लिए यह नर्क है जिसमें से निकलने के लिए वह कुछ भी करने को तैयार है। यहां तक कि अपनी पत्नी को उसके प्रेमी से मिलवाने, उसका हाथ तोड़ने और अपने ही भाइयों को जेल भिजवाने के लिए भी।
तितली आपको एक ऐसे माहौल में ले जाती है जो ‘फील गुड’ कत्तई नहीं है। टूथब्रश करने, गला साफ करने, थूकने, उलटी करने जैसे सीन आपको बुरे लग सकते हैं। इस फिल्म को देखते हुए कुछ खाने-पीने की तो सोचिएगा भी मत। लेकिन इन सब से इस फिल्म की अहमियत कम नहीं होती। सिनेमा के ज़रिए ज़िंदगी का एक ऐसा पहलू दिखाती है यह फिल्म जो हमारे आसपास ही मौजूद है लेकिन अनदेखा-सा। कुछ बिल्कुल ही अलग हट के देखने वालों के लिए है यह फिल्म।
अपनी रेटिंग-तीन स्टार
(नोट-मेरा यह रिव्यू इस फिल्म की रिलीज़ के समय किसी अन्य पोर्टल पर प्रकाशित हुआ था)
Release Date-30 October, 2015
(दीपक दुआ फिल्म समीक्षक व पत्रकार हैं। 1993 से फिल्म–पत्रकारिता में सक्रिय। मिज़ाज से घुमक्कड़। ‘सिनेयात्रा डॉट कॉम’ (www.cineyatra.com) के अलावा विभिन्न समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, न्यूज पोर्टल आदि के लिए नियमित लिखने वाले दीपक ‘फिल्म क्रिटिक्स गिल्ड’ के सदस्य हैं और रेडियो व टी.वी. से भी जुड़े हुए हैं।)