-दीपक दुआ… (This Review is featured in IMDb Critics Reviews)
मोगली लौट आया है। मध्य भारत के जंगलों में भेड़ियों के बीच पल रहे एक इंसान के बच्चे पर शेर खान की नज़र है। लेकिन जंगल के मुश्किल जीवन से जूझते हुए मोगली अपनी हिम्मत और सूझबूझ के दम पर अपने दोस्तों और साथियों के साथ मिल कर शेर खान को मात देता है।
हर किसी को यह कहानी पता है। ढेरों बार छोटे-बड़े पर्दे पर यह आ चुकी है। तो फिर इस फिल्म में नया क्या है? नया है इसका लाइव प्रस्तुतिकरण। कम्प्यूटर ग्राफिक्स की अद्भुत कारीगरी के साथ नन्हे नील सेठी की उम्दा एक्टिंग देखते हुए यह कसक भी होती है कि क्यों हर बार मोगली को बाहर वाले ही पर्दे पर लाते हैं। हमारे फिल्मकारों को ये कहानियां क्यों नहीं दिखतीं?
पौने दो घंटे की कहानी सीन-दर-सीन आगे बढ़ते हुए इस कदर बांधे रखती है कि आप पर्दे से एक पल के लिए भी नज़रें नहीं हटा पाते। जंगल के जीवन की बातें दिखाती यह फिल्म काफी कुछ बताती-सिखाती भी है। मनोरंजन तो खैर इसमें भरपूर है ही। बस, एक ही कमी खलती है कि कहानी का काफी बड़ा हिस्सा अंधेरे या रात को दर्शाता है जिसके लिए आंखों को ज़्यादा ज़ोर लगाना पड़ता है। 3-डी वाले सीन भी न तो ज़्यादा हैं और न ही कुछ खास। डिज़्नी वालों ने अपने को अंग्रेजी वर्ज़न दिखाया सो हिन्दी की डबिंग पर टिप्पणी नहीं की जा सकती। लेकिन इरफान, ओम पुरी, प्रियंका चोपड़ा, नाना पाटेकर, शेफाली शाह जैसे बड़े सितारों की आवाजें हैं तो निराशा नहीं होनी चाहिए। वैसे बता दें कि अंग्रेज़ी वर्जन में ‘जंगल-जंगल बात चली है पता चला है, चड्डी पहन के फूल खिला है, फूल खिला है…’ वाला यादगार-शानदार गाना नहीं है।
नई पीढ़ी इस कहानी से अंजान न रहे सो उन्हें तो यह फिल्म ज़रूर देखनी चाहिए। वैसे, हर किसी के लिए है यह फिल्म।
अपनी रेटिंग-चार स्टार
(नोट-इस फिल्म की रिलीज़ के समय मेरा यह रिव्यू किसी अन्य पोर्टल पर छपा था)
Release Date-08 April, 2016
(दीपक दुआ फिल्म समीक्षक व पत्रकार हैं। 1993 से फिल्म-पत्रकारिता में सक्रिय। मिज़ाज से घुमक्कड़। ‘सिनेयात्रा डॉट कॉम’ (www.cineyatra.com) के अलावा विभिन्न समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, न्यूज पोर्टल आदि के लिए नियमित लिखने वाले दीपक ‘फिल्म क्रिटिक्स गिल्ड’ के सदस्य हैं और रेडियो व टी.वी. से भी जुड़े हुए हैं।)