-दीपक दुआ… (This review is featured in IMDb Critics Reviews)
अयान कपूर मर कर ‘ऊपर’ पहुंचा है। नहीं, मर कर नहीं, अभी नीचे उसका ऑपरेशन चल रहा है। उधर ऊपर चित्रगुप्त (जिसे सेंसर ने हटा कर सिर्फ सी.जी. कर दिया) उसके कर्मों का लेखा-जोखा कर रहे हैं। उसके किए अच्छे-बुरे कर्मों के मुताबिक उसके पाप और पुण्य के घड़े भरे जा रहे हैं। यदि पाप ज़्यादा हुए तो नरक मिलेगा और पुण्य ज़्यादा हुए तो वापस जीवन। एक-एक करके अयान के किए काम उसके सामने आ रहे हैं और आखिर…!
भले ही इस फिल्म की कहानी किसी विदेशी फिल्म से ली गई हो लेकिन अच्छे-बुरे कर्मों वाली थ्योरी हम लोगों के लिए नितांत अपनी है। जैसी करनी वैसी भरनी में यकीन रखने वाले हम लोगों के लिए इस कहानी में दिखाई गई घटनाएं पराई नहीं लगतीं। नई पीढ़ी के दर्शकों के लिए मामला ज़्यादा उपदेशात्मक न हो जाए इसलिए इस कहानी को हल्के-फुल्के हास्य में लपेट कर परोसा गया है। इससे इसे हज़म करना तो आसान हुआ ही है, यह मनोरंजक भी हो उठी है। यह अलग बात है कि इसका यही हल्का-फुल्कापन इसे कई जगह कमज़ोर भी बनाता है। घटनाओं, बातों में गहराई की कमी इसे गाढ़ा नहीं होने देती। लेकिन बनाने वालों ने जान-बूझ कर इसका यही कलेवर रखा है तो भला उसमें मीन-मेख क्यों निकालना। हां, जो दिखाया गया उसमें और अधिक रोचकता, और अधिक हास्य इसमें और अधिक जान भर सकता था। अच्छे संवादों की कमी भी इसका असर थामती है।
इंद्र कुमार अनुभवी निर्देशक हैं। सीन बनाने आते हैं उन्हें। इस फिल्म में वह बहुत अधिक प्रभावी भले न हुए हों, कुछ एक जगह अपना असर छोड़ पाने में कामयाब हुए हैं। सिद्धार्थ मल्होत्रा अपनी सीमित रेंज में रह कर ठीक-ठाक काम कर जाते हैं। रकुल प्रीत सिंह साधारण रहीं। नोरा फतेही जिस ‘काम’ के लिए आई थीं, उसे ठीक से कर गईं। अजय देवगन कभी खिले-खिले तो कभी बुझे-बुझे रहे। बाकी लोग जंचे। गीत-संगीत कामचलाऊ किस्म का रहा। योहानी के गाए ‘मानिके मगे हिते…’ को सुनना-देखना अच्छा लगता है। सैट, कैमरा, स्पेशल इफैक्ट्स ठीक रहे।
यह फिल्म हंसते-हंसाते कुछ असरदार बातें कह जाती है। इसे तसल्ली से देखा जाए तो यह कुछ सिखा भी जाती है। इसे देखने के बाद अपने भीतर या आसपास कुछ बदलने का मन करे तो संकोच मत कीजिएगा। उंगली पकड़ कर चलाना भी तो सिनेमा का ही एक काम है।
(रेटिंग की ज़रूरत ही क्या है? रिव्यू पढ़िए और फैसला कीजिए कि फिल्म कितनी अच्छी या खराब है। और हां, इस पोस्ट के नीचे कमेंट कर के इस रिव्यू पर अपने विचार ज़रूर बताएं।)
Release Date-25 October, 2022 in theaters.
(दीपक दुआ फिल्म समीक्षक व पत्रकार हैं। 1993 से फिल्म–पत्रकारिता में सक्रिय। मिज़ाज से घुमक्कड़। ‘सिनेयात्रा डॉट कॉम’ (www.cineyatra.com) के अलावा विभिन्न समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, न्यूज पोर्टल आदि के लिए नियमित लिखने वाले दीपक ‘फिल्म क्रिटिक्स गिल्ड’ के सदस्य हैं और रेडियो व टी.वी. से भी जुड़े हुए हैं।)
इसे ज़रूर देखुंगी
राजेन्द्र कुमार साहब की झुक गया आसमान पूरी उड़ा ली है
नहीं…
इंद्र कुमार की फिल्मों की अपनी अलग पहचान है उनकी छवि के मुताबिक इस फिल्म को आम आदमी के लिए तैयार किया गया है कहानी किरदार और अभिनय सब कुछ मनोरंजन के उद्देश्य से तैयार किया गया है! और वो हो जाता है!! इतना काफी है अजय देवगन को इस तरह की कहानियों से बचना चाहिए बाकी कलाकार बस अभिनय का शौक पूरा करते हुए दिखते हैं! थैंक गॉड की जगह थैंक दीपक जी अपने शब्दों से लगातार मार्गदर्शन करने के लिए धन्यवाद
शुक्रिया