-दीपक दुआ… (This review is featured in IMDb Critics Reviews)
राम सेतु-यानी समुद्र में डूबी हुई पत्थरों की वह संरचना जो भारत और श्रीलंका को जोड़ती है। मान्यता है कि यह पत्थरों का वही पुल है जो रामायण काल में श्रीराम की सेना ने लंका पर चढ़ाई के समय बनाया था। करोड़ों लोगों की आस्था जुड़ी हुई है इससे लेकिन बहुतेरे लोगों का यह भी मानना है कि यह सिर्फ एक कुदरती रचना है। यह भी कहा जाता है कि यदि इसे तोड़ दिया जाए तो श्रीलंका के पिछली तरफ से घूम कर आने-जाने वाले जहाजों का काफी समय और पैसा बचाया जा सकता है। कुछ बरस पहले की सरकार ने इसे तोड़ने की तैयारी शुरू भी कर दी थी। तब मामला अदालत में गया था और बहस यह हुई थी कि राम और उनसे जुड़ी बातें महज़ आस्था हैं या इतिहास का हिस्सा। यह फिल्म उसी वक्त की कहानी कहती है जिसमें एक आर्कियोलॉजिस्ट आर्यन को यह ज़िम्मा मिला है कि वह इसे श्रीराम के समय (यानी सात हज़ार साल पहले) से पुरानी और कुदरती संरचना साबित कर दे ताकि इसे तोड़ा जा सके। लेकिन आर्यन को अपनी खोज में ऐसे सबूत मिलते हैं कि यह राम के समय की प्राकृतिक नही बल्कि मानवीय रचना है और वह इसे बचाने में जुट जाता है।
किसी चीज़, खज़ाने या तथ्य की तलाश में निकले लोगों की कहानी दिखाती ‘अभियान फिल्मों’ को हमने हॉलीवुड के पर्दे पर बहुत देखा है लेकिन अपने यहां इस किस्म की फिल्मों की कोई खास परंपरा बन ही नहीं पाई। वजह चाहे इस किस्म की कहानियों की कमी रही हो या हमारी फिल्मों का परंपरागत ढांचा। बदलते वक्त में आ रही अलग-अलग किस्म की कहानियों की कतार में यह फिल्म इस कमी को दूर करती है। बड़ी बात यह भी है कि यह फिल्म किसी ऐसे-वैसे अभियान की बजाय उस राम सेतु के अस्तित्व पर बात करती है जिसे नकारना करोड़ों लोगों की आस्था के साथ खेलना हो जाएगा। इस दुस्साहस के लिए इसे लिखने-बनाने वालों की सराहना होनी चाहिए। लेकिन…!
लेकिन इस किस्म की कहानी कहते समय जिस किस्म की सशक्त लेखनी, जिस तरह के कसे हुए निर्देशन और जिस प्रकार के सधे हुए अभिनय की दरकार होती है, वह इस फिल्म में नज़र नहीं आता। हालांकि इसे लिखते समय अभिषेक शर्मा और डॉ. चंद्रप्रकाश द्विवेदी ने काफी तथ्यों, किताबों का सहारा लिया जिनसे इसकी पटकथा को बल ही मिला, लेकिन इसकी स्क्रिप्ट में वे वैसा वाला पैनापन नहीं ला पाए जो दर्शकों को हर समय बांधे रख सके। आर्यन को नास्तिक बताने का दांव सहूलियत भरा और कहानी को अफगानिस्तान से शुरू करने वाला हिस्सा बोरियत भरा लगता है। बाद में आर्यन का ‘राम को साबित करना है तो रावण को साबित कर दो’ वाला फॉर्मूला भी फिल्म को भटकाता है। सुप्रीम कोर्ट तीन दिन में राम सेतु को तोड़ने का फैसला देने वाला है, ऐसे में आर्यन को जो करना है फटाफट करना है। लेकिन इस फटाफटी के चक्कर में ज़रूरी रोमांच तो निर्देशक अभिषेक शर्मा नहीं जमा कर पाए अलबत्ता कुछ एक जगह छेद ज़रूर छोड़ गए। बेहतर होता कि वह श्रीलंका वाले हिस्से को थोड़ा और विस्तार देते। मुमकिन है तब फिल्म और गहराई में उतर पाती।
इस किस्म की फिल्मों में जिस तरह के किरदारों का एक तय सैटअप होता है, यहां भी वही है। एक हीरो, एक मददगार, दो-एक लड़कियां, एक अमीर खलनायक, उसके भेजे गुंडे और ऐन वक्त पर बचाने आ गए कुछ लोग। अक्षय कुमार जिस तरह का काम करते आए हैं, यहां भी उन्होंने वैसा ही किया है। बाकी के लोग बस ठीकठाक ही रहे हैं। हां, तेलुगू सिनेमा से आए सत्यदेव ने ज़रूर ए.पी. के रोल में अच्छा काम किया है। लोकेशन उम्दा हैं, कैमरा शानदार और वी.एफ.एक्स. जानदार। गीत-संगीत नहीं है।
फिल्म बुरी नहीं है। राम और उनसे जुड़ी बातों, घटनाओं में आस्था रखने वालों को तो यह भीतर तक छुएगी। क्लाइमैक्स वाला हिस्सा रोमांचित भी करेगा। लेकिन इसे देखने और देख कर पसंद करने के बाद भी यह मलाल मन में ज़रूर रहेगा कि काश इसे थोड़ा और कस कर लिखा जाता, कस कर बनाया जाता तो यह यूं हिचकोले नहीं खाती, थम कर रहती, जम कर रहती।
(रेटिंग की ज़रूरत ही क्या है? रिव्यू पढ़िए और फैसला कीजिए कि फिल्म कितनी अच्छी या खराब है। और हां, इस पोस्ट के नीचे कमेंट कर के इस रिव्यू पर अपने विचार ज़रूर बताएं।)
Release Date-25 October, 2022 in theaters.
(दीपक दुआ फिल्म समीक्षक व पत्रकार हैं। 1993 से फिल्म–पत्रकारिता में सक्रिय। मिज़ाज से घुमक्कड़। ‘सिनेयात्रा डॉट कॉम’ (www.cineyatra.com) के अलावा विभिन्न समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, न्यूज पोर्टल आदि के लिए नियमित लिखने वाले दीपक ‘फिल्म क्रिटिक्स गिल्ड’ के सदस्य हैं और रेडियो व टी.वी. से भी जुड़े हुए हैं।)
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राम
किसी भी कहानी से कहीं ज्यादा उसका प्रस्तुतिकरण मायने रखता है! सच कहूं तो इस तरह के कथानक पर काम करना किसी जोखिम से कम नहीं जहां पर करोड़ो लोगो की आस्था जुड़ी हो वहा जरा सी भी चूक हुई नहीं की….!! ये कहानी जोश होश और उत्साह के साथ साथ और भी बहुत कुछ डिमांड करती है और सही संतुलन के साथ कमाल भी कर सकती थी! फिर भी श्री राम के नाम का सहारा रामसेतु को कितना पहुंचेगा? दीपक जी से बेहतर कौन बताएगा
धन्यवाद