-दीपक दुआ… (This review is featured in IMDb Critics Reviews)
आमिर खान जब किसी फिल्म में होते हैं तो उम्मीदें खुद-ब-खुद बढ़ जाती हैं। लेकिन ये उम्मीदें सौ करोड़ी कलैक्शन या टिकट-खिड़की पर मचने वाले तूफान से ज़्यादा उस फिल्म की क्वालिटी के स्तर पर होती हैं और इस नजरिए से यह फिल्म भी आपको निराश नहीं करती है।
एक नामी अभिनेता की गाड़ी समंदर में गिर जाती है और वह मारा जाता है। इंस्पैक्टर सुर्जन सिंह शेखावत को पता चलता है कि कोई उस हीरो को ब्लैकमेल कर रहा था। वह कड़ी से कड़ी जोड़ते हुए आगे बढ़ता है। इस काम में कॉलगर्ल रोज़ी (करीना कपूर) उसकी मदद करती है। पर अंत में जो सच सामने आता है वह सबको चौंका देता है। उधर सुर्जन की पत्नी (रानी मुखर्जी) अवसादग्रस्त है। इस केस का असर उसके व्यक्तिगत जीवन पर भी पड़ने लगता है लेकिन अंत में इसी केस की वजह से सब ठीक भी हो जाता है।
इस फिल्म को एक सस्पेंस थ्रिलर की बजाय एक साईक्लॉजिकल थ्रिलर कहना ज़्यादा सही होगा। फिल्म की कहानी के उतार-चढ़ाव इसकी पटकथा के जरिए बखूबी उभारे गए हैं। संवाद कई जगह काफी असरदार हैं। रीमा कागती के निर्देशन में भी मैच्योरिटी है। फिल्म की रफ्तार ज़रूर कहीं-कहीं काफी धीमी है और यही वजह है कि आम मसाला फिल्मों के दीवाने दर्शक इसे कम पसंद करेंगे।
आमिर खान ने बहुत ही सलीके से अपने किरदार को निभाया है। इसे उनका अंडरप्ले भी कहा जा सकता है। रानी मुखर्जी और करीना कपूर भी प्रभावी रहीं। नवाजुद्दीन सिद्दिकी का उल्लेख ज़रूरी है। सब-इंस्पैक्टर बने राजकुमार यादव भी असरदार रहे और बाकी के कलाकार भी। संगीत साधारण रहा है। फिल्म बड़े शहरों और मल्टीप्लेक्स के दर्शकों के टेस्ट की ही ज़्यादा है लेकिन इससे इसका महत्व कम नहीं हो जाता। अच्छा सिनेमा पसंद है तो इसे मिस मत कीजिएगा और हां, इसका सस्पेंस मत खोलिएगा वरना दूसरों का मज़ा किरकिरा हो जाएगा।
अपनी रेटिंग-3.5 स्टार
(नोट-इस फिल्म की रिलीज़ के समय यह रिव्यू अन्य किसी पोर्टल पर प्रकाशित हुआ था।)
Release Date-30 November, 2012
(दीपक दुआ फिल्म समीक्षक व पत्रकार हैं। 1993 से फिल्म-पत्रकारिता में सक्रिय। मिज़ाज से घुमक्कड़। ‘सिनेयात्रा डॉट कॉम’ (www.cineyatra.com) के अलावा विभिन्न समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, न्यूज पोर्टल आदि के लिए नियमित लिखने वाले दीपक ‘फिल्म क्रिटिक्स गिल्ड’ के सदस्य हैं और रेडियो व टी.वी. से भी जुड़े हुए हैं।)