• Home
  • Film Review
  • Book Review
  • Yatra
  • Yaden
  • Vividh
  • About Us
CineYatra
Advertisement
  • होम
  • फिल्म/वेब रिव्यू
  • बुक-रिव्यू
  • यात्रा
  • यादें
  • विविध
  • हमारे बारे में
No Result
View All Result
  • होम
  • फिल्म/वेब रिव्यू
  • बुक-रिव्यू
  • यात्रा
  • यादें
  • विविध
  • हमारे बारे में
No Result
View All Result
CineYatra
No Result
View All Result
ADVERTISEMENT
Home फिल्म/वेब रिव्यू

ओल्ड रिव्यू-पेप्सी की तरह है ‘स्टुडैंट ऑफ द ईयर’

Deepak Dua by Deepak Dua
2012/10/19
in फिल्म/वेब रिव्यू
0
ओल्ड रिव्यू-पेप्सी की तरह है ‘स्टुडैंट ऑफ द ईयर’
Share on FacebookShare on TwitterShare on Whatsapp

-दीपक दुआ… (This review is featured in IMDb Critics Reviews)

करण जौहर को अपनी सीमाएं अच्छी तरह से पता हैं और यही कारण है कि वह अपनी बनाई या अपने बैनर की फिल्मों में कोई महानता या गहराई डालने की बजाय सिर्फ उतना भर और जान-बूझ कर वही चीज़ परोसते हैं जिससे दर्शकों को लुभाया जा सके क्योंकि चाहे कुछ भी कहा जाए, फिल्मी दुनिया का सबसे बड़ा सच तो बॉक्स-ऑफिस ही है और करण की यह फिल्म भी इस सच को सार्थक करती हुई नज़र आती है।

एक ऐसा स्कूल (हालांकि यह कॉलेज जैसा है और इसके ‘बच्चे’ भी काफी बड़े हैं) जिसमें दो तरह के लोग हैं-टाटा यानी बेहद अमीर और बाटा यानी गरीब। अलबŸा ये दोनों ही बहुत शानदार डिज़ाइनर कपड़े पहनते हैं। पूरे स्कूल में टीचर के नाम पर हैं एक डीन जो समलिंगी किस्म का है और दूसरा है स्पोर्ट्स का कोच जिस पर डीन लाइन मारता रहता है। एक हीरो टाटा है जिसके पास बाप का भरपूर पैसा है लेकिन वह रॉकस्टार बनना चाहता है तो दूसरा हीरो बाटा है जो टाटा बनना चाहता है। हीरोइन टाटा किस्म की है लेकिन दोनों हीरो के बीच कन्फ्यूज़ रहती है। यहां के बच्चे करण जौहर की फिल्मों के बच्चों की तरह पढ़ाई छोड़ कर सब कुछ करते हैं और आश्चर्यजनक रूप से सारे के सारे पढ़ाई समेत हर काम में अच्छे हैं। दिल, प्यार, मोहब्बत, ईर्ष्या, होड़ जैसी चीज़ों में ये उलझे रहते हैं। अरे, टाटा हीरो के भाई की थाईलैंड में होने वाली शादी का ज़िक्र तो रह ही गया जिसमें ये सारे टाटा-बाटा एक साथ जाते हैं और खूब मस्ती करते हैं। भई, करण ने फिल्म बनाई किस लिए है-मौज मस्ती दिखाने के लिए ही न!

फिल्म की कहानी साधारण है और उस पर जो पटकथा लिखी गई है उसमें ढेर सारे झोल भी हैं। लेकिन करण की तमाम फिल्मों की तरह यह फिल्म भी अपनी चमकदार पैकेजिंग के चलते ऐसी तो बन ही गई है जिससे एक अच्छा टाइमपास मनोरंजन मिलता है। हां, बड़े शहरों और मल्टीप्लेक्स वाले दर्शकों को इसे देख कर कहीं ज़्यादा सुकून मिलेगा। करण की तारीफ यह कह कर भी की जा रही है कि उन्होंने तीन नए कलाकार इंडस्ट्री को दिए हैं। बात सही भी है। डेविड धवन के बेटे वरुण धवन का काम अच्छा है लेकिन सिद्धार्थ मल्होत्रा अपने कैरेक्टर की वजह से उनसे बेहतर लगते हैं। महेश भट्ट और सोनी राज़दान की बेटी आलिया भट्ट खूबसूरत गुड़िया सरीखी लगती हैं। अभिनय के मामले में वह अभी भले ही कच्ची हों लेकिन कैमरे के सामने अदाएं दिखाने और कपड़े उतारने का आत्मविश्वास उनमें भरपूर हैं और यह तय है कि अच्छे मौके मिलें तो ये तीनों ही यहां लंबे समय तक टिकने वाले हैं। ऋषि कपूर ने समलिंगी डीन के किरदार को कायदे से निभाया है। बाकी सब भी अच्छे रहे। खासतौर से बोमन ईरानी के बेटे कायोज़ ईरानी का काम बहुत प्रभावी रहा। फिल्म का म्यूज़िक फिल्म के मिज़ाज के मुताबिक यंग फ्लेवर वाला रहा है।

कुल मिला कर ‘स्टुडैंट ऑफ द ईयर’ आपके दिल-दिमाग को नहीं झंझोड़ती, आपके जेहन में बरसों तक रच-बस जाने का माद्दा भी नहीं है इसमें। लेकिन इसमें ऐसा मनोरंजन है जो चखने में स्वादिष्ट है, जो आंखों को सुहाता है, जो कानों को प्यारा लगता है। और भला क्या चाहिए आपको? हाथों में पॉपकॉर्न-पेप्सी लीजिए और देखिए इस फिल्म को। वैसे यह है भी पेप्सी की ही तरह। एकदम से अच्छी लगने वाली, मुंह को मीठा करने वाली, कुछ समय तक पेट को भी भरने वाली। लेकिन थोड़ी देर बाद…? सब गायब…!

अपनी रेटिंग-2.5 स्टार

(मेरा यह रिव्यू इस फिल्म की रिलीज़ के समय किसी पोर्टल पर प्रकाशित हुआ था)

Release Date-19 October, 2012

(दीपक दुआ फिल्म समीक्षक व पत्रकार हैं। 1993 से फिल्म–पत्रकारिता में सक्रिय। मिज़ाज से घुमक्कड़। ‘सिनेयात्रा डॉट कॉम’ (www.cineyatra.com) के अलावा विभिन्न समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, न्यूज पोर्टल आदि के लिए नियमित लिखने वाले दीपक ‘फिल्म क्रिटिक्स गिल्ड’ के सदस्य हैं और रेडियो व टी.वी. से भी जुड़े हुए हैं।)

Tags: Alia Bhattgautami kapoorkaran joharkayoze iranimanini demanjot singhram kapoorrishi kapoorronit roysana saeedSidharth MalhotraStudent of the year reviewVarun Dhawan
ADVERTISEMENT
Previous Post

ओल्ड रिव्यू-मनोरंजन का सुहाना सफर ‘दिल्ली सफारी’ में

Next Post

ओल्ड रिव्यू-अपने ही बनाए फिल्मी ‘चक्रव्यूह’ में फंसे प्रकाश झा

Related Posts

रिव्यू-मन में उजाला करते ‘सितारे ज़मीन पर’
CineYatra

रिव्यू-मन में उजाला करते ‘सितारे ज़मीन पर’

रिव्यू-खोदा पहाड़ निकला ‘डिटेक्टिव शेरदिल’
CineYatra

रिव्यू-खोदा पहाड़ निकला ‘डिटेक्टिव शेरदिल’

रिव्यू-चैनसुख और नैनसुख देती ‘हाउसफुल 5’
CineYatra

रिव्यू-चैनसुख और नैनसुख देती ‘हाउसफुल 5’

रिव्यू-भव्यता से ठगती है ‘ठग लाइफ’
CineYatra

रिव्यू-भव्यता से ठगती है ‘ठग लाइफ’

रिव्यू-‘स्टोलन’ चैन चुराती है मगर…
CineYatra

रिव्यू-‘स्टोलन’ चैन चुराती है मगर…

रिव्यू-सपनों के घोंसले में ख्वाहिशों की ‘चिड़िया’
फिल्म/वेब रिव्यू

रिव्यू-सपनों के घोंसले में ख्वाहिशों की ‘चिड़िया’

Next Post
ओल्ड रिव्यू-अपने ही बनाए फिल्मी ‘चक्रव्यूह’ में फंसे प्रकाश झा

ओल्ड रिव्यू-अपने ही बनाए फिल्मी ‘चक्रव्यूह’ में फंसे प्रकाश झा

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

  • होम
  • फिल्म/वेब रिव्यू
  • बुक-रिव्यू
  • यात्रा
  • यादें
  • विविध
  • हमारे बारे में
संपर्क – dua3792@yahoo.com

© 2021 CineYatra - Design & Developed By Beat of Life Entertainment

No Result
View All Result
  • होम
  • फिल्म/वेब रिव्यू
  • बुक-रिव्यू
  • यात्रा
  • यादें
  • विविध
  • हमारे बारे में

© 2021 CineYatra - Design & Developed By Beat of Life Entertainment