-दीपक दुआ… (This review is featured in IMDb Critics Reviews)
पहले तो यही बता दें कि यह एक एनिमेशन फिल्म है जो 3-डी में बनी है। एनिमेशन यानी कार्टून किरदार और वे भी सारे के सारे जानवर! यह तो बच्चों की फिल्म हुई। तो चलिए छोड़िए, इस समीक्षा को क्या पढ़ना और इस फिल्म को क्या देखना। क्यों…?
अगर आपके मन में कुछ ऐसे ही ख्याल आ रहे हैं तो यकीन मानिए, आप बहुत कुछ मिस करने जा रहे हैं। हॉलीवुड में बनने वाली ऐसी एनिमेशन फिल्मों की चर्चा अपने यहां अक्सर होती है जिनका पहला निशाना भले ही छोटी उम्र के दर्शक होते हों लेकिन बड़े भी उन्हें खूब एन्जॉय करते हैं और इसी वजह से वे फिल्में बड़े-बड़े सितारों वाली फिल्मों से भी कहीं ज्यादा कमाई कर जाती हैं। इस फिल्म को बेझिझक आप उन फिल्मों के बराबर रख सकते हैं-कहानी के स्तर पर भी, एनिमेशन की क्वालिटी के स्तर पर भी और इसमें परोसे गए मनोरंजन की खुराक के स्तर पर भी।
यह कहानी है मुंबई के नेशनल पार्क में रहने वाले जानवरों की जहां एक सुनहरी सुबह तेंदुआ सुलतान (सुनील शैट्टी) अपने बच्चे युवी (स्विनी खारा) के साथ मस्ती कर रहा है। तभी कुछ इंसान बड़ी-बड़ी मशीनों के साथ जंगल साफ करने आ धमकते हैं। उनका सामना करते हुए सुलतान मारा जाता है। उस रात जंगल में सभी जानवरों की मीटिंग होती है जिसमें इस बात पर चिंता जताई जाती है कि अगर इंसानों ने यह जंगल साफ कर दिया तो जानवर बेचारे रहेंगे कहां? सुलतान की पत्नी (उर्मिला मातांडकर) समेत ज़्यादातर जानवर कहते हैं कि हम इंसानों से नहीं लड़ सकते सो हमें यह जंगल छोड़ कर कहीं और आशियाना बना लेना चाहिए। गुस्सैल बंदर बजरंगी (गोविंदा) का मानना है कि हमें इंसानों पर हमला बोल देना चाहिए। पर बुजुर्ग भालू बग्गा (बोमन ईरानी) का मानना है कि सारी समस्याओं को बातचीत से हल किया जा सकता है। अब दिक्कत यह है कि जानवरों में से किसी को भी इंसानों की भाषा तो आती नहीं है। कबूतर एयर इंडिया का सुझाव है कि इंसानों की तरह बोलने वाले तोते एलैक्स (अक्षय खन्ना) को इसके लिए राज़ी किया जाए। पर एलैक्स तो खुद किसी इंसान के घर में ऐश से रहता है। ये लोग उसे किडनैप करके ले तो आते हैं पर उसे तो इंसानों से प्यार है और जानवरों से नफरत। साथ ही वह इन्हें सुझाव देता है कि इन सब को दिल्ली जाकर संसद में अपनी बात रखनी चाहिए। तो अब इनमें से पांच जानवर निकल पड़ते हैं दिल्ली की ओर। रास्ते में इन्हें और भी कई जानवर मिलते हैं और इनकी यह यात्रा असल में नफरत से प्यार की व दुश्मनी से दोस्ती की यात्रा में बदल जाती है। इनके साथ और भी लोग जुड़ जाते हैं और यह सब चल पड़ते हैं अपने लिए न्याय की मांग करने दिल्ली की ओर जहां राजपथ पर ये धरना देते हैं और खुद प्रधानमंत्री को आकर इनकी मांगें सुनने और मानने पर मजबूर होना पड़ता है।
2011 में गोआ में हुए अपने अंतराष्ट्रीय फिल्म समारोह में भी यह फिल्म दिखाई और काफी पसंद की गई थी। इस फिल्म की दो बड़ी खूबियों में से पहली है इसका एनिमेशन जो दुनिया की किसी भी बेहतरीन एनिमेशन फिल्म से कमतर नहीं है। पर्दे पर किरदारों की भाव-भंगिमाएं, उनकी होठों की हलचल से लेकर सब कुछ बेहद कमाल का है। इसकी दूसरी खूबी है इसकी स्क्रिप्ट जो अपने यहां की मसाला फिल्मों सरीखी है जिसमें वह सब कुछ है जो मनोरंजन की चाह रखने वालों को चाहिए होता है। निर्देशक निखिल आडवाणी ने इस बात को बखूबी समझा है कि अगर कुछ गंभीर बात दर्शकों के गले से उतारनी है तो उसे सरलता का जामा पहनाना होगा और यह फिल्म इस काम को शानदार तरीके से अंजाम देती है। तमाम कलाकारों की डबिंग बढ़िया है। अपने-आप में यह एक संपूर्ण पारिवारिक मनोरंजक फिल्म है जिसे हर बड़े को, हर बच्चे को देखना चाहिए।
अपनी रेटिंग-4 स्टार
(इस फिल्म की रिलीज़ के समय मेरा यह रिव्यू किसी अन्य पोर्टल पर प्रकाशित हुआ था)
Release Date-19 October, 2012
(दीपक दुआ फिल्म समीक्षक व पत्रकार हैं। 1993 से फिल्म–पत्रकारिता में सक्रिय। मिज़ाज से घुमक्कड़। ‘सिनेयात्रा डॉट कॉम’ (www.cineyatra.com) के अलावा विभिन्न समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, न्यूज पोर्टल आदि के लिए नियमित लिखने वाले दीपक ‘फिल्म क्रिटिक्स गिल्ड’ के सदस्य हैं और रेडियो व टी.वी. से भी जुड़े हुए हैं।)