-दीपक दुआ… (This Review is featured in IMDb Critics Reviews)
इस रिव्यू का हैडिंग ‘कैसी (या कैसा) है यह शैतान’ हो सकती थी लेकिन जिन लोगों ने 1999 में आई रामगोपाल वर्मा की मनोज वाजपेयी, उर्मिला मातोंडकर वाली फिल्म ‘कौन’ देखी होगी वे इस हैडिंग से रिलेट करेंगे और समझ पाएंगे कि ‘शैतान’ का मुखौटा लगा कर आई इस फिल्म का चेहरा ‘कौन’ से मिलता-जुलता है। फर्क इतना है कि जहां ‘कौन एक साइको-सस्पैंस थ्रिलर थी वहीं यह फिल्म सुपर नैचुरल-हॉरर थ्रिलर का लबादा ओढ़े हुए है।
ऐसी फिल्मों की कहानी नहीं बताई जाती लेकिन इसके ट्रेलर से इतना तो साफ है कि दूर कहीं वीराने में स्थित एक बड़े से बंगले में चार लोग हैं। पति-पत्नी, उनकी जवान बेटी और छोटा बेटा। एक अजनबी इस घर में घुस आया है जिसने किसी तरह से उनकी बेटी को अपने वश में कर लिया है। अब यह लड़की आंख मूंद कर उस शैतान अजनबी का कहना मान रही है। कौन है यह शैतान? क्या चाहता है? क्या इस घर के लोग इस शैतान से छुटकारा पा सकेंगे? और क्या यह लड़की इस शैतान के चंगुल से छूट पाएगी?
2023 में आई गुजराती फिल्म ‘वश’ का यह हिन्दी रीमेक मूल फिल्म के आने के साल भर के अंदर ही रिलीज़ हो गया है। ज़ाहिर है कि इस पर फटाफट काम हुआ है और यह ‘फटाफटी’ इस फिल्म में झलकती है। मूल गुजराती फिल्म की कहानी को इंटरवल के बाद थोड़ा बदला गया है लेकिन फिल्म की मूल आत्मा वही पुरानी है। हां, देखने वालों को इसका फ्लेवर ‘कौन’ सरीखा और इसके तेवर ‘दृश्यम’ सरीखे लग सकते हैं जहां एक बाप (और मां भी) अपनी बेटी को मुसीबत से बचाने के लिए जूझ रहे हैं।
फिल्म की शुरुआत अच्छी है और जल्द ही यह ‘डर’ परोसने वाले अपने असली ट्रैक पर आ जाती है। इंटरवल तक की स्क्रिप्ट दिलचस्पी जगाए रखती है लेकिन उसके बाद इसमें दोहराव और खिंचवा महसूस होने लगता है। इस किस्म की फिल्मों में जिस तरह की कसावट होनी चाहिए, जिस किस्म की शार्प एडिटिंग होनी चाहिए, वह नदारद है। ऐसी फिल्मों को छोटा रख कर इनका असर पैना किया जाता है लेकिन यहां ऐसा नहीं हो पाया है और दर्शक बेचारा मजबूरी में पहलू बदलते हुए सीट पर बैठने को मजबूर हुआ है। निर्देशक विकास बहल को स्क्रिप्ट और एडिटिंग, दोनों मोर्चों पर थोड़ी और तिरछी नज़र रखनी चाहिए थी। गानों की तो इसमें ज़रूरत ही नहीं थी।
स्क्रिप्ट में कुछ एक जगह गलतियां भी दिखती हैं। संवाद दो-एक ही अच्छे हैं। इस किस्म की फिल्मों की तरह सुनसान इलाके की लोकेशन लेकर और वहां पर बारिश करवा कर माहौल तो तैयार कर लिया लेकिन कैमरे के ज़रिए चौंकाने या दहलाने का काम करना ये लोग भूल गए। यहीं कारण है कि इसे देखते हुए उत्सुकता तो रहती है, जुगुप्सा नहीं हो पाती। फिल्म का अंत कमज़ोर है। हां, फिल्म यह संदेश ज़रूर दे जाती है कि अपने बच्चों, खासकर बेटियों को अजनबियों से दूर रहने की शिक्षा दी जाए क्योंकि कुछ नहीं पता कि कब कोई शैतान इंसान के भेष में आकर उन्हें अपने वश में कर ले।
अजय देवगन और ज्योतिका सधे हुए लगते हैं। उनकी बेटी के रोल में ‘वश’ वाली मूल अदाकारा जानकी बोदीवाला का काम उभर कर दिखता है। इनके बेटे के किरदार में अंगद राज का काम भी अच्छा है। लेकिन छोटे से बच्चे का पिता को नाम से पुकारना फिल्मी पर्दे पर भले ही ‘कूल’ लगता हो, अभी ऐसी कुप्रथा हमारे परिवारों में नहीं आ पाई है, यह फिल्म वालों को सोचना होगा। आर. माधवन अपनी अदाकारी से गहरा असर छोड़ते हैं।
बावजूद कुछ कमियों और एकरसता के, यह फिल्म ठीक-ठाक किस्म की है। इस तरह की फिल्में पसंद करने वालों को यह अच्छी लग सकती है। हां, यह कुछ खास कहती नहीं है, कुछ गहरा संदेश देती नहीं है, कुछ बड़ी बात सुनाती नहीं है। यही इसकी कमज़ोरी है।
(रेटिंग की ज़रूरत ही क्या है? रिव्यू पढ़िए और फैसला कीजिए कि यह कितनी अच्छी या खराब है। और हां, इस पोस्ट के नीचे कमेंट कर के इस रिव्यू पर अपने विचार ज़रूर बताएं।)
Release Date-08 March, 2024 in theaters
(दीपक दुआ फिल्म समीक्षक व पत्रकार हैं। 1993 से फिल्म–पत्रकारिता में सक्रिय। मिज़ाज से घुमक्कड़। ‘सिनेयात्रा डॉट कॉम’ (www.cineyatra.com) के अलावा विभिन्न समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, न्यूज पोर्टल आदि के लिए नियमित लिखने वाले दीपक ‘फिल्म क्रिटिक्स गिल्ड’ के सदस्य हैं और रेडियो व टी.वी. से भी जुड़े हुए हैं।)
Aisi movies sirf business purpose ke liye hi hoti h or apke reviews hamare paise bachane ke liye 🙏🙏🙏🙏
उत्तम….
अंदाज़े रिव्यु ही काफी है…. फ़िल्म को देखने क़े लिए…. शायद “कौन “? कौन ही देख लेंगे या दृश्यम ही समझ कर देख लेंगे…