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Home फिल्म/वेब रिव्यू

रिव्यू-अर्थहीन हिंसा पर सार्थक बात करती ‘शैडो असैसिन्स’

Deepak Dua by Deepak Dua
2022/12/08
in फिल्म/वेब रिव्यू
1
रिव्यू-अर्थहीन हिंसा पर सार्थक बात करती ‘शैडो असैसिन्स’
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-दीपक दुआ… (This Review is featured in IMDb Critics Reviews)

उत्तर-पूर्व के राज्यों की बातें हिन्दी फिल्मों में कम होती हैं। खासतौर से वहां की अशांति और हिंसा पर तो यदा-कदा ही बात हुई और वह भी उथले ढंग से। मई, 2022 में आई अनुभव सिन्हा की ‘अनेक’ इस विषय पर थी लेकिन उसमें भी सहजता कम और निजी एजेंडा अधिक था। इस मायने में नीलांजन रीता दता की इस फिल्म ‘शैडो असैसिन्स’ का आना सार्थक लगता है क्योंकि यह असम राज्य की हिंसा के दौर के एक काले अध्याय पर बात करती है।

दो बार राष्ट्रीय पुरस्कार पा चुके नीलांजन इस फिल्म में 1998 से 2001 का वह असम दिखाते हैं जब वहां बहुत सारी ‘सीक्रेट किलिंग’ हो रही थीं। खासतौर से प्रतिबंधित आतंकी संगठन उल्फा वालों के परिवार वालों, दोस्तों, करीबियों को चुन-चुन कर मारा जा रहा था। उन्हें कौन किडनैप करता था, कौन मारता था, यह सामने नहीं आता था। बस, उनकी लाशें कभी नदी में, कभी किसी खेत-तालाब में तो कभी किसी पेड़ पर लटकी हुई मिलती थीं। बाद में सैकिया कमीशन की रिपोर्ट में आया था कि इनमें राजनेताओं की शह पर स्थानीय पुलिस से लेकर ‘सुल्फा’ यानी आत्मसमर्पण कर चुके उल्फा वाले शामिल होते थे। फिल्म दिखाती है कि कैसे उल्फा के एक कमांडर मृदुल के परिवार वालों पर अत्याचार होता है जबकि उनका मृदुल से अब कोई नाता भी नहीं रहा। लेकिन यह अत्याचार इस परिवार को बदल कर रख देता है।

चार लेखकों ने मिल कर जो रचा है वह दर्शकों को बेचैन करने के लिए काफी है। इस किस्म की कहानियां हैरान करती हैं कि महज़ कुछ साल पहले तक अपने देश के किसी राज्य में ऐसा कुछ हो रहा था और कहीं कोई सुगबुगाहट नहीं थी। नीलांजन अपने निर्देशन से वह माहौल रच पाने में कामयाब रहे हैं जो इस किस्म की फिल्मों में होना चाहिए। नतीजतन यह फिल्म दर्शकों पर असर भी छोड़ती है। लेकिन दिक्कत इसकी स्क्रिप्ट के साथ रही है जिसकी धीमी गति इसके असर को कम करती है। वहीं फिल्म में ऐसे कई गैर ज़रूरी दृश्य हैं जो आकर कहानी की लय को तोड़ते हैं। थोड़ी और कसावट इस फिल्म को अधिक असरदार बना सकती थी।

कलाकारों का अभिनय इस फिल्म का सबसे मज़बूत पक्ष है। अनुराग सिंह, मिष्टी चक्रवर्ती, हेमंत खेर और राकेश चतुर्वेदी ओम जैसे मुख्य कलाकार हों या कुछ पल को आए सहर्ष कुमार शुक्ला, वायलेट नाज़िर तिवारी, सौम्य मुखर्जी, स्तुति चौधरी, रंजीता बरुआ आदि, हर किसी ने बहुत ही प्रभावी अभिनय किया है। थाना इंचार्ज के रूप में राकेश चतुर्वेदी ओम का किरदार फिल्म में हास्य की कमी को भी दूर करता है। गीत-संगीत हल्का है। असम की लोकेशंस का फिल्म में खुल कर इस्तेमाल हुआ है। कैमरावर्क भी अच्छा है।

इस फिल्म के साथ दिक्कत यह है कि यह खुल कर कुछ नहीं कहती। इसे हार्ड-हिटिंग बनाया जाता तो यह ज़्यादा कचोटती। अभी तो यह सिर्फ उन घटनाओं को दिखा-बता रही है जो वहां हो रही थीं। हालांकि यह भी कम बड़ी बात नहीं है। उस अर्थहीन हिंसा पर कम से कम कोई सार्थक ढंग से बात तो कर रहा है, वह भी हिन्दी के सिनेमा में, यही काफी है।

(रेटिंग की ज़रूरत ही क्या है? रिव्यू पढ़िए और फैसला कीजिए कि फिल्म कितनी अच्छी या खराब है। और हां, इस पोस्ट के नीचे कमेंट कर के इस रिव्यू पर अपने विचार ज़रूर बताएं

Release Date-09 December, 2022 in theaters.

(दीपक दुआ फिल्म समीक्षक व पत्रकार हैं। 1993 से फिल्म–पत्रकारिता में सक्रिय। मिज़ाज से घुमक्कड़। ‘सिनेयात्रा डॉट कॉम’ (www.cineyatra.com) के अलावा विभिन्न समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, न्यूज पोर्टल आदि के लिए नियमित लिखने वाले दीपक ‘फिल्म क्रिटिक्स गिल्ड’ के सदस्य हैं और रेडियो व टी.वी. से भी जुड़े हुए हैं।)

Tags: anurag singhassamhemant khermishti chakraborthynilaanjan reeta dattarakesh chaturvedirakesh chaturvedi omsaharsh kumar shuklasecret killings of assamshadow assassinsshadow assassins review
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Comments 1

  1. Ritu Rana says:
    2 months ago

    रिव्यू पढ़कर इस फिल्म को देखना बनता है। सच्ची घटनाओं पर फिल्म बनना जरूरी है। देश में क्या होता था कर अब क्या चल रहा है इससे सभी को परिचित होना चाहिए।

    Reply

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