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Home फिल्म/वेब रिव्यू

रिव्यू-हिम्मत, लगन और जुनून की कहानी है ‘साइना’

CineYatra by CineYatra
2021/03/26
in फिल्म/वेब रिव्यू
0
रिव्यू-हिम्मत, लगन और जुनून की कहानी है ‘साइना’
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-गति उपाध्याय… (This review is featured in IMDb Critics Reviews)

किसी खिलाड़ी के नाम में अगर कई फर्स्ट जुड़े हों और वो खिलाड़ी महिला भी हो तो उस पर बायोपिक बनाना सिनेमा की ही नहीं, देश की भी ज़रूरत होती है। भारत में सबसे ज़्यादा आउटडोर खेला जाने वाला इनडोर गेम है बैडमिंटन। इससे भी ज़्यादा हैरानी की बात यह है कि एक अरब होने के पहले तक देश में इस लोकप्रिय खेल में सिर्फ एक सितारा था-प्रकाश पादुकोण, बाद में पुलेला गोपीचंद, बस। अमोल गुप्ते की यह फिल्म इसलिए भी ज़रूरी थी कि हाथ में शटल उठा चुके तमाम युवा और बच्चे यह जान सकें कि-

 “शहज़ोर अपने ज़ोर में गिरता है मिस्ल ए बर्क, वो तिफ़्ल क्या गिरेगा जो घुटनों के बल चले“

साइना नेहवाल एक दिन में नहीं बनती। फिल्म दोहराती है कि जब मध्यमवर्गीय परिवार के बच्चे नंबर वन बनते हैं तो नींव का पत्थर बनते हैं उनके मां-बाप, जो पहले से ही उसी फील्ड से जुड़े होते हैं मगर दिखाई नहीं देते। दिखाई देते हैं सिर्फ उनके कोच चाहे वो फोगाट सिस्टर्स हों, लेंडर पेस या साइना नेहवाल। इस फिल्म की कहानी पूरी सच्चाई से कहती है कि तमाम उतार-चढ़ाव के साथ जब साइना को ’फिनिश्ड ऑफ’ कहा जाने लगा था तब उन्होंने कैसे न सिर्फ दमदार वापसी की बल्कि अपने बचपन का सपना-वर्ल्ड नंबर एक को भी पूरा किया।

यह फिल्म खिलाड़ियों के जीवन के एक और एंगल को दिखाती है कि एक खिलाड़ी की लव लाइफ भी हो सकती है। जब कोच साइना को समझाते हैं कि चैंपियन बनने के लिए यह मायने नहीं रखता कि हम क्या करते हैं बल्कि यह मायने रखता है कि हम क्या छोड़ते हैं तो इस डायलॉग के जवाब में साइना के ये सवाल हमें सोचने पर मजबूर करते हैं कि क्या मेरी लव लाइफ नहीं हो सकती? सचिन को कोई क्यों नहीं कहता कि उसने 22 साल में शादी क्यों की? क्योंकि मैं लड़की हूं?

जब साइना की कामयाबी को ग्लैमर वर्ल्ड भुनाने की कोशिश करता है तब साइना को अपने कोच के गुस्से का शिकार होना पड़ता है। यह कॉनफ्लिक्ट न सिर्फ खिलाड़ी और कोच के रिश्तों का है बल्कि दर्शकों के दिल और दिमाग पर भी उभरता है। हमारे देश में खेलों में अपार संभावनाएं हैं पर हमारे खिलाड़ी अक्सर फिटनेस की समस्याओं से जूझते नज़र आते हैं। इतने पर भी चीन, जापान, कोरिया जैसे देशों के मजबूत खिलाड़ियों को अपने स्मैश के दम पर धू-धू कर देने वाली साइना के स्टेमिना और फूड प्रैक्टिस के लिए भी फिल्म देखी जानी चाहिए। हालांकि फिल्म अच्छी है पर और अच्छी बन सकती थी क्योंकि स्टार कितना भी बड़ा हो, बायोपिक एक ही बार बनाई जाती है। लेखक ने बड़ी समझदारी से पी.वी. सिंधु विवाद को फिल्म से दूर रखा है।

परिणीति चोपड़ा ने अपनी भूमिका के साथ न्याय किया है। हालांकि यह भी महसूस होता है कि इस किरदार के लिए उन्हें थोड़ा और काम करना चाहिए था। मानव कौल इस फिल्म से एक बार फिर खुद को शानदार अभिनेता के तौर पर स्थापित करते हैं। मां के रूप में मेघना मलिक जिनके हिसाब से खेल में नंबर दो कुछ होता ही नहीं, की आंखों की चमक पूरी फिल्म देखने के लिए बैठाती है। ईशान नकवी कश्यप के रोल में नहीं जमे।

लिटिल साइना नायशा कौर भटोय ने सचमुच बहुत अच्छा काम किया है। फिल्म में अनावश्यक कुछ भी नहीं है-न स्टारडम, न गाने, न लाउड सींस और न ही देशभक्ति। डायरेक्टर अमोल गुप्ते का काम काबिल-ए-तारीफ रहा है। बैडमिंटन के वो रोमांचक पल जिन्हें आप दोबारा से जीना चाहेंगे से सजी है फ़िल्म साइना। खेलप्रेमियों, सिनेप्रेमियों और बेटियों को प्रेम करने वालों को भी यह देखनी चाहिए।

(रेटिंग की ज़रूरत ही क्या है? रिव्यू पढ़िए और फैसला कीजिए कि फिल्म कितनी अच्छी या खराब है। और हां, इस रिव्यू पर अपने विचार ज़रूर बताएं।)

Release Date-26 March, 2021 in theaters

(गति उपाध्याय ने एम.बी.ए. किया है। बैंकर भी रही हैं। अंदर की लेखिका की आवाज़ पर सब छोड़छाड़ कर अब सिर्फ लेखन करती हैं। )

Tags: ‘साइना’amazon primeamole gupteAnkur vikalgati upadhyaymanav kaulmeghna malikNaishaa kaur bhatoyeParineeti ChopraSaina reviewt seriesजुनूनलगनहिम्मत
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