-दीपक दुआ… (This review is featured in IMDb Critics Reviews)
खेलों के पीछे की राजनीति पर अपने यहां कई फिल्में आ चुकी हैं। एक खिलाड़ी के साथ अन्याय होने के बरसों बाद कोच बन कर बाकी खिलाड़ियों को आगे लाने की शानदार कहानी भी हम ‘चक दे इंडिया’ में देख चुके हैं। ‘साला खड़ूस’ भी ठीक वैसी ही है। लेकिन एक तो यह कहानी नयापन न होने के कारण ज़्यादा असर नहीं छोड़ पाती तो वहीं इसका अपना दम भी इतना ज़्यादा नहीं है कि इसकी तारीफ में कसीदे कढ़े जाएं।
अपने एक साथी खिलाड़ी की साजिश का शिकार होकर बॉक्सिंग का अपना कैरियर गंवा चुका आदि (आर. माधवन) अब कोच बन कर एक गुस्सैल लड़की मदी (रितिका सिंह) को बॉक्सिंग में आगे बढ़ाना चाहता है। लेकिन खेलों में गंदगी फैलाने वाले अभी भी इनके खिलाफ हैं।
कहानी पुरानी भले लगती है लेकिन अपने नए परिवेश के चलते बांधे रखती है। हां, पटकथा में नएपन की कमी साफ झलकती है। आगे क्या होगा, इसका अहसास पहले ही होने लगता है। संवादों में भी दमखम की कमी दिखाई देती है। कुछ और जोरदार पंच लगाए जाते तो यह फिल्म नॉकआउट भी कर सकती थी।
‘तनु वैड्स मनु’ वाले सॉफ्ट आर. माधवन को एक नए रफ-टफ रूप में देखना अच्छा लगता है। उन्होंने खुद पर काफी मेहनत की है। रितिका सिंह का अभिनय कमाल का है। मदी के किरदार को वह विश्वसनीय बनाती हैं। फिल्म प्रेरणा देती है और देखे जा सकती है।
अपनी रेटिंग-तीन स्टार
(नोट-इस फिल्म की रिलीज़ के समय मेरा यह रिव्यू किसी अन्य पोर्टल पर छपा था)
Release Date-29 January, 2016
(दीपक दुआ फिल्म समीक्षक व पत्रकार हैं। 1993 से फिल्म-पत्रकारिता में सक्रिय। मिज़ाज से घुमक्कड़। ‘सिनेयात्रा डॉट कॉम’ (www.cineyatra.com) के अलावा विभिन्न समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, न्यूज पोर्टल आदि के लिए नियमित लिखने वाले दीपक ‘फिल्म क्रिटिक्स गिल्ड’ के सदस्य हैं और रेडियो व टी.वी. से भी जुड़े हुए हैं।)