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Home फिल्म/वेब रिव्यू

ओल्ड रिव्यू-रूमानी रूहानी ‘बाजीराव मस्तानी’

Deepak Dua by Deepak Dua
2015/12/18
in फिल्म/वेब रिव्यू
0
ओल्ड रिव्यू-रूमानी रूहानी ‘बाजीराव मस्तानी’
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-दीपक दुआ… (This review is featured in IMDb Critics Reviews)

मराठा योद्धा पेशवा बाजीराव ने अपनी जिंदगी में 40 लड़ाइयां लड़ीं और सारी जीतीं। लेकिन प्यार की बात आई तो अपने ही घरवालों को वह नहीं जीत पाया। हिन्दू राजा ने तो मुस्लिम मस्तानी को अपनाया मगर घर-समाज इसे बर्दाश्त नहीं कर पाया। लेकिन बाजीराव ने भी मस्तानी से मोहब्बत की थी, अय्याशी नहीं। आज भी दुनिया बाजीराव का नाम मस्तानी के साथ ही लेती है।

संजय लीला भंसाली के पास रुपहले पर्दे पर भव्य और खूबसूरत पेंटिंग रचने का अद्भुत हुनर है। इस फिल्म में भंसाली एक बार फिर अपने उस हुनर को साबित करते दिखाई देते हैं। प्यार के भीतर छुपे दर्द की कहानी हो या फिर दर्द भरे इश्क की कोई दास्तान, आज की तारीख में कोई दूसरा फिल्मकार उसे इस तरह से नहीं कह सकता, जैसे भंसाली कहते हैं। ‘हम दिल दे चुके सनम’ के समीर-नंदिनी-वनराज और ‘देवदास’ के पारो-देव-चंद्रमुखी के बाद इस फिल्म में भंसाली ने मस्तानी-बाजीराव-काशीबाई के ज़रिए फिर एक ऐसी रूमानी दास्तान सुनाई है जो अपने अंत तक आते-आते रूहानी अहसास देने लगती है।

पेशवा बाजीराव, उनकी पत्नी काशीबाई और राजा छत्रसाल के नाजायज रिश्ते से जन्मी उनकी मुस्लिम बेटी मस्तानी के इस त्रिकोणीय किस्से के ज़रिए उस दौर के राजनीतिक-सामाजिक हालात पर भी फिल्म न सिर्फ रोशनी डालती है, बल्कि भंसाली यहां टिप्पणियां करने से भी नहीं चूकते। फिल्म के सैट, रंग, अंधेरे और रोशनी का अनूठा इस्तेमाल, कॉस्ट्यूम, बोली, तेवर, यह सब मिल कर फिल्म को एक विश्वसनीय लुक देते हैं जो आंखों को इतनी ज़्यादा भाती है कि एक पल को नज़रें पर्दे से हटाने को जी नहीं चाहता।

रणवीर सिंह कहीं-कहीं ओवर लगने के बावजूद मराठा योद्धा के किरदार को डूब कर जीते हैं। दीपिका पादुकोण इस फिल्म से कई कदम आगे बढ़ी हैं। उनकी आंखों में मस्तानी का दर्द झलकता है। प्रियंका चोपड़ा का किरदार कम वक्त के लिए पर्दे पर आता है लेकिन अपनी मौजूदगी से वह अपने सीनियर होने का अहसास करवा जाती हैं। बाजीराव की मां की भूमिका में तन्वी आज़मी बेहद प्रभावी लगती हैं। गीत-संगीत उम्दा है।

हालांकि कुछ चीज़ें अखरती हैं और भंसाली अपने ही किए पिछले कुछ कामों के मोह में बंधे भी नज़र आते हैं। फिर भी यह एक ऐसी फिल्म है जो इस साल की बेहतरीन फिल्म होने का गौरव तो पाती ही है, सिनेमाई इतिहास के पन्नों में भी अपने लिए जगह सुरक्षित रखने का दावा करती है।

अपनी रेटिंग-चार स्टार

(इस फिल्म की रिलीज़ के समय मेरा यह रिव्यू किसी अन्य पोर्टल पर प्रकाशित हुआ था)

Release Date-18 December, 2015

(दीपक दुआ फिल्म समीक्षक व पत्रकार हैं। 1993 से फिल्म-पत्रकारिता में सक्रिय। मिज़ाज से घुमक्कड़। ‘सिनेयात्रा डॉट कॉम’ (www.cineyatra.com) के अलावा विभिन्न समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, न्यूज पोर्टल आदि के लिए नियमित लिखने वाले दीपक ‘फिल्म क्रिटिक्स गिल्ड’ के सदस्य हैं और रेडियो व टी.वी. से भी जुड़े हुए हैं।)

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