-दीपक दुआ… (This review is featured in IMDb Critics Reviews)
रोहित शैट्टी की फिल्म यानी मसाला मनोरंजन। शाहरुख खान की फिल्म यानी फैमिली एंटरटेनमैंट। काजोल की वापसी यानी एक बढ़िया कहानी की गारंटी। वरुण धवन की मौजूदगी यानी यंग ऑडियंस को लुभाने की कवायद। सब कुछ तो है इस फिल्म में। फिर कमी कहां रह गई?
इस सवाल का जवाब फिल्म शुरू होने के थोड़ी देर बाद ही मिलना शुरू हो जाता है और क्लाइमैक्स तक लगातार मिलता रहता है। रोहित भले ही कारों के साथ-साथ कॉमेडी के बुलबुले उड़ाने में माहिर हों मगर वह संजीदगी से फिल्म बनाना भी जानते हैं, यह वह ‘सिंहम’ में दिखा चुके हैं। बढ़िया ढंग से मसालेदार कहानी कहने का हुनर भी उन्हें बखूबी आता है यह वह ‘चैन्नई एक्सप्रैस’ में दिखा चुके हैं। लेकिन इस बार वह चूके हैं तो इसलिए कि एक तो उन्होंने कहानी बहुत ही रुटीन किस्म की ली और दूजे इसे पर्दे पर उतारते हुए वह कुछ ज्यादा ही हल्केपन से काम लेते रहे। उन्होंने हल्की-फुल्की कहानी में संजीदगी के तड़के लगाए जबकि अगर वह पलट कर संजीदा ढंग से परोसते और बीच-बीच में कॉमेडी का छौंक लगाते तो बात कुछ ज़्यादा सधी हुई नजर आती।
लेकिन आप इस फिल्म को एकदम से नहीं नकार सकते। टुकड़ों-टुकड़ों में ही सही, फिल्म हंसाती है, लुभाती है, प्यारी लगती है, चौंकाती भी है। पूरी तरह से न बांध पाए मगर वह ‘पॉपकॉर्न एंटरटेनमैंट’ तो परोसती ही है जो आपको अपने बोझ भुला कर हल्का होने में मदद करता है। फिल्म भले ही यह हल्की हो लेकिन आप इसे फूंक मार कर नहीं उड़ा सकते।
अपनी रेटिंग-दो स्टार
(इस फिल्म की रिलीज़ के समय मेरा यह रिव्यू किसी अन्य पोर्टल पर प्रकाशित हुआ था)
Release Date-18 December, 2015
(दीपक दुआ फिल्म समीक्षक व पत्रकार हैं। 1993 से फिल्म-पत्रकारिता में सक्रिय। मिज़ाज से घुमक्कड़। ‘सिनेयात्रा डॉट कॉम’ (www.cineyatra.com) के अलावा विभिन्न समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, न्यूज पोर्टल आदि के लिए नियमित लिखने वाले दीपक ‘फिल्म क्रिटिक्स गिल्ड’ के सदस्य हैं और रेडियो व टी.वी. से भी जुड़े हुए हैं।)