-दीपक दुआ… (This review is featured in IMDb Critics Reviews)
आसपास की दुनिया से बेखबर एक आम आदमी चुपचाप अपनी ज़िंदगी जी रहा है। बिना किसी उमंग के, बिना किसी प्रतिक्रिया के। बस एक बच्ची है जो उसे हैंडसम कहती है। अचानक उस बच्ची पर मुसीबत आती है और वह हैंडसम एक बेरहम कातिल रॉकी बन जाता है। परतें खुलनी शुरू होती हैं और जो स्याह सच सामने आते हैं वे चौंकाते हैं और दहलाते भी हैं।
कोरिया की एक फिल्म के इस रीमेक की कहानी इसकी पहली खासियत है। मानव तस्करी, इंसानी अंगों की तस्करी, नशे का कारोबार और इन सब में मासूम बच्चों के इस्तेमाल की काली दुनिया में झांकती इस कहानी में परिपक्वता है। इसमें एक्शन भी ज़बर्दस्त डाला गया है जो इन दिनों आ रहे फिल्मी एक्शन से परे वास्तविक लगने वाला बेरहम किस्म का एक्शन है जिसे देखते समय आप अपनी पलक भी झपकाएं तो वह मिस हो जाए।
लेकिन फिल्म कमियों से भी अछूती नहीं है। फिल्म का हीरो चुप रहता है और इसकी वजह भी है। लेकिन जब वह बोलता है तो प्रभावित क्यों नहीं करता? इसकी वजह है कमज़ोर डायलॉग। ऐसी फिल्में ताली बजवा सकने वाले संवाद मांगती हैं और यहां पलड़ा ज़रा हल्का रहा है। कहानी में इमोशंस का भी तड़का है लेकिन यह इमोशंस आपके दिल में टीस क्यों नहीं मारते? आपकी आंखें क्यों नहीं भिगोते? जाहिर है कि कमी लेखक और निर्देशक की ही ज़्यादा है।
जॉन अब्राहम अपने रोल को बेहद परफैक्शन से निभाते दिखाई देते हैं। उन्हें एक्शन करते देखना रोमांचित करता है। पुलिस वाले के रोल में शरद केलकर भी जमे हैं। छोटी बच्ची नाओमी के रोल में दीया चलवाड़ प्यारी लगी हैं। डायरेक्टर निशिकांत कामत पहले भी एक्टिंग करते रहे हैं लेकिन यहां मेन विलेन के रोल में वह ज़्यादा असर नहीं छोड़ पाते। उन्हें और ज्यादा खूंखार, कमीना और कूल दिखाया जाना चाहिए था। क्लाइमैक्स में सब समेट कर भागने की उनकी कोशिश हिन्दी फिल्मों के विलेन हमेशा से करते आए हैं। कुछ तो नया करना था भाई।
फिल्म बहुत ज़्यादा अच्छी नहीं है तो बुरी भी नहीं है। सच तो यह है कि यह फिल्म आपको एक अलग किस्म की कहानी, अलग अंदाज़ में परोसती है जिसमें एक बिल्कुल ही अलग किस्म का एक्शन आपको लुभाता है। थ्रिलर, और वह भी डार्क थ्रिलर पसंद हैं तो इसे ज़रूर देखिएगा।
अपनी रेटिंग-ढाई स्टार
(नोट-इस फिल्म की रिलीज़ के समय मेरा यह रिव्यू किसी अन्य पोर्टल पर छपा था)
Release Date-25 March, 2016
(दीपक दुआ फिल्म समीक्षक व पत्रकार हैं। 1993 से फिल्म-पत्रकारिता में सक्रिय। मिज़ाज से घुमक्कड़। ‘सिनेयात्रा डॉट कॉम’ (www.cineyatra.com) के अलावा विभिन्न समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, न्यूज पोर्टल आदि के लिए नियमित लिखने वाले दीपक ‘फिल्म क्रिटिक्स गिल्ड’ के सदस्य हैं और रेडियो व टी.वी. से भी जुड़े हुए हैं।)