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Home फिल्म/वेब रिव्यू

रिव्यू-ऊंची उड़ती सिनेमा की ‘रॉकेट्री’

Deepak Dua by Deepak Dua
2022/07/02
in फिल्म/वेब रिव्यू
17
रिव्यू-ऊंची उड़ती सिनेमा की ‘रॉकेट्री’
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-दीपक दुआ… (This review is featured in IMDb Critics Reviews)

एक टी.वी. स्टूडियो में एक बूढ़े वैज्ञानिक का इंटरव्यू लेने के लिए अभिनेता शाहरुख खान आए हुए हैं। स्टूडियो में मौजूद हर किसी को लग रहा है कि यह बूढ़ा आज बहुत पकाने वाला है, इसने हमारी शाम खराब कर दी, वगैरह-वगैरह। इंटरव्यू शुरू होता है। वह वैज्ञानिक अपनी ज़िंदगी के कुछ हिस्सों की कहानी सुनाते हैं। अमेरिका जाकर पढ़ने, नासा में नौकरी का ऑफर ठुकराने, लौट कर इसरो में नए इंजन बनाने, भारत के अंतरिक्ष प्रोग्राम को ऊंचाई की तरफ ले जाने के अलावा अचानक एक दिन पुलिस द्वारा देश से गद्दारी करने के झूठे आरोप में पकड़े जाने और लंबे संघर्ष के बाद बाइज़्ज़त छूटने तक की उनकी कहानी खत्म होती है। उधर स्टूडियो में मौजूद हर आंख में पानी होता है, शाहरुख खान की भी। इधर थिएटर में मौजूद हर आंख भी गीली होती है। यह फिल्म यहां आकर सार्थक हो जाती है, सफल हो जाती है। दर्शक की आंख से निकला पानी इस फिल्म को पवित्र कर देता है।

भारत के ‘रॉकेट ब्वॉयज़’ यानी विक्रम साराभाई, होमी जहांगीर भाभा और ‘मिसाइल मैन’ ए.पी.जे. अब्दुल कलाम को आम जन के बीच जो चर्चा, जो लोकप्रियता मिली वह नंबी नारायणन के हिस्से में कभी नहीं आई जबकि सच यह है कि उन्होंने भारतीय रॉकेट प्रोग्राम को उन्नत बनाने में अमूल्य योगदान दिया। वह उन्हीं का बनाया ‘विकास’ इंजन था जिससे भारत ने पहली ही बार में मंगल मिशन इतने सस्ते में पूरा कर दिया था जिससे ज़्यादा कीमत में हॉलीवुड में एक साईंस फिक्शन फिल्म बना करती है। नंबी चर्चा में आए भी तो गलत कारणों से। 1994 में एक दिन उन्हें स्थानीय पुलिस ने इस आरोप के साथ पकड़ लिया कि उन्होंने पाकिस्तान को कुछ खुफिया जानकारी बेची। उन्हें बेदर्दी से पीटा गया लेकिन वह झुके नहीं, लड़ते रहे और बरसों बाद न्याय पाकर बेदाग साबित हुए।

नंबी नारायणन

हमारे कई वैज्ञानिकों की असमय मृत्यु हुई। साराभाई और भाभा, दोनों ही संदिग्ध हालात में मारे गए। नंबी का कैरियर तबाह करने की साजिशें हुईं। ज़ाहिर है कि इनके पीछे भारत को कमज़ोर करने वाली ताकतें थीं। लेकिन आज तक भी यह सामने नहीं आ सका कि वे कौन लोग थे। यह फिल्म भी ऐसा कुछ नहीं दिखाती। बल्कि यह नंबी का सफर दिखाती है कि कैसे उन्होंने अपनी मेधा से कम समय में न सिर्फ अपने लिए बल्कि देश के लिए बहुत कुछ हासिल किया। फिल्म इशारा करती है कि उनकी यही रफ्तार ही देश के दुश्मनों को जज़्ब नहीं हो पा रही थी जिसके चलते उन्हें फंसा दिया गया जिसका खामियाजा भारत के स्पेस प्रोग्राम को भुगतना पड़ा।

एक रॉकेट साईंटिस्ट की बायोपिक में भला ऐसा क्या दिलचस्प हो सकता है कि दर्शक सिनेमाघरों तक जाएं, पैसे खर्चें? लेकिन आर. माधवन और उनके साथियों ने इसे लिखते समय इस कदर सरल रखा है कि इसकी लिखाई आपको कहीं भी बोर नहीं करती। पटकथा का बहाव आपको बांधे रखता है और इसके संवाद आपको छूते हैं। सच यह भी है कि एक भी सीन छोड़ कर थिएटर से बाहर जाने की भूल आपको भारी पड़ सकती है। फिल्म में वैज्ञानिक शब्दावली का काफी इस्तेमाल है और कुछ संजीदा चाहने, समझने वाले दर्शक ही इसे अच्छे-से ग्रहण कर पाएंगे। इंटरवल से ठीक पहले विकास इंजन को टैस्ट कर रहे सीन को देखिए। क्या हो रहा है, आपको धेला समझ नहीं आएगा। लेकिन इस सीन को देखते हुए आपकी नसें फड़केंगी, रोएं हलचल करेंगे, होठों पर मुस्कान आएगी, दिल में जोश होगा, आंखें भीगेंगी और आपका मन करेगा कि उठ कर ताली बजाएं। यह सिनेमा की सफलता है। यह आर. माधवन की सफलता है।

बतौर निर्देशक अपनी इस पहली फिल्म को माधवन ने जिस सधे हुए अंदाज़ में बनाया है, हैरानी होती है कि वह अब तक निर्देशन से दूर कैसे रहे। एक ‘रूखे’ विषय को कहने के लिए चुना गया टी.वी. इंटरव्यू वाला तरीका दिलचस्प है। बड़ी ही कुशलता से माधवन ने नंबी की दशकों की यात्रा के चुनिंदा हिस्से फटाफट दिखाते हुए दर्शकों को उतना ही परोसा है, जितने की उन्हें ज़रूरत थी। बीच-बीच में हल्के-फुल्के पलों का सामंजस्य फिल्म को सहज बनाए रखता है। हां, इंटरवल के बाद दो-तीन सीन काफी खिंचते-से लगे। इन्हें कस कर दो घंटे 37 मिनट की लंबाई पर भी काबू पाया जा सकता था।

बतौर अभिनेता आर. माधवन ने कमाल का काम किया है। नंबी की जवानी से बुढ़ापे तक के सफर के लिए माधवन ने न सिर्फ खुद को शारीरिक तौर पर बदला बल्कि अपने भावों और भंगिमाओं से भी इस किरदार को जीवंत किया। अभिनय हर किसी का उम्दा रहा है, हर किसी का। अंत में शाहरुख खान ने भी दिल जीता और बताया कि उन्हें यूं ही बादशाह नहीं कहा जाता।

यह फिल्म एक से अधिक राष्ट्रीय पुरस्कारों की हकदार है। उससे भी बढ़ कर यह फिल्म इस राष्ट्र के लोगों द्वारा देखे जाने की हकदार है। इसे देखिए, ताकि पता चले कि किस तरह प्रयोगशालाओं में सिर खपाते लोग और उनके परिवार वाले इस देश को महान बनाने में जुटे रहते हैं। इसे देखिए ताकि अगली बार जब देश को महान बनाने वाले किसी शख्स पर आंच आए तो आप चुप न रहें क्योंकि कई बार लोगों की चुप्पी की कीमत देश को चुकानी पड़ती है।

(रेटिंग की ज़रूरत ही क्या है? रिव्यू पढ़िए और फैसला कीजिए कि फिल्म कितनी अच्छी या खराब है। और हां, इस पोस्ट के नीचे कमेंट कर के इस रिव्यू पर अपने विचार ज़रूर बताएं।)

Release Date-01 July, 2022

(अपील-सिनेमाघरों में फिल्म देखते समय अपने मोबाइल की आवाज़ या रोशनी से दूसरों को डिस्टर्ब न करें।)

(दीपक दुआ फिल्म समीक्षक व पत्रकार हैं। 1993 से फिल्म-पत्रकारिता में सक्रिय। मिज़ाज से घुमक्कड़। ‘सिनेयात्रा डॉट कॉम’ (www.cineyatra.com) के अलावा विभिन्न समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, न्यूज पोर्टल आदि के लिए नियमित लिखने वाले दीपक ‘फिल्म क्रिटिक्स गिल्ड’ के सदस्य हैं और रेडियो व टी.वी. से भी जुड़े हुए हैं।)

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Comments 17

  1. Kanchan negi says:
    9 months ago

    आपके देखने का नज़रिया और लिखने का अंदाज ही काफी है फ़िल्म को रेटिंग देने में

    Reply
    • CineYatra says:
      9 months ago

      आभार… धन्यवाद…

      Reply
  2. CA Shiv Shukla says:
    9 months ago

    आपके नजरिए में अनुभव और हर पहलू की गहन अन्वेषण दिखती है/ बेहतरीन समीक्षा और अद्वितीय शब्दों का प्रयोग/

    Reply
    • CineYatra says:
      9 months ago

      आभारी हूं…

      Reply
  3. Arun shekhar says:
    9 months ago

    बहुत कायदे से फिल्म के बारे में बताया। यह् फिल्म अवश्य देखी जायेगी।
    धन्यवाद

    Reply
    • CineYatra says:
      9 months ago

      धन्यवाद…

      Reply
  4. Dr. Renu Goel says:
    9 months ago

    Ek purskar to apne review ne hi de dia h

    Reply
  5. Shivam says:
    9 months ago

    हमेशा की तरह बहुत शानदार सर

    Reply
    • CineYatra says:
      9 months ago

      शुक्रिया…

      Reply
  6. Dilip Kumar says:
    9 months ago

    बेहतरीन समीक्षा , ऐसे नायकों पर फिल्में बननी ही चाहिये💐

    Reply
    • CineYatra says:
      9 months ago

      धन्यवाद…

      Reply
  7. Rakesh Chaturvedi Om says:
    9 months ago

    💯 बहुत ही सुंदर समीक्षा 👏ये फ़िल्म अभी तक मेरे दिमाग़ से नहीं उतरी है और शायद कभी उतरेगी भी नहीं👏शानदार सिनेमा 👏

    Reply
    • CineYatra says:
      9 months ago

      बहुत-बहुत धन्यवाद भाई साहब… सचमुच यह एक यादगार फिल्म है…

      Reply
  8. Niraj Sah says:
    9 months ago

    Shaandar sameeksha. Film to hum zaroor dekhenge lekin aapki en lines ne bhi dil jeet liya Dua Sahab.

    इसे देखिए, ताकि पता चले कि किस तरह प्रयोगशालाओं में सिर खपाते लोग और उनके परिवार वाले इस देश को महान बनाने में जुटे रहते हैं। इसे देखिए ताकि अगली बार जब देश को महान बनाने वाले किसी शख्स पर आंच आए तो आप चुप न रहें क्योंकि कई बार लोगों की चुप्पी की कीमत देश को चुकानी पड़ती है।

    Reply
    • CineYatra says:
      9 months ago

      धन्यवाद भाई साहब…💐

      Reply
  9. Sudhir Sangwan says:
    8 months ago

    आपके सटीक विश्लेषण व शब्दों के चयन के मोहताज हैं हम सर।
    वज्ञानिको के यूं अचानक गायब हो जाना मौत हो जाना, इस विषय पर देश का खुफिया तंत्र बेबस नजर आता है, पता चलने पर बात को दबाया जाता है, बहुत कुछ छिपा है इनके पीछे।

    Reply
    • CineYatra says:
      8 months ago

      धन्यवाद… जुड़े रहिए…

      Reply

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