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Home यादें

यादें-क्या आपने ‘राज मंदिर’ सिनेमा देखा है…?

Deepak Dua by Deepak Dua
2017/06/01
in यादें
0
यादें-क्या आपने ‘राज मंदिर’ सिनेमा देखा है…?
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–दीपक दुआ…

1 जून, 1976। यही वह दिन था जब राजस्थान की गुलाबी नगरी जयपुर में ‘राज मंदिर’ सिनेमा की शुरूआत हुई थी। पहली फिल्म थी रामानंद सागर की धर्मेंद्र-हेमा मालिनी अभिनीत ‘चरस’। यह फिल्म तो हिट हुई ही, यह थिएटर भी देखते-देखते ऐसा हिट हुआ कि लोग इस थिएटर में फिल्म नहीं बल्कि इस थिएटर के अद्भुत वास्तुशिल्प और लुभावनी साज-सज्जा को देखने के लिए आने लगे। वक्त के साथ-साथ इस थिएटर की प्रसिद्धि न सिर्फ पूरे देश के फिल्म-प्रेमियों और सैलानियों बल्कि फिल्म इंडस्ट्री के लोगों और विदेशों तक भी जा पहुंची और यह जयपुर के मशहूर पर्यटन-स्थलों में गिना जाने लगा। दुनिया भर के पत्र-पत्रिकाओं में इसके बारे में छप चुका है और बड़ी तादाद में देसी-विदेशी सैलानी इसे देखने के लिए आते रहते हैं। आज भी यह आलम है कि जयपुर घूम कर आए किसी शख्स से पहला सवाल यही पूछा जाता है-राज मंदिर देखा कि नहीं?

उसी ‘राज मंदिर’ के 41 साल पूरे होने पर उससे जुड़ी अपनी दो यादें ताजा करने और सबसे बांटने का मन हो रहा है। पहली याद दिसंबर, 1993 की। पत्रकारिता में आए अपने को अभी चार महीने भी नहीं हुए थे। तब अपन दिल्ली से निकलने वाले अखबार ‘जनसत्ता’ में बतौर प्रशिक्षु उपसंपादक काम कर रहे थे। दिसंबर की छुट्टियों में परिवार सहित उदयपुर, जयपुर और अलवर घूमने का प्रोग्राम बना। चलने से पहले हर किसी ने यही सलाह दी कि जयपुर में ‘राज मंदिर’ सिनेमा जरूर देखना। उदयपुर में तीन दिन बिताने के बाद हम लोग 29 दिसंबर की सुबह जयपुर पहुंचे। राजस्थान पर्यटन के ‘स्वागत’ होटल में डेरा जमाने के बाद मैं अकेला ‘राजमंदिर’ सिनेमा जा पहुंचा। 24 दिसंबर को रिलीज हुई यश चोपड़ा की शाहरुख खान-जूही चावला-सनी दिओल वाली फिल्म ‘डर’ लगी हुई थी। एक तो फिल्म सुपरहिट और ऊपर से ‘राज मंदिर’ के जलवे, वहां देखा तो टिकट-खिड़की के बाहर लंबी लाइन लगी हुई थी। इतनी लंबी कि देख कर सिर चकरा गया। दोपहर के करीब 2 बजे थे, सोचा कि ये लाइन तो 3 बजे वाले शो की होगी, अपन तो 6 बजे वाले शो की टिकट मजे-मजे में ले लेंगे। पर जब पता चला कि ये लोग असल में 6 बजे वाले शो के लिए अभी से लाइन में लगे हुए हैं तो दिसंबर की उस सर्दी में भी पसीना छूट गया। लेकिन निराश होकर लौटने से पहले कोशिश करना तो बनता ही था, सो अपन थिएटर के अंदर जाने वाले दरवाजे पर जा पहुंचे। वहां देखा कि कई लोग गेटकीपर के हाथ अपना या किसी ऐसे शख्स का कार्ड अंदर मैनेजर को भिजवा रहे हैं जिसकी सिफारिश लेकर वे वहां आए थे। मैंने भी एक सादे कागज पर अपने नाम के साथ ‘जनसत्ता-दिल्ली’ लिख कर अंदर भिजवा दिया। थोड़ी ही देर में मेरे नाम का बुलावा आ गया। अंदर मैनेजर साहब ने बड़े अपनेपन से पूछा-‘हां जी, दिल्ली वाले पत्रकार साहब, क्या सेवा की जाए?’ जवाब तैयार था-‘सर, चार टिकटें चाहिएं अगले शो की…’ यह कहते हुए मेरे हाथ में सौ रुपए का नोट था। उन्होंने तुरंत एक कागज पर ‘4 टिकट’ लिख कर अपने साइन किए और पास खड़े एक शख्स की ओर इशारा करके मुझ से बोले-शाम पौने छह बजे आ जाइएगा, टिकट-खिड़की के बाहर यह खड़ा होगा। लाइन में मत लगिएगा, इसे यह पर्ची और पैसे दे दीजिएगा, टिकट मिल जाएगी।’

वह पर्ची हाथ में आने के बाद अपन तो ऐसे गदगद थे जैसे कोई खजाना हाथ लग गया हो। मुझ जैसे फिल्म-प्रेमी और घुमक्कड़ी के शौकीन इंसान के लिए यह सचमुच कोई खजाना ही था। शाम को ठीक समय पर हम सब वहां जा पहुंचे। उस समय भी वहां जबर्दस्त भीड़ थी और माता-पिता व बहन ने पहली बार मेरे पत्रकार होने का शुक्र मनाया जब दस ही मिनट में 13 रुपए वाली चार टिकटें हमारे हाथ में थीं। अंदर पहुंचे तो इस थिएटर के अनुपम सौंदर्य को देख हम सबकी आंखें चुंधिया गईं। वह पर्दे का उठना, वह लाॅबी की बनावट, इंटरवल में सारी लाइटों का जलना और पूरे थिएटर का रोशनी से सराबोर हो जाना, वह सब हमें आज भी गुदगुदाता है। उन दिनों यहां कैमरा ले जाना मना होता था सो, उस दिन की यादें सिर्फ अपने जेहन में ही कैद हैं।

दिन बीतते गए। इसके बाद एक बाद फिर जयपुर जाना हुआ लेकिन वह मौका राजेश खन्ना के एक टी.वी. सीरियल की शूटिंग को कवर करने का था और हमें इतनी फुर्सत नहीं मिल पाई कि हम ‘राज मंदिर’ जा पाते। आखिर बरसों बाद 2013 में यह मौका हाथ आया। दिल्ली से डबल-डैकर ट्रेन में पत्नी और बच्चों के साथ जयपुर घूमने का प्रोग्राम बना। सबको ‘राज मंदिर’ देखने का मन भी था। हालांकि उस समय यहां साजिद खान की बेहद थकी हुई फिल्म ‘हिम्मतवाला’ चल रही थी जिसे मैं दिल्ली में देख कर पांच में से एक स्टार दे चुका था सो पूरी फिल्म दोबारा देखने की हिम्मत नहीं हो रही थी। जयपुर स्थित बड़े भाई समान वरिष्ठ फिल्म पत्रकार श्याम माथुर जी ने ‘राजमंदिर’ के किशोर काला जी का नंबर देकर बात करने को कहा। काला जी ने छूटते ही पूछा-फिल्म देखनी है या थिएटर? जवाब में ‘थिएटर’ सुन कर बोले-शाम छह बजे आ जाइए। दो शो के बीच वाले वक्त में सारी लाइटें जलती हैं, उस समय देख लीजिएगा। 1 अप्रैल की उस शाम जब हम सबने उस नजारे को देखा तो दिल्ली के बड़े-बड़े, चमकीले-भड़कीले मल्टीप्लेक्स थिएटरों में फिल्में देखने वाला मेरा परिवार भी इस खूबसूरती को देख कर हैरान रह गया। आज चार साल से ऊपर हो गए लेकिन आज भी ‘राजमंदिर’ में बिताए उन लम्हों को याद करके हमें खुशी होती है।

तो अब आप बताइए-‘क्या आपने ‘राजमंदिर’ सिनेमा देखा है…? नहीं, तो जयपुर का टूर बना ही डालिए।

(दीपक दुआ फिल्म समीक्षक व पत्रकार हैं। 1993 से फिल्म-पत्रकारिता में सक्रिय। मिज़ाज से घुमक्कड़। ‘सिनेयात्रा डॉट कॉम’ (www.cineyatra.com) के अलावा विभिन्न समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, न्यूज पोर्टल आदि के लिए नियमित लिखने वाले दीपक ‘फिल्म क्रिटिक्स गिल्ड’ के सदस्य हैं और रेडियो व टी.वी. से भी जुड़े हुए हैं।)

और अब आपको इस सिनेमा के बारे में बता रहे हैं जयपुर के शेयर कारोबारी और संगीत व सिनेमा रसिक अरविंद अग्रवाल–

राजस्थान का मशहूर पर्यटन स्थल जयपुर अपने विविध शाही इतिहास के बारे में जाना जाता है। अगर आप कला और संस्कृति प्रेमी हैं या आप रोमांच प्रेमी हैं तो इस शहर में आपके लिए बहुत कुछ है।

मशहूर राज मंदिर सिनेमा हाॅल अपनी अनोखी वास्तुकला के लिए जाना जाता है और इस शहर का गौरव है। इसकी शानदार वास्तुकला के चलते ही इसे ‘प्राइड ऑफ एशिया’ की उपाधि से सम्मानित किया गया है। यदि आप पहली बार गुलाबी शहर की यात्रा करते हैं तो यह संभावना कम ही है कि आप राज मंदिर देखने न जाएं। इस हाॅल में अब तक हजारों लोग फिल्मों का मजा ले चुके हैं। किसी और थिएटर में इसके जैसा आकर्षण नहीं है, इसलिए जयपुर आने वाले लोग यहां अवश्य आते हैं।

इस सिनेमा में अंदर और बाहर दोनों ओर बारीक नक्काशी की गई है जिसके चलते राज मंदिर सिनेमा बीते युग की याद दिलाता है। इसका हाॅल आपको किसी शाही महल जैसा लगेगा जिसमें बड़े बड़े झूमर लगे हों। इसका लाइटिंग सिस्टम भी अपने आप में एक आकर्षण है और हर शो से पहले लाॅबी में उत्तम प्रकाश व्यवस्था की जाती है।

इसके नौ सितारे आपका स्वागत करते हैं जो नौ रत्नों का प्रतीक हैं और राज मंदिर सिनेमा के मालिक सुराना ज्वैलर्स के व्यवसाय को दर्शाते हैं। अंदरूनी दीवारों पर भी एक घूमने वाली पैनल लगी है और दीवारों पर कलात्मक काम किया हुआ है। लाॅबी के पास बनी उपर जाती हुई सीढ़ियां मुख्य हाॅल के लुक को और बढ़ाती हैं और आकर्षण जोड़ती हैं। इसके हाॅल में 1300 लोगों के बैठने की क्षमता है जिसकी वजह से यह एशिया का सबसे बड़ा हाॅल है। इसकी बैठक क्षमता को चार श्रेणियों में बांटा गया है – पर्ल, रुबी, एम्राल्ड, और डायमंड। मुख्य हाॅल में मखमल के पर्दे हैं जो इसके शाही प्रभाव को और बढ़ाते हैं। लोग इसकी सीटों की एडवांस बुकिंग करवाते हैं जिससे इस शाही हाॅल का पूरा आनंद ले सकें।

इस थिएटर की नींव सन् 1966 में राजस्थान के मुख्यमंत्री श्री मोहनलाल सुखाड़िया ने रखी थी। राज मंदिर श्री मेहताब चंद्र गोलचा का ड्रीम प्रोजेक्ट था जो मनोरंजन की ऐसी शानदार जगह बनाना चाहते थे जो कि लोगों को एक नया नजरिया दे। मेहताब चंद्र खुद इसके निर्माण की निगरानी करते थे। उनके मार्गदर्शन में यह जगह मनोरंजन के एक शाही और सुंदर जगह के रुप में विकसित हुई। यह मेहताब चंद्र की ही रचनात्मकता थी जिसने इस हाॅल को यह रुप दिया। मनोरंजन के इस शाही स्थान को बनने में दस साल का समय लगा। इसका उद्घाटन 1 जून 1976 को श्री हरिदेव जोशी ने किया था जो उस समय राजस्थान के मुख्यमंत्री थे।

इसके थियेटर का डिजाइन श्री डब्ल्यू एम नामजोशी ने बनाया और इसे एक कलात्मक आधुनिक शैली के साथ भव्य और असाधारण लुक दिया। इस थियेटर का मालिकाना हक अब जयपुर के प्रसिद्ध जौहरी भूरामल राजमल सुराना के पास है।

Tags: charasdarrhimmatwalajaipurmehtab chandraraj mandirrajmandir cinemaराजमंदिर
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