• Home
  • Film Review
  • Book Review
  • Yatra
  • Yaden
  • Vividh
  • About Us
CineYatra
Advertisement
  • होम
  • फिल्म/वेब रिव्यू
  • बुक-रिव्यू
  • यात्रा
  • यादें
  • विविध
  • हमारे बारे में
No Result
View All Result
  • होम
  • फिल्म/वेब रिव्यू
  • बुक-रिव्यू
  • यात्रा
  • यादें
  • विविध
  • हमारे बारे में
No Result
View All Result
CineYatra
No Result
View All Result
ADVERTISEMENT
Home फिल्म/वेब रिव्यू

ओल्ड रिव्यू-दिल वालों के लिए ‘प्रेम रतन धन पायो’

Deepak Dua by Deepak Dua
2015/11/12
in फिल्म/वेब रिव्यू
0
ओल्ड रिव्यू-दिल वालों के लिए ‘प्रेम रतन धन पायो’
Share on FacebookShare on TwitterShare on Whatsapp

-दीपक दुआ… (This review is featured in IMDb Critics Reviews)

इस फिल्म की समीक्षा दो तरह से हो सकती है। पहला और खुद को ज़्यादा संतुष्ट करने वाला तरीका तो यह है कि अपने अंदर के फिल्मी ज्ञान को बघारते हुए और खुद को बुद्धिजीवी दर्शाते हुए इस फिल्म को बुरी तरह से धोया जाए और यह साबित कर दिया जाए कि यह एक औसत फिल्म है जिसे देख कर आप अपना धन गंवाएंगे ही। यह तरीका इसलिए भी माकूल है क्योंकि स्पाइस नाम की जो थकी हुई एजेंसी इस फिल्म का प्रचार कर रही थी उसने दिल्ली के फिल्म समीक्षकों को यह फिल्म दिखाई तक नहीं और ऐसे में एक बेचारा समीक्षक अपनी भड़ास सिर्फ फिल्म की बुराई करके और उसे कम रेटिंग देकर ही निकाल सकता है।

खैर, दूसरा तरीका यह है कि एक आम दर्शक की तरह बैठ कर इस फिल्म के शिल्प की गहराई में गए बिना बस उन बातों पर गौर किया जाए जो सामने पर्दे पर आती हैं और सीधे दिल में उतरती चली जाती हैं। तो भला खुद को क्यों धाकड़ माना जाए। चलिए, आम नज़रिए से फिल्म को छाना जाए।

दिल का सुथरा प्रेम और प्रीतम पुर का युवराज विजय हमशक्ल हैं। राजकुमार पर हमला होता है और उसे दुनिया से छुपा कर रखा जाता है। ऐसे में दीवान साहब प्रेम को युवराज बना कर पेश कर देते हैं। लेकिन इस परिवार में संकट बहुत हैं मगर अपनी अच्छाइयों से और अपने स्टाइल से प्रेम सब सही कर देता है।

आप कहेंगे कि इस कहानी में नया क्या है। ‘राजा और रंक’ से लेकर ‘बावर्ची’ जैसी फिल्मों में हम यह देख चुके हैं कि बाहर से आया कोई शख्स एक परिवार में खुशियां लौटा लाता है। तो हमने कब कहा कि इस कहानी में नयापन है। कहानी तो छोड़िए, अगर स्क्रिप्ट की भी बात की जाए तो यह सूरज बड़जात्या की एक कमज़ोर फिल्म ही गिनी जाएगी। लेकिन भई, प्रेज़ेंटेशन नाम की भी कोई चीज़ होती है कि नहीं? तो बस, इस फिल्म में वही है जो आंखों को सुहाता है, दिलों को छूता है, लुभाता है और दिमाग में भी यह संदेश छोड़ जाता है कि अगर सब लोग ‘मैं’ को भूल कर ‘हम’ हो जाएं तो प्रेम-प्यार जैसा रतन-धन हम सब की झोली में होगा।

तकरीबन तीन घंटे की फिल्म में ढेरों कलाकार हैं और हर किसी ने खुद को मिले छोटे या बड़े रोल को कायदे से निभाया है। इन सब के बीच स्वरा भास्कर या दीपक डोबरियाल हर बार की तरह अपना असर छोड़ जाते हैं। गाने काफी ज़्यादा हैं लेकिन अर्से बाद किसी फिल्म के गानों के शब्दों की गहराई में जाने को और उन्हें छू लेने को जी करता है। इरशाद कामिल के गीतों और हिमेश रेशमिया के संगीत को सलाम करने को जी करता है।

तो मित्रों, किसी झांसे में न आइए। बुद्धिजीवियों की सुनेंगे या खुद को बुद्धिजीवी मान कर यह फिल्म देखेंगे तो बाद में पछताएंगे। लेकिन अगर पर्दे से उतरते साफ-सुथरे मनोरंजन की तलैया में गोते लगाने का मन हो, अपने परिवार के साथ क्वालिटी टाइम बिताने का मन हो, प्रेम जैसे अद्भुत भाव में खो जाने का मन हो तो बस, चले जाइए यह फिल्म देखने। हां, रुमाल ज़रूर रख लीजिएगा, दो-एक बार आंखें पोंछने के लिए।

अपनी रेटिंग-तीन स्टार

(नोट-इस फिल्म की रिलीज़ के समय यह रिव्यू किसी अन्य पोर्टल पर प्रकाशित हुआ था।)

Release Date-12 November, 2015

(दीपक दुआ फिल्म समीक्षक व पत्रकार हैं। 1993 से फिल्म-पत्रकारिता में सक्रिय। मिज़ाज से घुमक्कड़। ‘सिनेयात्रा डॉट कॉम’ (www.cineyatra.com) के अलावा विभिन्न समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, न्यूज पोर्टल आदि के लिए नियमित लिखने वाले दीपक ‘फिल्म क्रिटिक्स गिल्ड’ के सदस्य हैं और रेडियो व टी.वी. से भी जुड़े हुए हैं।)

Tags: anupam kherarmaan kohliDeepak dobriyaldeepraj ranamanoj joshineil nitin mukeshprem ratan dhan payo reviewSalman Khansanjay mishrasonam kapoorsooraj barjatyasuhasini mulaySwara Bhaskar
ADVERTISEMENT
Previous Post

ओल्ड रिव्यू-एडल्ट कॉमेडी का फन ‘गुड्डू की गन’

Next Post

ओल्ड रिव्यू-‘तमाशा’ नाटक नहीं नौटंकी है

Related Posts

रिव्यू-चैनसुख और नैनसुख देती ‘हाउसफुल 5’
CineYatra

रिव्यू-चैनसुख और नैनसुख देती ‘हाउसफुल 5’

रिव्यू-भव्यता से ठगती है ‘ठग लाइफ’
CineYatra

रिव्यू-भव्यता से ठगती है ‘ठग लाइफ’

रिव्यू-‘स्टोलन’ चैन चुराती है मगर…
CineYatra

रिव्यू-‘स्टोलन’ चैन चुराती है मगर…

रिव्यू-सपनों के घोंसले में ख्वाहिशों की ‘चिड़िया’
CineYatra

रिव्यू-सपनों के घोंसले में ख्वाहिशों की ‘चिड़िया’

रिव्यू-दिल्ली की जुदा सूरत दिखाती ‘दिल्ली डार्क’
फिल्म/वेब रिव्यू

रिव्यू-दिल्ली की जुदा सूरत दिखाती ‘दिल्ली डार्क’

रिव्यू-लप्पूझन्ना फिल्म है ‘भूल चूक माफ’
फिल्म/वेब रिव्यू

रिव्यू-लप्पूझन्ना फिल्म है ‘भूल चूक माफ’

Next Post
ओल्ड रिव्यू-‘तमाशा’ नाटक नहीं नौटंकी है

ओल्ड रिव्यू-‘तमाशा’ नाटक नहीं नौटंकी है

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

  • होम
  • फिल्म/वेब रिव्यू
  • बुक-रिव्यू
  • यात्रा
  • यादें
  • विविध
  • हमारे बारे में
संपर्क – dua3792@yahoo.com

© 2021 CineYatra - Design & Developed By Beat of Life Entertainment

No Result
View All Result
  • होम
  • फिल्म/वेब रिव्यू
  • बुक-रिव्यू
  • यात्रा
  • यादें
  • विविध
  • हमारे बारे में

© 2021 CineYatra - Design & Developed By Beat of Life Entertainment