-दीपक दुआ… (This review is featured in IMDb Critics Reviews)
सैक्स-कॉमेडी या कहें कि एडल्ट-कॉमेडी का जॉनर हमारी फिल्मों के लिए अब नया नहीं रहा। बहुतेरे लोग हैं जो इस किस्म की फिल्में पसंद करते हैं। ऐसे ही दर्शकों के लिए बनी है ‘गुड्डू की गन’।
कोलकाता में घर-घर जाकर वॉशिंग पाउडर बेचने वाला गुड्डू उन घरों में रहने वालियों को ‘काम-सुख’ भी देता है। ऐसी ही एक लड़की के दादा उसे श्राप देकर उसकी ‘गन’ (लिंग) को सोने का बना देते हैं। शर्त यह है कि उसे सच्चा प्यार मिलेगा तो वह नॉर्मल हो जाएगा। अब वह इस गन से तो परेशान है ही, अपने पीछे पड़े एक डॉन, एक व्यापारी और एक चैनल के रिपोर्टर से बच कर भी भाग रहा है। साथ ही उसे अपने सच्चे प्यार को भी पाना है।
अब इस कहानी में आप लॉजिक ढूंढने मत बैठ जाइएगा। न ही इसमें दिखाई गई चीज़ों और की गई बातों को अपनी संस्कृति पर चोट समझिएगा। अगर… जी हां, ‘अगर’ आपको सैक्स-कॉमेडी पसंद है तो ही इस फिल्म को देखिए। रही इस फिल्म की बात, तो यह ज़रूरत से ज़्यादा लंबी है। कई जगह बेहद बोर करती है लेकिन अंत आते-आते संभल जाती है। हंसाती है, गुदगुदाती है मगर किस्तों में। अगर इसे लिखने-बनाने वालों ने अपनी दिमागी गन जरा ज़ोर से चलाई होती तो इस अनोखे सब्जैक्ट पर यह एक शानदार फिल्म भी हो सकती थी।
अपनी रेटिंग-दो स्टार
(नोट-मेरा यह रिव्यू इस फिल्म की रिलीज़ के समय किसी अन्य पोर्टल पर प्रकाशित हुआ था)
Release Date-30 October, 2015
(दीपक दुआ फिल्म समीक्षक व पत्रकार हैं। 1993 से फिल्म–पत्रकारिता में सक्रिय। मिज़ाज से घुमक्कड़। ‘सिनेयात्रा डॉट कॉम’ (www.cineyatra.com) के अलावा विभिन्न समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, न्यूज पोर्टल आदि के लिए नियमित लिखने वाले दीपक ‘फिल्म क्रिटिक्स गिल्ड’ के सदस्य हैं और रेडियो व टी.वी. से भी जुड़े हुए हैं।)