-दीपक दुआ… (This Review is featured in IMDb Critics Reviews)
सिनेमाई दुनिया के स्पेशल एजेंट्स की भीड़ में जो रोमांच ईथन हंट का किरदार परोसता है वैसा कोई और नहीं दे पाता। इसकी वजह वे असंभव लगने वाले मिशन तो हैं ही जिन्हें ईथन सहजता से अंजाम तक पहुंचाता है, साथ ही उसकी चार्मिंग पर्सनैलिटी और एक्शन की काबलियत भी है जो उसकी फिल्मों को देखने लायक बनाती है। 1996 से शुरू हुआ यह सिलसिला अब इस कड़ी की 7वीं फिल्म ‘मिशन इम्पॉसिबल-डैड रेकॉनिंग पार्ट वन’ तक आ पहुंचा है जो अगले साल इस फिल्म के दूसरे और इस सीरिज़ के 8वें भाग तक पहुंच कर थम जाएगा। वैसे भी पिछले 27 साल से ईथन का किरदार निभा रहे टॉम क्रूज़ अब 61 के हो चुके हैं और ज़रूरी है कि या तो यह श्रृंखला अब खत्म हो या फिर कोई नया एजेंट आई.एम.एफ. यानी ‘इम्पॉसिबल मिशन फोर्स’ के लिए तलाशा जाए।
बहरहाल, अपने यहां इंगलिश, हिन्दी, तमिल और तेलुगू में रिलीज हुई यह फिल्म इस बार इस मायने में अनोखी है कि इसमें बतौर विलेन कोई इंसान, संस्था या देश नहीं बल्कि वह ए.आई. यानी आर्टिफिशल इंटेलीजेंस (कृत्रिम बुद्धिमता) है जिस पर बरसों से काम हो रहा है और जिसे इंसानी जीवन को बदलने की दिशा में एक क्रांतिकारी कदम के तौर पर देखा जा रहा है। ज़रा सोचिए कि जिस ए.आई. को इंसान ने अपनी मदद के लिए बनाया उस ए.आई. की ही नीयत खराब हो जाए और वह इंसानों को ही अपने इशारों पर नचाने लगे तो…?
ए.आई. जिसे इस फिल्म में ‘एन्टिटी’ कहा गया है उससे जुड़े सारे रहस्य एक मशीन में बंद हैं। उस मशीन की एक चाबी के दो हिस्से दो अलग-अलग जगहों पर हैं। ईथन को बस वह चाबी हासिल करनी है। हालांकि उसे भी नहीं पता कि यह चाबी कहां लगेगी। उसे क्या, सिर्फ दो-एक लोगों को ही पूरा सच पता है। लेकिन इस चाबी को हासिल करने में तो बहुत सारे लोग लगे हुए हैं। कौन हैं ये लोग? किस के लिए काम कर रहे हैं ये? अच्छे लोगों के? बुरे लोगों के? या फिर…?
‘मिशन इम्पॉसिबल’ सीरिज़ की फिल्में जिस थ्रिल, स्पीड और एक्शन के लिए जानी जाती हैं, वह सब इस फिल्म में भी है और भरपूर मात्रा में है। यह ज़रूर है कि अपनी ही बनाई किसी मशीन या रोबोट के दुष्टता पर उतारू हो जाने की कहानियां हम पहले भी देख चुके हैं। रजनीकांत वाली ‘रोबोट’ इसकी मिसाल है। लेकिन यहां ए.आई. जिस तरह से पल-पल परिदृश्य बदलती है, वह देखने लायक है। वैसे भी इस फिल्म को दर्शक खालिस मनोरंजन की चाह में देखने जाते हैं और वह इस फिल्म में इतना अधिक है कि पूरे पैसे वसूल होते हैं। शुरुआत में रेगिस्तान में गोलाबारी हो, कार-चेज़िंग के हंसाने वाले सीन, एयरपोर्ट वाले सीन या अंत का ट्रेन वाला बेमिसाल सीक्वेंस, सारे के सारे सीन दम साध कर देखने पड़ते हैं। ज़रा नज़र हिली, ज़रा कान घुमाए कि कुछ न कुछ मिस हो जाएगा। मनोरंजन के दीवानों को भला और क्या चाहिए?
टॉम क्रूज़ के चेहरे पर उम्र भले झलकने लगी हो, उनकी फिटनेस पर उंगली नहीं उठाई जा सकती। फिल्म के बाकी नए-पुराने कलाकार भी कमाल काम करते हैं। निर्देशक क्रिस्टोफर मैक्वॉयर ने हर डिपार्टमैंट से भरपूर मेहनत करवाई है। इस फिल्म के लिए खास ट्रेन, पहाड़ पर रैंप आदि बनाने से लेकर दुनिया के कई शहरों में हुई शूटिंग, कैमरागिरी, बैकग्राउंड म्यूज़िक आदि मिल कर इस फिल्म को गज़ब दर्शनीय बनाते हैं।
(रेटिंग की ज़रूरत ही क्या है? रिव्यू पढ़िए और फैसला कीजिए कि यह कितनी अच्छी या खराब है। और हां, इस पोस्ट के नीचे कमेंट कर के इस रिव्यू पर अपने विचार ज़रूर बताएं।)
Release Date-12 July, 2023 in theaters
(दीपक दुआ फिल्म समीक्षक व पत्रकार हैं। 1993 से फिल्म–पत्रकारिता में सक्रिय। मिज़ाज से घुमक्कड़। ‘सिनेयात्रा डॉट कॉम’ (www.cineyatra.com) के अलावा विभिन्न समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, न्यूज पोर्टल आदि के लिए नियमित लिखने वाले दीपक ‘फिल्म क्रिटिक्स गिल्ड’ के सदस्य हैं और रेडियो व टी.वी. से भी जुड़े हुए हैं।)
हॉलीवुड कि इस तरह की ज़्यादातर फ़िल्में वाकई काबिले तारीफ होती है….
फ़िल्म का सब्जेक्ट और उसमें ए. आई. के मेरिट और डेमेरिट को दिखाना ही इस फ़िल्म की तमाम टीम की गुणवत्ता को दर्शाता है… यहाँ बॉलीवुड की तरह बे -सर पैर कि फिल्मो की बे -दीमागदार लोगों की भीड़ को इस फ़िल्म से सीख लेने कि ज़रूरत है।
रिव्यु पढ़कर फ़िल्म को देखना तो बानता ही है…
रेटिंग ***** (सात में से सात तारें )
बेशक ईथन हंट तो है ही मगर 007 सिरीज़ की डेनियल क्रेग अभिनीत एक्यूफॉल और No time to die को भी नज़रंदाज़ नही किया जा सकता।
जहां स्काईफॉल थ्रिल करती है वहीं no time to die इमोशंस से भरपूर है।