-दीपक दुआ… (This review is featured in IMDb Critics Reviews)
इस फिल्म की कहानी वही है जो आप इसके ट्रेलर में देख चुके हैं। देहरादून में अपने पिता के साथ रह रही 24 साल की मिली नौडियाल कनाडा जाने वाली है। एक रेस्टोरैंट में काम करती है। उसका एक ब्वॉय फ्रैंड भी है। अचानक एक रात वह गायब हो जाती है। सब उसे तलाश रहे हैं लेकिन वह तो अपने ही रेस्टोरैंट के फ्रीजर रूम में बंद है। क्यों? किसने किया यह? क्या वजह थी? कैसे मिलेगी वह? किस हाल में? ज़िंदा या…!
2019 में निर्देशक मथुकुट्टी ज़ेवियर मलयालम में अपनी पहली फिल्म ‘हेलन’ लेकर आए थे जिसे कई अन्य पुरस्कारों के अलावा दो राष्ट्रीय पुरस्कार भी मिले थे। बरसों से दक्षिण की फिल्मों के अधिकार लेकर उन्हें हिन्दी में बनाते आए निर्माता बोनी कपूर ने उस फिल्म के भी अधिकार खरीदे और उन्हीं मथुकुट्टी से अपनी बेटी जाह्न्वी कपूर के लिए यह फिल्म बनवा डाली। एक ही फिल्म को दूसरी बार बनाते समय जो सहजता होनी चाहिए, वह इस फिल्म में भी है जो इसे ताकत देती है। रितेश शाह ने हिन्दी की स्क्रिप्ट सधे हाथों से लिखी है। किरदारों को बहुत ही सहजता के साथ देहरादून में फिट किया है और इस शहर को शायद पहली बार इस कदर ‘इस्तेमाल’ भी किया गया है। संवाद सरल हैं, प्यारे लगते हैं।
इस किस्म की ‘सरवाइवल थ्रिलर’ फिल्मों को देखना दर्शकों को इसलिए भी सुहाता है कि इसका मुख्य किरदार इंटेलीजैंट होता है। फ्रीजर में फंसने के बाद खुद को ज़िंदा रखने के लिए की जा रही मिली की तमाम कोशिशें इसकी गवाही देती हैं। ऐसी फिल्मों का ज़रूरी तनाव यह फिल्म सफलता से रच पाती है। फ्रीजर का टेंपरेचर जैसे-जैसे कम होता जाता है, जैसे-जैसे उसके भीतर ठंडक बढ़ती है, वैसे-वैसे दर्शक की हथेलियों का पसीना भी बढ़ता है। यही इस फिल्म की सफलता है। अलबत्ता शुरूआती दृश्यों को थोड़ा और कसा जाना चाहिए था। ‘दून किचन’ में काम कर रही मिली के मुंह से ‘डून किचन’ तो नहीं ही बुलवाना चाहिए था।
जाह्न्वी कपूर अपने किरदार में पूरी तरह से समाई हैं। उनके काम में अनुशासन दिखाई देता है। सन्नी कौशल असर छोड़ते हैं। मनोज पाहवा वक्त आने पर बता जाते हैं कि वह कितने काबिल अभिनेता हैं। एक पिता जिसकी बेटी लापता है, उसके भावों और भंगिमाओं को वह सहजता से दर्शा पाते हैं। बुरे पुलिस वाले के रूप में अनुराग अरोड़ा और अच्छे पुलिस वाले के तौर पर संजय सूरी प्रभावित करते हैं। रेस्टोरैंट के मैनेजर के किरदार में विक्रम कोचर असरदार भी रहे और मज़ेदार भी। बाकी के कलाकार भी अच्छा काम कर गए। कैमरा, प्रोडक्शन और मेकअप मिल कर फ्रीजर के भीतर के दृश्यों को बेहद असरदार बना पाने में कामयाब रहे हैं। गीत-संगीत थोड़ा और बढ़िया होना चाहिए था।
मिली की कहानी के बरअक्स यह फिल्म पिता-पुत्री के संबंधों पर भी बात करती है। बताती है कि अपने बच्चों की कोई बात किसी तीसरे से पता चले तो मां-बाप को ठेस पहुंचती है। इस बहाने से यह फिल्म सीख भी दे जाती है, कोई लेना चाहे तो।
(रेटिंग की ज़रूरत ही क्या है? रिव्यू पढ़िए और फैसला कीजिए कि फिल्म कितनी अच्छी या खराब है। और हां, इस पोस्ट के नीचे कमेंट कर के इस रिव्यू पर अपने विचार ज़रूर बताएं।)
Release Date-04 November, 2011 in theaters.
(दीपक दुआ फिल्म समीक्षक व पत्रकार हैं। 1993 से फिल्म–पत्रकारिता में सक्रिय। मिज़ाज से घुमक्कड़। ‘सिनेयात्रा डॉट कॉम’ (www.cineyatra.com) के अलावा विभिन्न समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, न्यूज पोर्टल आदि के लिए नियमित लिखने वाले दीपक ‘फिल्म क्रिटिक्स गिल्ड’ के सदस्य हैं और रेडियो व टी.वी. से भी जुड़े हुए हैं।)
दीपक दुआ जी का ये रिव्यु पढ़कर लगता है कि ये फ़िल्म ज़रूर देखनी चाहिए। जैसा की इन्होंने अपने रिव्यु में विस्तारित किया है कि यह फ़िल्म एक आज की युवा पीढ़ी को एक संदेश भी देती है। थ्रिलर …आई लाइक थ्रिलर मूवीज़।
रिव्यु का ‘टाइटल’ वाकई काबिले तारीफ है और ये दर्शाता है कि रिव्यु करने वाला एक अथाह ज्ञान का भंडार रखता है।
जिस भाषा का इस्तेमाल किया है बहुत ही सहज एवं सरल है।
आगे भी ऐसे रिव्यु की अपेक्षा रखता हूँ।
धन्यवाद।।
धन्यवाद…
Really heart touching movie
And your review always great
Thanks
जाहन्वी कपूर एक अभिनेत्री के तौर पर अभी तक कुछ खास नहीं कर पाई है उस लिहाज से यह फिल्म उनके लिए एक शानदार अवसर है कुछ कर दिखाने का , एक अच्छी कहानी, ही फिल्म का अस्ली हीरो होती है लेकिन एक अच्छे निर्देशक के बिना वो कहानियां भी निष्प्राण होती है शुक्र है की मिली मे सब सही मात्रा में मिला है बाकी दीपक जी के दिलचस्प रिव्यू पढ़ कर मिली को लेकर उत्सुकता और अधिक बढ़ जाती है!!