-दीपक दुआ… (This review is featured in IMDb Critics Reviews)
छोटे शहर की बोल्ड-बिंदास लड़की। अपने बॉय-फ्रैंड के साथ मौज-मज़े करती लड़की। दुनिया भर से पंगा लेती, भिड़ती लड़की। विदेश से शादी करने आया एक सीधा लड़का। आते ही उसे भा गई यह लड़की। उसकी हकीकत जान कर भी उससे शादी करने को तुला लड़का। (‘तनु वैड्स मनु’ याद आ रही है…?) मर्ज़ी न होते हुए भी लड़की ने कर ली इस सीधे लड़के से शादी। लड़की अब भी बगावती तेवर अपनाए हुए है और लड़का उसका दिल जीतने में लगा है। यहां तक कि लड़की की खुशी के लिए वह उसे छोड़ने को भी तैयार हो जाता है। (‘हम दिल दे चुके सनम’ याद आ रही है…?) इस कहानी को बनाया है अनुराग कश्यप ने जो इससे पहले भी ‘देव डी’ में एक प्रेम-त्रिकोण दिखा चुके हैं। तो जनाब, कुल मिला कर मामला यह कि कहानी है ‘हम दिल दे चुके सनम’ वाली, सैटअप है ‘तनु वैड्स मनु’ वाला और ट्रीटमैंट है ‘देव डी’ वाला। कुछ इस तरह से की हैं अनुराग ने मनमर्ज़ियां। अब की हैं, तो की हैं।
लेकिन आप इस कहानी को और इस फिल्म को सिरे से नहीं नकार सकते। आज के शहरी युवाओं की सोच को काफी करीब से और काफी गहराई से दिखाती है यह फिल्म। कनिका ढिल्लों की कहानी इसलिए भी सराही जाने लायक है कि खुद एक औरत होते हुए कैसे वो दो जुदा पुरुष किरदारों की सोच में उतरती हैं और कैसे वो उन तमाम किरदारों के अंतस में भी झांकती हैं जो इस कहानी में हमें नज़र आते हैं। सच तो यह है कि इस कहानी के ये सारे किरदार ही हैं जो इसे दिलचस्प और दर्शनीय बनाते हैं। बिन मां-बाप की लड़की के चाचा-चाची, कज़िन, दादा जी, लफंडर लड़का, लड़के के दोस्त, लंदन से आया लड़का, उसका परिवार, भाई जैसा नौकर, मैरिज ब्यूरो वाले काका जी… ये सब मिल कर एक ऐसा माहौल बनाते हैं कि आपको यह अहसास ही नहीं होता कि आप कोई फिल्म देख रहे हैं। लगता है कि अमृतसर की किसी गली में यह सब हो रहा है और आप उसी गली के सबसे ऊंचे मकान की खिड़की से यह सब अपने सामने होते हुए महसूस कर रहे हैं। कैमरे की कारीगरी भी इसमें भरपूर हाथ बंटाती है। अनुराग के ट्रीटमैंट में भले ही ‘देव डी’ वाला टच दिखता हो, लेकिन अपने पात्रों की खूबियों-खामियों को वह सलीके से सामने ला पाने में कामयाब दिखाई देते हैं।
विक्की कौशल अपने अभिनय से समां बांधते हैं। जब-जब वह पर्दे पर होते हैं, पर्दे पर रौनक-सी लगी रहती है। तापसी पन्नू अपने तीखे-चुलबुलेपन के अलावा संजीदा रूप में भी लुभाती हैं। अभिषेक बच्चन को ऐसे ही किरदार ज़्यादा सूट करते हैं-सीरियस, मैच्योर किस्म के। बाकी तमाम कलाकार भी अपने किरदारों में समाए दिखते हैं। किसी हिन्दी फिल्म में विश्वसनीय पंजाबी किरदारों के लिए भी इसकी तारीफ होनी चाहिए। हां, फिल्म कई जगह बहुत खिंचती-सी लगती है गीत-संगीत असरदार है लेकिन इनका अति-इस्तेमाल फिल्म का असर हल्का करने लगता है। इंटरवल से ठीक पहले अमृता प्रीतम की ‘मैं तेनूं फिर मिलांगी…’ सुना कर अनुराग दिल भले जीतते हों लेकिन उनके नायक-नायिका जिस जिस्मानी ‘फ्यार’ को ही ‘प्यार’ मान बैठे हैं, वो दर्शकों के दिलों में गहरे नहीं उतर पाता।
यह फिल्म परिवार के साथ बैठ कर देखने लायक भले न हो लेकिन इसे देखना चाहिए। खासकर उन लोगों को जो आज की खुले ख्यालात वाली खिलंदड़ युवा पीढ़ी की मनमर्ज़ियों का समर्थन करते हैं। उन युवाओं को भी जो इन मनमर्ज़ियों को ही उम्र भर का प्यार मान लेते हैं। शायद ये उनकी सोच पर असर डाल सके।
अपनी रेटिंग-तीन स्टार
Release Date-14 September, 2018
(दीपक दुआ फिल्म समीक्षक व पत्रकार हैं। 1993 से फिल्म-पत्रकारिता में सक्रिय। मिज़ाज से घुमक्कड़। ‘सिनेयात्रा डॉट कॉम’ (www.cineyatra.com) के अलावा विभिन्न समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, न्यूज पोर्टल आदि के लिए नियमित लिखने वाले दीपक ‘फिल्म क्रिटिक्स गिल्ड’ के सदस्य हैं और रेडियो व टी.वी. से भी जुड़े हुए हैं।)