-दीपक दुआ… (This review is featured in IMDb Critics Reviews)
26 नवंबर, 2008 को मुंबई के ताज होटल में घुसे आतंकियों को नेस्तनाबूद करने का काम एन.एस.जी. यानी राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड के कमांडोज ने किया था जिनमें से मेजर संदीप उन्नीकृष्णन ने सर्वोच्च बलिदान देकर शहीद का तमगा पाया था। यह फिल्म उन्हीं मेजर संदीप के जीवन में झांकती है। उनके बचपन, जवानी, पारिवारिक ज़िंदगी, सोच और साहस को करीब से दिखाती है।
किसी बायोपिक के लिए तय कर दिए गए पैटर्न पर चलती हुई यह फिल्म दिखाती है कि संदीप बचपन से ही कुछ अलग थे, दूसरों की मदद करने को तत्पर रहते थे, जीवन में कुछ साबित करना चाहते थे। फिल्म उनके गुणों को स्थापित करते हुए उनकी जवानी के दिनों, उनके रोमांस, फौज की ट्रेनिंग आदि को दिखाते हुए धीरे-धीरे हमें नवंबर, 2008 के उन दो दिनों तक ले जाती है जब मेजर संदीप अपने पराक्रम की पराकाष्ठा दिखाते हुए देश पर शहीद हुए थे।
चूंकि मेजर संदीप की कहानी में देखने-दिखाने वाला प्रसंग उनके अंतिम दो दिनों का ही था इसलिए इस कहानी को थोड़ा-सा फिल्मी बनाते हुए उनके निजी जीवन, उनकी गर्ल फ्रैंड, परिवार, दोस्तों आदि के साथ-साथ उनकी ज़िंदगी के उतार-चढ़ाव भी इसमें शामिल किए गए हैं ताकि दर्शकों की दिलचस्पी इसे देखने में बनी रहे। बहुत जगह उनके पिता के नैरेशन का सहारा भी लिया गया है जो इस पूरी कहानी को बयान कर रहे हैं। इससे यह फिल्म एक सुडौल आकार तो लेती है लेकिन सच यही है कि ताज होटल की घटनाओं से इतर इसमें बहुत ज़्यादा और बहुत कस कर बांध सकने वाले तत्वों की कमी है। बावजूद इसके जब-जब यह फिल्म मेजर संदीप के ‘एक्शन’ दिखाती है, जकड़े रहती है और यही इसकी सफलता है।
मेजर और उनकी प्रेयसी के संबंधों में आ रहे बदलावों के ज़रिए यह फिल्म यह बात भी असरदार तरीके से कहती है कि देश और देशवासियों की सेवा करना जिन फौजियों की ड्यूटी समझी जाती है असल में उनके परिवार वाले भी कुछ कम त्याग नहीं कर रहे होते हैं। फिल्म में मेजर के निजी जीवन से जुड़ी कुछ और दिलचस्प घटनाओं को लिया जाना चाहिए था। 1995 में पुणे में हुई उनकी ट्रेनिंग के बाद सीधे 2008 का एन.एस.जी. दिखाना भी इसे कमज़ोर कर गया। मेजर संदीप की कारगिल, गुजरात, हैदराबाद और राजस्थान की पोस्टिंग के हिस्से और किस्से भी इसमें शामिल रहते तो इस कहानी और उनकी ‘बायोपिक’ को बल ही मिलता। खैर, अभी भी अडिवि शेष की लिखी कथा-पटकथा में जो है वह कम भले हो, रूखा या खोखला नहीं है। अक्षत अजय शर्मा ने हिन्दी में इसे कायदे से ढाला है। शशि किरण तिक्का ने बतौर निर्देशक कहानी को आगे-पीछे ले जाने का जो तरीका चुना वह दिलचस्पी जगाए रखता है। हालांकि उन्हें फिल्म को थोड़ा और छोटा करने पर भी ध्यान देना चाहिए था।
तेलुगू और हिन्दी में एक साथ बनी इस फिल्म में तेलुगू अभिनेता अडिवि शेष ने मेजर संदीप उन्नीकृष्णन की भूमिका के साथ भरपूर न्याय किया है। एक नायक की छवि को उन्होंने पर्दे पर निष्पाप रूप से उतारा है। सई मांजरेकर, शोभिता धुलिपाला, मुरली शर्मा जैसे इसके अन्य कलाकार भी जंचे। रेवती और प्रकाश राज बेहतरीन रहे। अंत के दृश्यों में रेवती को अभिनय का एवरेस्ट छूते देखना रोमांचित करता है। गीत-संगीत साधारण है।
फिल्म का हाई-प्वाइंट ताज होटल के तनाव और एक्शन भरे सीक्वेंस ही हैं और फिल्म की पूरी टीम ने इन दृश्यों को बेहद कुशलता से पर्दे पर उतारा है। पाकिस्तानी आतंकियों का कंट्रोल रूम भले ही बचकाना था लेकिन ताज का सैट, उसमें हो रही घटनाएं, यहां के किरदार, उनके संवाद, सब सलीके से गढ़े गए और इसीलिए बेहद असरदार भी रहे। अंत में आंखें भी नम हुईं।
इस किस्म की कहानियां बार-बार पर्दे पर आनी चाहिएं। देश के नायकों की कहानियां देश के नौनिहालों को बार-बार दिखाई जानी चाहिएं। शहीदों की सिर्फ चिताओं पर ही मेले नहीं लगने चाहिएं, उनके जीवन का उत्सव भी मनाया जाना चाहिए।
(रेटिंग की ज़रूरत ही क्या है? रिव्यू पढ़िए और फैसला कीजिए कि सीरिज़ कितनी अच्छी या खराब है। और हां, इस रिव्यू पर अपने विचार ज़रूर बताएं।)
Release Date-03 June, 2022
(दीपक दुआ फिल्म समीक्षक व पत्रकार हैं। 1993 से फिल्म–पत्रकारिता में सक्रिय। मिज़ाज से घुमक्कड़। ‘सिनेयात्रा डॉट कॉम’ (www.cineyatra.com) के अलावा विभिन्न समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, न्यूज पोर्टल आदि के लिए नियमित लिखने वाले दीपक ‘फिल्म क्रिटिक्स गिल्ड’ के सदस्य हैं और रेडियो व टी.वी. से भी जुड़े हुए हैं।)
Bahut badhia samiksha ki hai aapne, sach me in shaheedon ke upar barabar filmein banni chahiye aur logon ko unki shaurya gaatha se parichit karaate rehna chahiye. In sabme yadi Cinema banane waale sahi dhang se kaary karein to wo ek saarthak pahal hogi in shaheedon ke prati sachchi shraddhanjali ke taur par. Jis prakar Manoj Kumar Bharat Kumar ke naam se jaane jaate hain waise hi abhi bhi kai aur Bharat Kumar ki zarurat hai Cinema jagat ko fir chahe wo Tamilnadu se hon, Andhra Pradesh se hon, Mumbai se, Kolkata se hon ya desh ke kisi Cinema jagat se hon. Deepak Bhai is satik samiksha ke liye bahut bahut badhaai aapko.
धन्यवाद
बहुत ही बढ़िया समीक्षा! वाकई लगातार बनती रहनी चाहिए ऐसी फिल्में ।
शुक्रिया…