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Home फिल्म/वेब रिव्यू

रिव्यू : नहीं चूका ‘सम्राट पृथ्वीराज’ चौहान

Deepak Dua by Deepak Dua
2022/06/03
in फिल्म/वेब रिव्यू
4
रिव्यू : नहीं चूका ‘सम्राट पृथ्वीराज’ चौहान
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-दीपक दुआ… (This review is featured in IMDb Critics Reviews)

इतिहास के उन पन्नों को सिनेमा के पर्दे पर उतारना बहुत जोखिम भरा होता है जिनमें इतिहास और दंतकथाओं का मिला-जुला रूप हो। यही वजह है कि ‘बाजीराव मस्तानी’, ‘पद्मावत’, ‘तान्हा जी’, ‘केसरी’, ‘मणिकर्णिका’, ‘पानीपत’, ‘जोधा अकबर’ जैसी ऐतिहासिक विषयों वाली फिल्मों को लेकर विवाद हुए और डॉ. चंद्रप्रकाश द्विवेदी की यह फिल्म ‘सम्राट पृथ्वीराज’ भी अछूती नहीं रही। बावजूद इसके फिल्मकार ऐसे विषयों पर हाथ आजमाते हैं और अक्सर दर्शकों द्वारा सराहे भी जाते हैं। यह फिल्म भी इसी कतार में है।

हिन्दुस्तान का एक आम दर्शक पृथ्वीराज चौहान के बारे में इतना ही जानता है कि पहले अजमेर और फिर दिल्ली के सम्राट बने पृथ्वीराज चौहान ने कन्नौज के राजा जयचंद की बेटी संयोगिता का उसकी इच्छा से हरण किया जिसके बाद जयचंद ने गजनी के सुलतान मौहम्मद गोरी को अपनी मदद के लिए बुला भेजा। वही गोरी जिसे कभी चौहान ने जीवन-दान दिया था। कपट से गोरी ने पृथ्वीराज को बंदी बना लिया और दिल्ली की गद्दी पर कुतुबुद्दीन ऐबक को बिठा कर पृथ्वीराज को अपने साथ ले जाकर उसे अंधा कर दिया। बाद में सम्राट के कवि मित्र पृथ्वीचंद भट्ट यानी चंद बरदाई के इशारे पर चौहान ने शब्दभेदी बाण चला कर गोरी को मार डाला जिसके बाद इन दोनों मित्रों ने एक-दूसरे के पेट में खंजर भोंक कर जान दे दी। यहीं से उत्तर और मध्य भारत में हिन्दू साम्राज्य का खात्मा हुआ और इसीलिए आज तक भी देश के गद्दारों को जयचंद की संज्ञा दी जाती है।

अब इस फिल्म की बात। ‘चाणक्य’ जैसा शोधपरक टी.वी. धारावाहिक बना चुके डॉ. चंद्रप्रकाश द्विवेदी किसी ऐतिहासिक विषय पर फिल्म बनाएं तो उससे बड़ी उम्मीदें लगना स्वाभाविक है। उन्होंने ‘पृथ्वीराज रासो’ समेत पृथ्वीराज चौहान पर लिखे गए अन्य ग्रंथों से प्रसंग लेकर उनमें अपनी कल्पनाओं का मेल करवा कर जो कहानी रची, वह रोचक तो है लेकिन उस कहानी के इर्दगिर्द बुना गया पटकथा का जाल रंग-बिरंगा और भव्य होने के बावजूद कसा हुआ नहीं है। इसीलिए यह जाल दर्शक को आकर्षित तो करता है मगर उसे पूरी तरह से फंसा नहीं पाता।

जब कोई प्रमाणित इतिहास मौजूद न हो और उस पर बनने वाली फिल्म में कारोबारी गणित का ध्यान भी रखना हो तो उस फिल्म के ‘फिल्मीपने’ पर भला कैसा एतराज़। तो, इसे फिल्म समझ कर देखिए। देखिए कि कैसे पहले ही सीन से यह फिल्म आपको बांध लेती है और आप इसके फैलाए रंगीन आवरण में घिरते चले जाते हैं। जी हां, भव्य सैट्स, रंगीन माहौल और शानदार वी.एफ.एक्स व कैमराकारी वाली यह फिल्म आंखों को काफी भाती है। शौर्य, साहस, न्याय, नारी को सम्मान देने और शरण में आए की रक्षा के लिए तत्पर रहने वाले इतिहास के हमारे नायकों की सोच के लिए इसे देखिए। देखिए कि कैसे उन लोगों ने हम पर पलट कर वार किए जिन्हें जीवन-दान दिया गया था। कैसे उन लोगों ने हमारे वीरों को छल से हराया। उस जयचंद के लिए इसे देखिए जिसने निज स्वार्थ के लिए अपने परिवार और कौम ही नहीं, देश तक से दगा किया। पृथ्वीराज और संयोगिता के रूहानी प्रेम के लिए इसे देखिए और देखिए कि कैसे केसरिया बाना पहन कर इस देश की वीरांगनाओं ने अपने सम्मान की रक्षा के लिए जौहर किए थे।

पृथ्वीराज चौहान के किरदार में अक्षय कुमार की जगह कोई और होता तो…? इस काल्पनिक सवाल से बाहर निकलिए और देखिए कि अक्षय कुमार ने इतना भी बुरा काम नहीं किया है कि आप उसे देख कर खुदकुशी कर लें। सोनू सूद, आशुतोष राणा, मानव विज, गोविंद पांडेय, साक्षी तंवर, ललित तिवारी, मनोज जोशी खूब जंचे। संजय दत्त भी अपनी सीमाओं में रह कर लुभाते रहे। एक-आध सीन में डॉ. द्विवेदी भी आ जाते तो निखार आ जाता। विश्व सुंदरी रहीं मानुषी छिल्लर का आना इत्र की खुशबू सरीखा है। गीत-संगीत उम्दा है। गाने सुनने लायक हैं और मन भर कर देखने लायक भी। यह ज़रूर है कि फिल्म कुछ ज़्यादा ही म्यूज़िकल लगती है। खासतौर से इंटरवल के बाद ‘मखमली…’ वाले गाने का आना चलती कहानी को रोकता है। वहीं ‘योद्धा बन गई मैं…’ बेहद प्रभावी है। इस गाने में सुनिधि चौहान की आवाज़ और मानुषी की अदाएं दिल छूती हैं।

यह सही है कि यह फिल्म कमर्शियल खांचे में बनी है और कोई बहुत महान सिनेमाई कृति नहीं है। लेकिन जैसा और जितना कथानक यह दिखाती है वह आपको अपने गौरवशाली इतिहास पर गर्व करने का अवसर देता है। इसे देखते हुए आप अचंभित होते हैं, रोमांचित होते हैं, आंखों में आई नमी महसूस करते हैं, भुजाओं में फड़कन और सीने में दम भरा हुआ पाते हैं। क्या काफी नही है इतना? इसी फिल्म के एक गीत के शब्दों में कहूं तो यह फिल्म ‘ध्रुव-पद’ पाने लायक भले न हो, लक्ष्य सिद्धि में पीछे नहीं रही है।

(रेटिंग की ज़रूरत ही क्या है? रिव्यू पढ़िए और फैसला कीजिए कि फिल्म कितनी अच्छी या खराब है। और हां, इस रिव्यू पर अपने विचार ज़रूर बताएं।)

Release Date-03 June, 2022

(अपील-सिनेमाघरों में फिल्म देखते समय अपने मोबाइल की आवाज़ या रोशनी से दूसरों को डिस्टर्ब न करें।)

(दीपक दुआ फिल्म समीक्षक व पत्रकार हैं। 1993 से फिल्म-पत्रकारिता में सक्रिय। मिज़ाज से घुमक्कड़। ‘सिनेयात्रा डॉट कॉम’ (www.cineyatra.com) के अलावा विभिन्न समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, न्यूज पोर्टल आदि के लिए नियमित लिखने वाले दीपक ‘फिल्म क्रिटिक्स गिल्ड’ के सदस्य हैं और रेडियो व टी.वी. से भी जुड़े हुए हैं।)

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Comments 4

  1. Dr. Renu Goel says:
    10 months ago

    Aisi movies business bhut accha krti h
    Pr usse bhi accha apka review h

    Reply
    • CineYatra says:
      10 months ago

      धन्यवाद

      Reply
  2. Sunita Tewari says:
    10 months ago

    रिव्यू पढ़कर उसी में को गयी थी। अब लग रहा है कि फिल्म एक बार देख लेनी चाहिए।

    Reply
    • CineYatra says:
      10 months ago

      धन्यवाद

      Reply

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