-दीपक दुआ… (This Review is featured in IMDb Critics Reviews)
पांच साल पहले जब लोकसभा चुनावों से ठीक पहले फिल्म ‘पी एम नरेंद्र मोदी’ आने वाली थी तो खूब हो-हल्ला मचा था जिसके चलते वह फिल्म चुनावों के बाद रिलीज़ हो सकी थी। अब फिर से लोकसभा चुनाव सिर पर हैं। ऐसे में मौजूदा सत्ताधारी पार्टी के धुरंधर नेता और देश के प्रधानमंत्री रहे स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेयी पर बनी फिल्म ‘मैं अटल हूं’ का आना चुनावी संकेत ही तो है। किसी को मिर्ची न लगे इसलिए इस फिल्म में कहने भर को भी मोदी का ज़िक्र या झलक तक नहीं है जबकि सच यह है कि मोदी उन्हें अपना राजनीतिक गुरु मानते आए हैं।
रिव्यू-भाता है वह ‘मोदी’ तो भाएगी यह ‘मोदी’
अटल बिहारी वाजपेयी भारत के उन चुनिंदा राजनेताओं में से थे जिनका सम्मान उनके विरोधियों ने भी भरपूर किया। अपनी ओजस्वी भाषणशैली, दिल छूती कविताओं, अडिग सिद्धांतों व देश के प्रति अपनी राष्ट्रवादी सोच के चलते जनता ने भी उन्हें भरपूर आदर व स्नेह दिया। उन्हीं अटल बिहारी के बचपन से प्रधानमंत्रित्व काल तक की कहानी दिखाती है यह फिल्म। जिस मराठी किताब पर यह आधारित है उसमें उनके अटला से अटल बिहारी तक के सफर और स्पष्ट तौर पर उनके उजास पक्ष को ही दर्शाया गया है। यह फिल्म भी उसी राह पर चलती है। अटल जी के बारे में जिन्हें जानकारी है, उन्हें तो इस फिल्म में कुछ नया नहीं मिलने वाला मगर जिन लोगों को अटल जी के बारे में जानने की उत्सुकता है, उन्हें ज़रूर यह बहुत कुछ देगी। खासतौर से अपने पिता के साथ एक ही कक्षा में बैठ कर कानून की पढ़ाई करना और अपनी सहपाठी राजकुमारी की ओर उनका आकर्षित होना दर्शकों को अचरज भरा लग सकता है।
दो घंटे 20 मिनट में अटल जी के जीवन के हर पक्ष को समेटना मुश्किल काम है। लेकिन ऐसा करते हुए यह फिल्म कहीं अटकी नहीं है। कुछ एक जगह इसकी रफ्तार ज़रूर धीमी हुई है। कुछ एक सीन गैर-ज़रूरी भी लगे। मसलन राजकुमारी कौल के परिवार से उनकी निकटता पर फिल्म खुल कर कुछ नहीं समझा पाती। बावजूद इसके यह फिल्म कहीं भटकी भी नहीं है और सीधे-सीधे भारत के इस लोकप्रिय कवि हृदय राजनेता की कहानी को प्रभावी ढंग से दिखा जाती है। अंत में अचानक फिल्म का खत्म हो जाना थोड़ा अखरता है। रवि जाधव अपने सधे हुए निर्देशन से एक विशालकाय काम को आसानी से पूरा करते दिखाई दिए हैं।
पंकज त्रिपाठी ने अटल जी के किरदार को आत्मसात करने में जो मेहनत की होगी, वह उन्हें पर्दे पर देख कर समझ आती है। कुछ एक जगह ‘ओवर’ होने के बावजूद वह पंकज नहीं, अटल ही लगे हैं। पीयूष मिश्रा समेत बाकी के कलाकारों ने भी भरपूर सहयोग दिया है। प्रोडक्शन टीम से कुछ चूक हुईं लेकिन वे आसानी से पकड़ में नहीं आ पातीं। कैमरा, लोकेशन आदि असरदार रहे। गीत-संगीत फिल्म के अनुकूल रहा।
कई लोगों को यह फिल्म आगामी चुनावों का बिगुल लग सकती है। मुमकिन है इसे बनाने और इस समय रिलीज़ करने के पीछे यह मंशा हो भी। लेकिन एक आम भारतीय, एक आम दर्शक को यह फिल्म एक सम्मानित राजनेता की जीवनी को सही परिप्रेक्ष्य में दिखा पाने में कामयाब रही है, इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता।
(रेटिंग की ज़रूरत ही क्या है? रिव्यू पढ़िए और फैसला कीजिए कि यह कितनी अच्छी या खराब है। और हां, इस रिव्यू पर अपने विचार ज़रूर बताएं।)
Release Date-19 January, 2024 in theaters
(दीपक दुआ फिल्म समीक्षक व पत्रकार हैं। 1993 से फिल्म-पत्रकारिता में सक्रिय। मिज़ाज से घुमक्कड़। ‘सिनेयात्रा डॉट कॉम’ (www.cineyatra.com) के अलावा विभिन्न समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, न्यूज पोर्टल आदि के लिए नियमित लिखने वाले दीपक ‘फिल्म क्रिटिक्स गिल्ड’ के सदस्य हैं और रेडियो व टी.वी. से भी जुड़े हुए हैं।)
Nice review, thanks for sharing Deepak ji 🙏🤝😊