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Home फिल्म/वेब रिव्यू

ओल्ड रिव्यू-कम मसालों वाला ‘चिकन खुराना’

Deepak Dua by Deepak Dua
2012/11/02
in फिल्म/वेब रिव्यू
0
ओल्ड रिव्यू-कम मसालों वाला ‘चिकन खुराना’
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-दीपक दुआ… (This review is featured in IMDb Critics Reviews)

दस साल पहले अपने दादाजी (विनोद नागपाल) के पैसे चुरा कर लंदन भाग गया ओमी खुराना (कुणाल कपूर) वहां कुछ भी नहीं बन पाया और अब उस पर एक गैंग्स्टर का कर्ज़ा भी चढ़ा हुआ है। उसकी आखिरी उम्मीद है दादाजी का वह मशहूर ढाबा जिसका ‘चिकन खुराना’ पूरे पंजाब में मशहूर है। लेकिन पंजाब में अपने गांव लौट कर वह पाता है कि ढाबा बंद हो चुका है और बूढ़े-बीमार दादाजी ‘चिकन खुराना’ बनाने की रेसिपी भूल चुके हैं। साथ ही कभी उसकी प्रेमिका रही हरमन (हुमा कुरैशी) की शादी उसी के भाई से हो रही है और कोई भी खुश नही है। ओमी एक तरफ रेसिपी तलाशने की कोशिश करता है और दूसरी ओर हरमन से अपने रिश्ते सुधारने की। ज़ाहिर है हर हिन्दी फिल्म की तरह अंत में सब ठीक हो ही जाता है।

इसमें कोई शक नहीं कि ‘लव शव ते चिकन खुराना’ की कहानी आम मसाला फिल्मों से हट के है। अपने दादाजी के मशहूर चिकन की रेसिपी तलाशते-तलाशते नायक असल में अपने टूटे हुए रिश्तों के धागे तलाश रहा है और साथ ही अपने भीतर के खोखलेपन से भी वह रूबरू हो रहा है। दिक्कत है इसकी स्क्रिप्ट के साथ, जो इंटरवल तक बहुत ही रूखी है और इसकी रफ्तार भी काफी धीमी है। जब आप पंजाबी बैकग्राउंड पर एक रोमांटिक कॉमेडी फिल्म की बात करते हैं तो उसमें थोड़ी लाउडनैस, कुछ चटपटे मसाले और तीखापन ज़रूरी हो जाता है। पर इस फिल्म में ऐसा नहीं है। औरों से हटके और साफ-सुथरा बनाने के चक्कर में इसे रूखा-सूखा बना दिया गया जबकि इसका फ्लेवर बरकरार रखते हुए भी इसे और ज़ायकेदार बनाया जा सकता था।

नए निर्देशक समीर शर्मा की तारीफ इसलिए करनी होगी कि उन्होंने एक अलग और ज़मीन से जुड़ी कहानी उठाई और उसमें वास्तविक लगने वाले किरदारों को पिरो कर पंजाब का माहौल बरकरार रखते हुए एक ऐसी फिल्म बनाई जो आपको फिल्मी पंजाब से परे यथार्थ की सैर कराती है। लेकिन फिल्म में मसाले और मनोरंजन की मात्रा काफी कम है जिस वजह से इसकी अच्छाइयां भी अखरने लगती हैं।

अमित त्रिवेदी के संगीत और शैली के गीतों में वह पैनापन नहीं आ पाया है जिससे कोई गाना सिर चढ़ कर बोल सके। पंजाब की मस्ती, थिरकन, लोक-संगीत को आधार बना कर गीत बनते तो ज़्यादा सही रहता।

ओमी के रोल में कुणाल कपूर एकदम फिट रहे हैं। अपने किरदार को एकदम सही पकड़ा है उन्होंने। हुमा न सिर्फ बहुत काबिल हैं बल्कि बहुत खूबसूरत भी लगी हैं। ‘गैंग्स ऑफ वासेपुर’  के बाद वह एक बार फिर से खुद को साबित करती नज़र आती हैं। लंबे अर्से बाद दिखे विनोद नागपाल खासे प्रभावित करते हैं। विपिन शर्मा, मुनीष मखीजा, मुकेश छाबड़ा, राहुल बग्गा, राजेंद्र सेठी, सीमा कौशल, डॉली आहलूवालिया, अनंगशा विश्वास, हैरी टांगरी जैसे बाकी कलाकार भी उम्दा रहे लेकिन टीटू मामा के रोल में राजेश शर्मा का काम लाजवाब कहा जा सकता है।

कुल मिला कर यह एक ऐसी फिल्म है जो आपको टाइमपास मनोरंजन तो देती है लेकिन मनोरंजन की भूख को पूरी तरह से शांत नहीं कर पाती। बिल्कुल उस कम मसाले वाली डिश की तरह जिसे खाकर आपका पेट तो भरता है मगर आपके मन को तसल्ली नहीं मिलती।

अपनी रेटिंग-2.5 स्टार

(नोट-मेरा यह रिव्यू इस फिल्म की रिलीज़ के समय किसी अन्य पोर्टल पर प्रकाशित हुआ था। साथ ही मैंने दूरदर्शन के डी.डी.न्यूज़ चैनल पर भी इसका रिव्यू किया था जिसे इस लिंक पर क्लिक करके देखा जा सकता है।)

Release Date-2 November, 2012

(दीपक दुआ फिल्म समीक्षक व पत्रकार हैं। 1993 से फिल्म–पत्रकारिता में सक्रिय। मिज़ाज से घुमक्कड़। ‘सिनेयात्रा डॉट कॉम’ (www.cineyatra.com) के अलावा विभिन्न समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, न्यूज पोर्टल आदि के लिए नियमित लिखने वाले दीपक ‘फिल्म क्रिटिक्स गिल्ड’ के सदस्य हैं और रेडियो व टी.वी. से भी जुड़े हुए हैं।)

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