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Home फिल्म/वेब रिव्यू

ओल्ड रिव्यू-‘कब’ तक है जान…?

Deepak Dua by Deepak Dua
2012/11/13
in फिल्म/वेब रिव्यू
0
ओल्ड रिव्यू-‘कब’ तक है जान…?
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-दीपक दुआ… (This review is featured in IMDb Critics Reviews)

यश चोपड़ा के निर्देशन में शाहरुख खान वाली प्रमुख भूमिका वाली कोई रोमांटिक फिल्म आ रही हो तो उससे आप क्या उम्मीद रखेंगे? दिमाग पर ज्यादा ज़ोर डाले बिना आप कह सकते हैं कि उसमें एक मीठी-मीठी रोमांटिक कहानी होगी, प्यार-मोहब्बत की कुछ गहरी-दार्शनिक बातें होंगी, अंत में एक ज़बर्दस्त ट्विस्ट होगा, कुछ बहुत खूबसूरत देशी-विदेशी लोकेशंस होंगी, प्यार-मीठा गीत-संगीत होगा और होगा यश चोपड़ा का अपना सिग्नेचर स्टाइल। तो दोस्तों, इस फिल्म ‘जब तक है जान’ में यह सब कुछ है, भले ही कम मात्रा में और भले ही कम असरदार।

लंदन में छुटपुट नौकरियां करने वाले समर आनंद (शाहरुख खान) को अमीरजादी मीरा (कैटरीना कैफ) से प्यार हो जाता है। पर इससे पहले कि ये दोनों मिलें, एक हादसा इन्हें अलग कर देता है। हिन्दुस्तान लौट कर समर आर्मी में मेजर हो जाता है। उसकी बहादुरी पर डिस्कवरी चैनल की तरफ से फिल्म बनाने आई अकीरा (अनुष्का शर्मा) उस पर मर मिटती है। पर तभी एक और हादसा मीरा को वापस उनकी जिंदगी में ले आता है। कुछ ट्विस्ट और आते हैं और फिर हो जाती है हैप्पी एंडिंग।

फिल्म की कहानी में कमी नहीं है। लेकिन इसकी स्क्रिप्ट कमज़ोर है। कई जगह चीज़ें तर्कों का साथ छोड़ती नज़र आती हैं। फिल्म कभी एकदम से बहुत फिल्मी हो जाती हैं तो कई जगह दर्शकों के धैर्य की परीक्षा लेती हुई लगती हैं। तीन घंटे लंबी इस फिल्म में ऐसे कई मौके आते हैं जब यह आपको अझेल लगने लगती है। कम से कम बीस मिनट की और एडिटिंग मांगती है यह।

लेकिन इस फिल्म को आप एकदम से नकार भी नहीं सकते। यह आपको प्यार की गहराइयों में गोते खिलवाती है। इश्क की गरमाइयों से रूबरू करवाती है ओर मोहब्बत की उस छुअन का अहसास भी कराती है जो यश चोपड़ा की फिल्मों की खासियत रही है और जिसे महसूस करके मन गीला हो उठता है। संवादों का अच्छा और प्रभावी इस्तेमाल किया गया है इसमें।

शाहरुख, कैटरीना और अनुष्का ने अपने-अपने किरदारों को बखूबी निभाया है। इस किस्म के रोल के लिए शाहरुख से ज़्यादा प्रभावी कलाकार कोई और हो ही नहीं सकता। कैटरीना जंची हैं तो अनुष्का का चुलबुलापन भाता है। लेकिन तमाम कोशिशों के बावजूद कैटरीना यश जी की ‘वीर ज़ारा’ की प्रीति जिंटा और ‘दिल तो पागल है’ की माधुरी दीक्षित नहीं हो पातीं। वहीं अनुष्का स्विम-सूट से लेकर सैक्स तक की बातें करने और अपनी शारीरिक संपदा दर्शाने के बावजूद न तो खूबसूरत लगी हैं और न ही सैक्सी। छोटे-छोटे किरदारों में आए ऋषि कपूर, नीतू सिंह, अनुपम खेर, सारिका और यहां तक कि शाहरुख के पाकिस्तानी दोस्त बने शारिब हाशमी तक के किरदार और अभिनय असर छोड़ते हैं।

गीत-संगीत यश चोपड़ा की फिल्मों की जान होता है। इस बार इस काम के लिए उन्होंने गुलज़ार और ए.आर. रहमान से पहली बार नाता जोड़ा और जो चीज़ निकल कर आई है वह बहुत ज़्यादा गहरी न होते हुए भी फिल्म के मिज़ाज में घुली-मिली नज़र आती है।

बतौर निर्देशक यह फिल्म यश चोपड़ा की आखिरी कृति ज़रूर है लेकिन यह उनकी बेहतरीन कृति नहीं है। उनकी फिल्मों को पसंद करने वालों और रोमांटिक-ड्रामा में डूब जाने वालों को यह फिल्म ज़रूर भाएगी। चुंबनों और अंतरंग दृश्यों से बचा जाता तो यह अपनी बात और असरदार ढंग से कह सकती थी।

अपनी रेटिंग-3.5 स्टार

Release Date-13 November, 2012

(नोट-इस फिल्म की रिलीज़ के समय यह रिव्यू किसी अन्य पोर्टल पर प्रकाशित हुआ था।)

(दीपक दुआ फिल्म समीक्षक व पत्रकार हैं। 1993 से फिल्म-पत्रकारिता में सक्रिय। मिज़ाज से घुमक्कड़। ‘सिनेयात्रा डॉट कॉम’ (www.cineyatra.com) के अलावा विभिन्न समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, न्यूज पोर्टल आदि के लिए नियमित लिखने वाले दीपक ‘फिल्म क्रिटिक्स गिल्ड’ के सदस्य हैं और रेडियो व टी.वी. से भी जुड़े हुए हैं।)

Tags: A.R. Rehmanaditya chopraanupam kheranushka sharmagulzarjab tak hai jaan reviewKatrina Kaifneetu singhrishi kapoorsarikaShahrukh Khansharib hashmiyash choprayashrajyashraj films
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