-दीपक दुआ… (This review is featured in IMDb Critics Reviews)
भाई जान अपने तीन भाइयों के साथ दिल्ली की जिस बस्ती में रहता है उसे लोकल एम.एल.ए. खाली करवा कर बेचना चाहता है। लेकिन भाई जान के आगे उसकी एक नहीं चलती। भाइयों के चक्कर में भाई जान शादी नहीं कर रहा और इस चक्कर में भाइयों की भी शादी नहीं हो रही। तभी हैदराबाद से एक लड़की आती है और भाई जान को भा जाती है। इन पर हमले हो रहे हैं लेकिन भाई जान हर हमले का मुंहतोड़ जवाब दे रहा है। ये लोग हैदराबाद जाते हैं तो वहां भी हमले होते हैं। लेकिन भाई जान के आगे भला किस की चली है?
साफ है कि इस नायक-प्रधान कहानी में खूब सारा एक्शन होगा। है भी। होना भी चाहिए। भई, सलमान खान की फिल्म से आप और उम्मीद भी क्या रखते हैं? देखिए कहानी अच्छी हो, बुरी हो, हो या न भी हो, भाई जान को घं…, धेला फर्क नहीं पड़ता। रही स्क्रिप्ट की बात, तो अपनी फिल्म में भाई जान जो कर दें, वही स्क्रिप्ट और जो बोल दे, वही संवाद होते हैं। तो जब लिखने-बनाने वालों को दर्द नहीं हुआ, उस पर करोड़ों खर्चने वाले भाई जान को तकलीफ नहीं हुई, तो हमारे-आप के पेट में मरोड़ क्यों उठ रहे हैं? कहिए-फिल्म में है दम, वंदे मातरम्…!
2014 में आई जिस तमिल फिल्म ‘वीरम’ का यह रीमेक है, वह अच्छी-खासी हिट हुई थी। यानी साफ है कि उस फिल्म (या उसकी कहानी) में कुछ तो दम रहा ही होगा जो भाई जान (और उनके चेले-चपाटों) ने उस फिल्म को हिन्दी में बनाने के राइट्स खरीदे होंगे। लेकिन इन लोगों ने यह बात क्यों नोटिस नहीं की कि जब 2017 में ‘वीरम’ का तेलुगू में रीमेक बना था तो वह फिल्म बमुश्किल अपनी लागत निकाल पाई थी और 2019 में कन्नड़ में बने उसके रीमेक का बॉक्स-ऑफिस पर बुरा हाल हुआ था। साफ है कि हर कहानी हर माहौल के लिए मुफीद नहीं होती। बावजूद इसके इन लोगों की मंडली ने इसे हिन्दी में ढालने और ‘किसी का भाई किसी की जान’ के नाम से बनाने का बीड़ा उठाया तो कम से कम कुछ होमवर्क तो कर लेते। कहानी को दिल्ली में फिट करते समय दिल्ली के माहौल को पढ़ लेते, यहां के लोगों की विशेषताओं को जान कर अपने किरदारों को गढ़ लेते। दर्शकों को भाई जान का नाम भले न बताते, उसका काम-धंधा तो बता देते। यह तो कम से कम बता ही देते कि बचपन से दिल्ली में साथ-साथ रहे रहे चारों भाई अलग-अलग लहज़े में कैसे बोल लेते हैं? चलिए, होमवर्क न सही, क्लासवर्क ही कर लेते। मुंबई में सैट बनाने की बजाय दिल्ली में शूटिंग ही कर लेते। दिल्ली में पकौड़े को कोई भजिया नहीं बोलता, यहां के नेता सरकारी ज़मीन पर बस्तियां बसवा तो सकते हैं, हटवाने की कुव्वत इनमें नहीं है, पूरी फिल्म में इतनी सारी लाशें गिरीं और पुलिस का परिंदा तक पर मारने नहीं आया, इसे तो हज़म करवा लेते। चलिए छोड़िए, जब फिल्म इंडस्ट्री के प्रख्यात स्क्रिप्ट-राईटर के बेटे ने फिल्म पर करोड़ों लगाते समय ऐसी टुच्ची बातों पर गौर नहीं किया तो हम-आप अब गौर करके भला क्या लूट लेंगे?
लगता है डायरेक्टर फरहाद सामजी के पास कई बड़े फिल्मी सितारों और निर्माताओं के आपत्तिजनक वीडियो हैं वरना लगातार कचरा परोसने वाले को कोई कैसे यहां बार-बार कचरा परोसने का परमिट दे सकता है? एक तरह से यह अच्छा ही है। घड़ा भरेगा तभी तो फटेगा। गौर कीजिएगा कि लंका की बर्बादी हनुमान या राम की वजह से नहीं खुद रावण के कारण हुई थी। तो ज़रूरी है कि ऐसे लोग बार-बार ऐसी फिल्में बनाएं ताकि प्रलय आए और उसके बाद जो बचे, जो बने वह विशुद्ध हो, पवित्र हो, निर्मल हो।
सलमान खान की एक्टिंग के बारे में कुछ कहना बेमायने होगा। अपने भाइयों और उनकी गर्ल-सखियों के किरदारों में उन्होंने जैसे टेढ़े-बांके लोग लिए हैं उनके लिए कुछ न ही कहा जाए तो बेहतर होगा। पूजा हेगड़े फिर भी प्यारी लगी हैं भले ही सलमान के सामने वह बच्ची लगती हों। विलेन हमारा कभी हिन्दी तो कभी हरियाणवी बोलने लगता है। अब कहने को तो इस फिल्म में कुछ गुणी कलाकार भी है लेकिन जब पूरी बाल्टी में भांग घुली हो तो उसमें दो-एक बादाम डालने से कुछ नहीं होता।
तो लब्बोलुआब यह कि हे ‘बॉलीवुड’ नामक ग्रह के एलियनों, दक्षिण के कचरे के पीछे भागने की बजाय अपने यहां की कहानियों पर काम करो। भले ही कचरा उपजे, कम से कम वह ओरिजनल तो होगा। फिलहाल तो इस वाले कचरे से खाद भी न बन सकेगी भाई जान!
(रेटिंग की ज़रूरत ही क्या है? रिव्यू पढ़िए और फैसला कीजिए कि यह कितनी अच्छी या खराब है। और हां, इस पोस्ट के नीचे कमेंट कर के इस रिव्यू पर अपने विचार ज़रूर बताएं।)
Release Date-21 April, 2023 in theaters
(दीपक दुआ फिल्म समीक्षक व पत्रकार हैं। 1993 से फिल्म–पत्रकारिता में सक्रिय। मिज़ाज से घुमक्कड़। ‘सिनेयात्रा डॉट कॉम’ (www.cineyatra.com) के अलावा विभिन्न समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, न्यूज पोर्टल आदि के लिए नियमित लिखने वाले दीपक ‘फिल्म क्रिटिक्स गिल्ड’ के सदस्य हैं और रेडियो व टी.वी. से भी जुड़े हुए हैं।)
वाह भाई जान वाह 😅
शुक्रिया…
No doubt रिव्यू हमेशा की तरह चटाखेदार, मजेदार और ताबड़तोड़ है।
और यकीन मानिए पढ़ने में इतना मजा आया ना की बहुतयी कम लगा। थोड़ा और ज्यादा लम्बा होना चाहिए था, थोड़ी और बखिया उधेड़ी जानी चाहिए थी।
धन्यवाद…
सोलह आने सच! एकदम सटीक समीक्षा, उस पर आपकी व्यंगात्मक शैली में मजा आता है! ये जरूरी नहीं की हर रीमेक हिट ही हो, अब वो दौर नही रहा जब सिर्फ सलमान ओर शाहरूख़ खान के नाम पर फिल्म चलती हो आज अमिताभ बच्चन को भी टिके रहने के लिए एक अदद कहानी की जरूरत होती है! वैसे भी सलमान खान की फिल्मों से सिवाय सस्ते मनोरंजन के कुछ और उम्मीद नहीं की जा सकती! कहानी, संवाद,नाच, गाना सब वही घिसा पिटा और पुराना सिवाय पूजा हेगड़े के, कुल मिलाकर किसी का भाई किसी की जान इक दम बेजान
धन्यवाद