• Home
  • Film Review
  • Book Review
  • Yatra
  • Yaden
  • Vividh
  • About Us
CineYatra
Advertisement
  • होम
  • फिल्म/वेब रिव्यू
  • बुक-रिव्यू
  • यात्रा
  • यादें
  • विविध
  • हमारे बारे में
No Result
View All Result
  • होम
  • फिल्म/वेब रिव्यू
  • बुक-रिव्यू
  • यात्रा
  • यादें
  • विविध
  • हमारे बारे में
No Result
View All Result
CineYatra
No Result
View All Result
ADVERTISEMENT
Home फिल्म/वेब रिव्यू

रिव्यू-बड़ी ही ‘दबंग’ फिल्म है ‘के.जी.एफ.-चैप्टर 2’

Deepak Dua by Deepak Dua
2022/04/14
in फिल्म/वेब रिव्यू
8
रिव्यू-बड़ी ही ‘दबंग’ फिल्म है ‘के.जी.एफ.-चैप्टर 2’
Share on FacebookShare on TwitterShare on Whatsapp

-दीपक दुआ… (This review is featured in IMDb Critics Reviews)

ज़रूरी सूचना-यदि आपने ‘के.जी.एफ.-चैप्टर 1’ नहीं देखी तो यह रिव्यू और यह फिल्म आपके किसी काम की नहीं। जाइए, पहले उसे देखिए क्योंकि उसके बिना यह समझ नहीं आएगी। और यदि आपने वह फिल्म देखी है तो भी यह रिव्यू आपके किसी काम का नहीं क्योंकि चाहे कुछ हो जाए, आप इस दूसरे भाग को देखे बिना तो मानेंगे नहीं। पर यदि आपकी दिलचस्पी सचमुच यह जानने में है कि यह फिल्म कैसी बनी है, पिछली फिल्म के मुकाबले कहां ठहरती है वगैरह-वगैरह, तो ही आगे बढ़ें। बेकार में चमकती स्क्रीन पर साढ़े सात सौ शब्द पढ़ कर आंखों पर ज़ोर क्यों डालना।

तो हुआ यह था कि पिछले भाग में ‘बड़ा आदमी’ बनने के चक्कर में अपना हीरो रॉकी जा पहुंचा था कोलार गोल्ड फील्ड्स यानी के.जी.एफ. में जहां उसने गरुड़ा को मार डाला था। वह था तो किराए का गुंडा लेकिन यह फिल्म दिखाती है कि गरुड़ा को मार कर वह खुद वहां का सुलतान बन बैठा। ज़ाहिर है कि उसे भेजने वाले अब उसकी जान के दुश्मन हो चुके हैं। उधर गरुड़ा का चाचा अधीरा, सी.बी.आई, सरकार वगैरह-वगैरह भी उसके पीछे हैं। तो कैसे वह इन सबका सामना करता है, इनसे निबटता है और अंत में उसका क्या होता है, यह फिल्म आपको सब दिखाती है, बड़ी ही ‘दबंगई’ के साथ।

पिछले भाग में रॉकी के बचपन, उसकी मां के असमय मरने के बाद उसके बंबई आने, पहले पिटने और फिर दूसरों को पीट कर ‘रॉकी’ बनने, गैंग्स्टरों के लिए काम करने और उनके कहने पर बंधुआ मजदूर बन कर के.जी.एफ. में जाने, वहां पर तिकड़म व साहस से गरुड़ा को मारने की एक सिलसिलेवार कहानी थी जिसमें एक सहज प्रवाह था और साथ ही आगे होने वाली घटनाओं के प्रति उत्सुकता जगा पाने का दम भी। ज़बर्दस्त एक्शन के साथ-साथ उसमें मां के प्रति रॉकी की भावनाएं, हीरोइन रीना के प्रति उसके प्यार के अलावा कॉमेडी का टच भी था। लेकिन यह फिल्म एक्शन को छोड़ कर बाकी सारे मोर्चों पर उससे पीछे रही है। पर हमें तो देखना ही एक्शन है, हम बाकी चीज़ों की परवाह करें भी क्यों?

इस फिल्म को हमें रॉकी और अधीरा की टक्कर के लिए देखना था। अधीरा के किरदार में संजय दत्त और उनका लुक इस आकर्षण को बढ़ाते ही हैं। लेकिन बड़ा अजीब लगता है कि अकेले अधीरा के हर आदमी को मारते-मारते ठीक उसके सामने पहुंच कर रॉकी फुस्स हो जाता है। गौर करें तो स्क्रिप्ट की यह ‘फुस्सा-फुस्सी’ फिल्म में कई जगह दिखती है। लेखक-डायरेक्टर प्रशांत नील ने जब चाहा, गोलियों की बौछारों के बीच किसी को ज़िंदा छुड़वा दिया और जब चाहा, एक ठांए से उसे चुप करवा दिया। जब चाहा, रॉकी को कहीं भी पहुंचा दिया और जब चाहा, उससे कुछ भी करवा लिया। लेकिन इन सारी तार्किक बातों पर ही ध्यान देना हो तो कोई भला ‘के.जी.एफ.’ देखे ही क्यों?

पिछली फिल्म में लग रहा था कि हर ‘नायक’ की तरह रॉकी भी ऊपर से कठोर, अंदर से नरम है। लेकिन इस फिल्म का उसका किरदार उसे भी उतना ही लालची, कमीना, मतलबी, निर्दयी दिखाता है जितने इस फिल्म के बाकी खलनायक हैं। आमतौर पर इस किस्म की फिल्मों का नायक अपराधी होने के बावजूद शोषित होता है और उसकी लड़ाई अत्याचारियों के साथ होती है। लेकिन गौर कीजिए कि पहले पुष्पा और अब रॉकी, दोनों ही का कहीं शोषण नही हुआ और वे अपनी मर्ज़ी से अपराध की दुनिया पर राज करने के लिए इसमें घुसे जा रहे हैं। ऐसे ‘दबंगों’ पर आप अपनी मोहब्बत लुटाना चाहें तो भला कौन है जो आपको रोके?

पिछली फिल्म में रॉकी को अपना आशिक और उसकी वापसी का इंतज़ार करूंगी, कहने वाली नायिका रीना इस बार पहले ही सीन से बेवजह मुंह फुलाए खड़ी है। उसे देख कर दर्शकों को न तो कोई सनसनी होती है, न गुदगुदी। रॉकी के लिए भी वह सिर्फ ‘एंटरटेनमैंट’ है या फिर ‘कंपनी’। श्रीनिधि शैट्टी को इतने कमज़ोर और बेमतलब के किरदार में देख कर लगता है कि इतनी बुरी गत तो हिन्दी वाले भी अपनी हीरोइनों की नहीं करते-न डायलॉग, न ग्लैमर, ऊपर से मुंह सूजा हुआ। लेकिन इस फिल्म में हमें हीरोइन को देखना ही क्यों है?

फिल्म बेहद भव्य है, इसमें ज़बर्दस्त एक्शन है, बहुत तेज़ रफ्तार है, कमाल के सैट हैं, गजब के स्पेशल इफैक्ट्स हैं, कानों को फाड़ने वाला बैकग्राउंड म्यूज़िक है, रॉकी के किरदार में यश की धाकड़ मौजूदगी है, तालियां पिटवाने वाले संवाद हैं, कहानी में कई सारे झटके हैं, दुबई और दिल्ली है, एकदम अंत में इंटरनेशनल होने वाले अगले भाग का इशारा है तो भला और क्या चाहिए अपने को? इसीलिए तो हमें यह फिल्म देखनी है। तो बस, देख डालिए कन्नड़ से डब होकर आई यह फिल्म थिएटरों में।

(रेटिंग की ज़रूरत ही क्या है? रिव्यू पढ़िए और फैसला कीजिए कि फिल्म कितनी अच्छी या खराब है। और हां, इस रिव्यू पर अपने विचार ज़रूर बताएं।)

Release Date-14 April, 2022

(दीपक दुआ फिल्म समीक्षक व पत्रकार हैं। 1993 से फिल्म-पत्रकारिता में सक्रिय। मिज़ाज से घुमक्कड़। ‘सिनेयात्रा डॉट कॉम’ (www.cineyatra.com) के अलावा विभिन्न समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, न्यूज पोर्टल आदि के लिए नियमित लिखने वाले दीपक ‘फिल्म क्रिटिक्स गिल्ड’ के सदस्य हैं और रेडियो व टी.वी. से भी जुड़े हुए हैं।)

Tags: anant nagkgfkgf 2 reviewkgf chapter 2 reviewkgf reviewkgf2 reviewmalavika avinashprakash rajprashanth neelraveena tandonsanjay duttsrinidhi shettyyash
ADVERTISEMENT
Previous Post

वेब रिव्यू-क्राइम, इन्वेस्टिगेशन और तंत्र-मंत्र के बीच भटकती ‘अभय’

Next Post

रिव्यू-अच्छे से बनी-बुनी है ‘जर्सी’

Related Posts

रिव्यू-‘चोर निकल के भागा’ नहीं, चल कर गया
CineYatra

रिव्यू-‘चोर निकल के भागा’ नहीं, चल कर गया

रिव्यू-कहानी ‘कंजूस’ मनोरंजन ‘मक्खीचूस’
CineYatra

रिव्यू-कहानी ‘कंजूस’ मनोरंजन ‘मक्खीचूस’

वेब-रिव्यू : फिर ऊंची उड़ान भरते ‘रॉकेट बॉयज़ 2’
CineYatra

वेब-रिव्यू : फिर ऊंची उड़ान भरते ‘रॉकेट बॉयज़ 2’

वेब-रिव्यू : किस का पाप है ‘पॉप कौन’…?
CineYatra

वेब-रिव्यू : किस का पाप है ‘पॉप कौन’…?

रिव्यू-दमदार नहीं है ‘मिसेज़ चटर्जी वर्सेस नॉर्वे’ का केस
फिल्म/वेब रिव्यू

रिव्यू-दमदार नहीं है ‘मिसेज़ चटर्जी वर्सेस नॉर्वे’ का केस

रिव्यू-रंगीन चश्मा लगा कर देखिए ‘तू झूठी मैं मक्कार’
फिल्म/वेब रिव्यू

रिव्यू-रंगीन चश्मा लगा कर देखिए ‘तू झूठी मैं मक्कार’

Next Post
रिव्यू-अच्छे से बनी-बुनी है ‘जर्सी’

रिव्यू-अच्छे से बनी-बुनी है ‘जर्सी’

Comments 8

  1. Dr. Renu Goel says:
    12 months ago

    Maine 1st part nhi dekha
    Ab dono dekhti hu

    Reply
    • CineYatra says:
      12 months ago

      good…

      Reply
  2. सूरज शुक्ला says:
    12 months ago

    सर मुरीद बना लेते हैं आप अपनी समीक्षा से,हर बार एक नए टैग के साथ और दिलचस्प तरीके से, नही देखी तो भी किसी काम का नही, देख ली तो भी किसी काम का नहीं👏👏👏👏

    Reply
    • CineYatra says:
      12 months ago

      आभार…

      Reply
  3. Sunita Tewari says:
    11 months ago

    Deepak ji, KGF – 2 ka review padna shuru kiya toh lga aapka kehna hai ki pehle KGF-1 dekhna jaroori hai… Chalo aapne kha hai toh dono parts hi dekhne honge…. Aap humein galat rai thode na dengey…. Samiksha pad ker toh dekhne ka hi mood hai….

    Reply
  4. Riyajsekh says:
    11 months ago

    Kgf 2 favourite movie

    Reply
  5. B. S. BHARDWAJ says:
    11 months ago

    Bahut badhia review diya hai aapne hamesha ki tarah.

    Reply
    • CineYatra says:
      11 months ago

      धन्यवाद…

      Reply

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

  • होम
  • फिल्म/वेब रिव्यू
  • बुक-रिव्यू
  • यात्रा
  • यादें
  • विविध
  • हमारे बारे में
संपर्क – [email protected]

© 2021 CineYatra - Design & Developed By Beat of Life Entertainment.

No Result
View All Result
  • होम
  • फिल्म/वेब रिव्यू
  • बुक-रिव्यू
  • यात्रा
  • यादें
  • विविध
  • हमारे बारे में

© 2021 CineYatra - Design & Developed By Beat of Life Entertainment.