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Home फिल्म/वेब रिव्यू

रिव्यू-अच्छे से बनी-बुनी है ‘जर्सी’

Deepak Dua by Deepak Dua
2022/04/22
in फिल्म/वेब रिव्यू
8
रिव्यू-अच्छे से बनी-बुनी है ‘जर्सी’
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-दीपक दुआ… (This Review is featured in IMDb Critics Reviews)

नेशनल टीम में सलैक्शन नहीं हुआ तो 26-27 की उम्र में क्रिकेट छोड़ कर अर्जुन गृहस्थी-नौकरी में व्यस्त हो गया। आज वह 36 का है और दो साल से सस्पैंड चल रहा है। क्रिकेट सीख रहे बेटे को इंडियन टीम की जर्सी चाहिए लेकिन अर्जुन के पास पैसे नहीं हैं। अचानक वह फिर से खेलने की ठान लेता है। लेकिन इतने साल बाद और इस उम्र में वापसी आसान भी तो नहीं। फिर परिवार और दुनिया का प्रैशर अलग से। वह हीरो है तो जीतेगा ही, लेकिन कैसे और किन हालात में, यह देखना दिलचस्प ही नहीं, प्रेरणादायक भी है।

एक बार मैदान छोड़ कर बाहर जा बैठे लोगों के लौटने और जीतने की कहानियां सिनेमाई पर्दे पर लंबे समय से आ रही हैं। कायदे से बुनी-बनी हों तो ऐसी फिल्में दर्शकों द्वारा खूब सराही भी जाती हैं। यह फिल्म भी बेहद सलीके से तैयार की गई है और इसीलिए यह आपकी सराहनाओं की हकदार हो जाती है।

2019 में इसी नाम से तेलुगू में आकर कामयाबी और ढेरों पुरस्कार पाने वाली इस फिल्म के लेखक-निर्देशक गौतम तिन्ननुरी ने ही इसे हिन्दी में भी निर्देशित किया है। गौतम की लिखी कहानी तो दमदार है ही, साथ ही उसमें जिस तरह से ट्विस्ट आते हैं, वे न सिर्फ दर्शक को हैरान करते हैं, उसे सुहाते भी हैं। दक्षिण का कोई निर्देशक हिन्दी में अपना पहला कदम रखे और वह भी चंडीगढ़ व पंजाबी किरदारों की पृष्ठभूमि में, तो डर लगता है कि कहीं फिसल न जाए। लेकिन गौतम के साथ ऐसा नहीं हुआ है तो उसकी सबसे बड़ी वजह रहे हैं सिद्धार्थ सिंह और गरिमा वहाल जिन्होंने इस फिल्म की स्क्रिप्ट को इस कदर विश्वसनीयता के साथ हिन्दी में ढाला है कि निर्देशक का काम बेहद आसान हो गया होगा।

हिन्दी फिल्म में पंजाबी के संवाद आएं तो वे अक्सर अजीब लगने लगते हैं। लगता है, जैसे उन्हें ज़बर्दस्ती घुसाया जा रहा है या फिर ऊपर से बुरका जा रहा है। लेकिन यहां ऐसा नहीं हुआ है। पर्दे पर किरदारों द्वारा हिन्दी-पंजाबी का ऐसा संतुलित और सधा हुआ इस्तेमाल बहुत कम ही देखने को मिलता है। फिल्म के संवादों को भी बहुत सधेपन के साथ लिखा गया है जिससे वे ‘फिल्मी’ न लग कर अपने आसपास के ही लगते हैं। लेखकों की इस जोड़ी को सलाम। ज़्यादातर कलाकारों में पंजाबी पृष्ठभूमि वाले कलाकारों को लेने की समझदारी दिखाने वाले कास्टिंग डिपार्टमैंट को भी सैल्यूट!

कहने को यह फिल्म क्रिकेट छोड़ चुके एक शख्स के मैदान में लौटने और चमकने की कहानी दिखाती है लेकिन सच यह है कि यह हमें क्रिकेट नहीं बल्कि ज़िंदगी के फलसफे दिखाने का काम करती है। नायक अपनी ज़िद के चलते खुद को बर्बाद कर रहा है, तंगी में घर चला रही पत्नी से उसकी तकरार रहती है, लेकिन अपने बेटे की नज़रों में वह हीरो है और उस छवि को बरकार रखने के लिए वह एक बार फिर ज़िद ठानता है-मैदान में लौटने की। पति-पत्नी के बीच आने वाली खटास को भी आपसी समझदारी और बातचीत से दूर करने की सलाह यह फिल्म बिना कहे कह जाती है।

यह फिल्म अपने कलाकारों के काम के लिए भी देखी जानी चाहिए। शाहिद कपूर ने बेहतरीन अभिनय किया है। ऐसे कई दृश्य हैं जिनमें वह अपनी उम्दा अदाकारी के नमूने दिखाते हैं और साबित करते हैं कि वह पंकज कपूर जैसे सिद्धहस्त अभिनेता के पुत्र हैं। और जब खुद पंकज कपूर पर्दे पर आते हैं तो वह भी बड़ी ही सहजता से बता देते हैं कि वह अभिनय के मामले में बड़े-बड़ों के भी बाप हैं। उनके एक-एक भाव को अभिनय का पाठ समझ कर देखा जा सकता है। मृणाल ठाकुर को अच्छा किरदार मिला और उन्होंने उसका जम कर फायदा भी उठाया। इनके बेटे के किरदार में रोनित कामरा की सहजता प्रशंसनीय है। फिल्म की एक बड़ी खासियत यह भी है कि उम्र बढ़ने पर कलाकारों के मेकअप और लुक में जो परिवर्तन किए गए वे बहुत ही विश्वसनीय और असरदार लगे।

हालांकि इक्का-दुक्का जगहों पर कुछ एक छोटी-मोटी चीज़ें अखरती हैं लेकिन कहानी का प्रवाह उन्हें बहा ले जाता है। फिल्म की लंबाई (174 मिनट) भी बहुत ज़्यादा लगती है। कुछ एक नट-बोल्ट और कसे जाते तो फिल्म और पैनी, और टाइट हो जाती। गीत-संगीत जानदार है। हालांकि गैर-पंजाबियों को शब्द पकड़ने में मुश्किल होगी लेकिन इन गीतों से फिल्म का असर गाढ़ा ही हुआ है। बेहद असरदार लोकेशन और दमदार सिनेमैटोग्राफी इस फिल्म की जान हैं तो एक तारीफ फिल्म के आर्ट व प्रोडक्शन डिपार्टमैंट की उस टीम की भी बनती है जिसने 1996-97 के वक्त में कहानी को फिट करते समय ज़बर्दस्त रिसर्च की। पुराने स्टाइल की नंबर प्लेट हों, पुराने वक्त के करेंसी नोट, कोल्ड ड्रिंक की बोतलें या कुछ और, कहीं भी कोई चूक नहीं। बाकी फिल्मों वाले चाहें तो इनसे कुछ सीख सकते हैं।

यह फिल्म लिखी बहुत अच्छी गई है। इसे बनाया बहुत अच्छे-से गया है। इसकी सधी हुई बुनावट का ही असर है कि अंत में यह आपकी आंखें नम कर देती है। यह फिल्म बताती है कि सिनेमा बिना शोर मचाए भी सिर चढ़ सकता है, दिलों में उतर सकता है। इसे देखिए, सराहिए ताकि अच्छा सिनेमा बनता रहे।

(रेटिंग की ज़रूरत ही क्या है? रिव्यू पढ़िए और फैसला कीजिए कि फिल्म कितनी अच्छी या खराब है। और हां, इस रिव्यू पर अपने विचार ज़रूर बताएं।)

Release Date-22 April, 2022

(दीपक दुआ फिल्म समीक्षक व पत्रकार हैं। 1993 से फिल्म-पत्रकारिता में सक्रिय। मिज़ाज से घुमक्कड़। ‘सिनेयात्रा डॉट कॉम’ (www.cineyatra.com) के अलावा विभिन्न समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, न्यूज पोर्टल आदि के लिए नियमित लिखने वाले दीपक ‘फिल्म क्रिटिक्स गिल्ड’ के सदस्य हैं और रेडियो व टी.वी. से भी जुड़े हुए हैं।)

Tags: anjum batragarima wahalgeetika mehandrugowtam tinnanurijerseyjersey reviewmrunal thakurpankaj kapurronik kamrashahid kapoorsiddharth singh
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Comments 8

  1. Dr. Renu Goel says:
    11 months ago

    Kisi bhi movie ki ranking apne reviews ke adhar pr krni chahiye.
    Har bar ki trh is bar bji lajwab 👏👏👏

    Reply
    • CineYatra says:
      11 months ago

      हर बार की तरह इस बार भी शुक्रिया, आभार…

      Reply
  2. Nirmal kumar says:
    11 months ago

    पा’ जी!!
    बहुत दिनों बाद इतनी तारीफ मिली है आपके द्वारा किसी फिल्म को। मतलब फ़िल्म बेहतरीन है। 👌 और आपकी समीक्षा के तो हम कायल नहीं घायल हैं। 👍

    Reply
    • CineYatra says:
      11 months ago

      लगता है आप आजकल मेरे रिव्यू रेगुलर नहीं पढ़ रहे हैं… पिछले दिनों कई फिल्मों की तारीफ हुई है यहां…

      Reply
  3. पवन शर्मा says:
    11 months ago

    मुझे आज ऐसा लग रहा है कि एक समय शायद ऐसा भी आए कि फ़िल्म समीक्षा के कोर्स की डिग्री लेने वाले टॉपर/उत्कृष्ट छात्रों को कुछ संस्थान “दीपक दुआ” लिखी जर्सी देने की परंपरा भी शुरू कर दें !
    वाह, क्या समीक्षा लिखते हो दीपक जी ! 👍👍😊

    Reply
    • CineYatra says:
      11 months ago

      😀😀😀 स्नेह बनाए रखें🙏🏻

      Reply
  4. PREM PRAKASH DAIYA says:
    11 months ago

    हैदर के बाद से शाहिद का बड़ा वाला फैन हूं मैं, शायद कोई यकीन नही करे मेरा लेकिन हैदर के बाद से शाहिद की कोई फिल्म मिस नही की, पुरानी फिल्में भी ढूंढ ढूंढ कर देखता हूं।

    Reply
    • CineYatra says:
      11 months ago

      वाह…

      Reply

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