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Home फिल्म/वेब रिव्यू

रिव्यू-‘जयेशभाई जोरदार’ बोरदार शोरदार

Deepak Dua by Deepak Dua
2022/05/14
in फिल्म/वेब रिव्यू
6
रिव्यू-‘जयेशभाई जोरदार’ बोरदार शोरदार
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-दीपक दुआ… (This review is featured in IMDb Critics Reviews)

स्कूल से लौटती एक लड़की को गांव के एक लड़के ने गाना गाकर छेड़ा-‘तेरी खुशबू, तेरी सांसें…।’ बात पंचायत तक पहुंची तो सरपंच (बहू) के ससुर ने फैसला सुनाया कि आज से इस गांव की औरतें और लड़कियां साबुन इस्तेमाल नहीं करेंगी। न उनसे खुशबू आएगी, न कोई उन्हें छेड़ेगा।

स्पष्ट है कि यह एक ऐसे गांव की कहानी है जहां मर्दों की हुकूमत चलती है, जहां औरतों को आवाज़ उठाने का अधिकार नहीं है। इसीलिए तो जयेशभाई की पत्नी मुद्रा बेन को एक बेटी देने के बाद छह बार गर्भ गिराना पड़ा क्योंकि परिवार को तो अब लड़का ही चाहिए। मगर इस बार भी उसे लड़की होने वाली है। तो जयेशभाई फैसला करता है कि वह अपने परिवार को लेकर कहीं दूर भाग जाएगा। लेकिन भागना इतना आसान कहां होता है?

जन्म से पहले बच्चे का लिंग पता लगाना भले ही कानूनन अपराध हो लेकिन लड़के की चाहत में यह काम दबे-छुपे कहीं-कहीं आज भी होता है। यह फिल्म इसी काम को गलत ठहराने और जयेश, मुद्रा व उनकी बेटी सिद्धि के अपने ही परिवार वालों से बचने-भागने के संघर्ष को दिखाती है। साथ ही यह फिल्म गुजरात के इस गांव में औरतों की दुर्दशा की बात करती है और लगे हाथ हरियाणा के एक ऐसे गांव की तस्वीर भी दिखाती है जहां कन्या भ्रूण हत्या के चलते अब गांव में सिर्फ मर्द ही मर्द बचे हैं।

कहानी अच्छी है… नहीं, नहीं, रुकिए, कहानी का प्लॉट अच्छा है। लेकिन इस प्लॉट के इर्द-गिर्द जो कहानी बुनी गई है वह बहुत साधारण है। किसी कारण से भागते नायक-नायिका और गाड़ियों में भर-भर कर उनके पीछे भागते उन्हीं के घरवालों की कहानियां हमने कई बार देखीं। ऐसी कहानियों में जो तनाव, जो चुभन होती है, वह यहां लापता है। उस पर से इस साधारण कहानी के चारों तरफ जो पटकथा लपेटी गई है वह निहायत कमज़ोर है। जिस किस्म की भागम-भाग और घटनाएं हो रही हैं, जिस किस्म के संवाद बोले जा रहे हैं, जिस तरह की हरकतें इस फिल्म के किरदार कर रहे हैं, यह स्पष्ट ही नहीं होता कि इसे बनाने वालों को मकसद हमें इमोशनल करना है, हंसाना या फिर हंसी-हंसी में गंभीर संदेश देना? दरअसल फिल्म के लेखक दिव्यांग ठक्कर की कोशिश तो यही रही होगी कि हंसी-हंसी में कुछ सार्थक मैसेज दे जाएं लेकिन उन्होंने जो लिखा और बतौर निर्देशक उसे जिस तरह से पर्दे पर उतारा, उससे हुआ यह कि एक गंभीर, इमोशनल मुद्दा हंसी में उड़ गया। और हंसी भी कैसी, जिसे आप कॉमेडी नहीं कह सकते, जिसे आप एन्जॉय नहीं कर सकते, बस देख सकते हैं और देख कर भूल सकते हैं। यही इस फिल्म की कमज़ोरी है, यही इस फिल्म का हासिल है। अंत में ‘पप्पी लेने-देने’ वाले प्रसंग ने फिल्म की रही-सही खिल्ली भी उड़ा दी।

कई सारे रंग-रंगीले लोगों से भरी यह फिल्म भरी-पूरी भी नहीं है बल्कि ये लोग फिल्म में भीड़ और शोर बढ़ाने का ही काम करते हैं। किसी भी किरदार को यह फिल्म कायदे से उठा नहीं पाती। ऊपर से इन किरदारों में आए कलाकार भी औसत ही रहे। बोमन ईरानी, रत्ना पाठक शाह जैसे लोग भी अगर साधारण लगें तो कसूर किस का माना जाए-उनके किरदारों का ही न, जिन्हें लिखा ही हल्के से गया? मुद्रा बनीं शालिनी पांडेय, जयेश की बहन बनीं दीक्षा जोशी व अन्य सभी टाइम पास करते दिखे। पुनीत इस्सर थोड़े जंचे और रणवीर सिंह की मेहनत भी महसूस हुई लेकिन उनका किरदार कहीं से भी ‘जोरदार’ नहीं है। उलटे पूरी फिल्म में वह दब्बू, भगौड़े, नाकारा ही लगे। सबसे मज़ेदार, असरदार काम तो रहा रणवीर की बेटी बनीं जिया वैद्य का। इतना सहज, सरल, असरदार, चुहलदार अभिनय कि देखते ही जाएं।

गीत-संगीत ठीक-ठाक सा है। बैकग्राउंड म्यूज़िक में शोर ज्यादा है। लोकेशन अच्छी, कैमरा बढ़िया, एडिटिंग कसी हुई लेकिन फिर भी दो घंटे की फिल्म सही नहीं जाती क्योंकि यह फिल्म कुछ ‘कहना’ चाहते हुए भी खुल कर नहीं कह पाती। दरअसल इस किस्म के विषय पर या तो जोरदार हार्ड-हिटिंग ढंग से बात हो या बहुत सारे इमोशंस जगा कर रुलाने वाले तरीके से, और नहीं तो ब्लैक कॉमेडी के ज़रिए ही कुछ कहा जाए। लेकिन यहां तो सब कुछ डाल कर भी कोई असर नहीं आ पाया। जोरदार के चक्कर में एक बोरदार और शोरदार फिल्म बन कर रह गई यह।

(रेटिंग की ज़रूरत ही क्या है? रिव्यू पढ़िए और फैसला कीजिए कि फिल्म कितनी अच्छी या खराब है। और हां, इस रिव्यू पर अपने विचार ज़रूर बताएं।)

Release Date-13 May, 2022

(दीपक दुआ फिल्म समीक्षक व पत्रकार हैं। 1993 से फिल्म-पत्रकारिता में सक्रिय। मिज़ाज से घुमक्कड़। ‘सिनेयात्रा डॉट कॉम’ (www.cineyatra.com) के अलावा विभिन्न समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, न्यूज पोर्टल आदि के लिए नियमित लिखने वाले दीपक ‘फिल्म क्रिटिक्स गिल्ड’ के सदस्य हैं और रेडियो व टी.वी. से भी जुड़े हुए हैं।)

Tags: Boman Iranideeksha joshidivyang thakkarJayeshbhai jordaar reviewjia vaidyapuneet issarranveer singhratna pathak shahshalini pandey
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Comments 6

  1. Shubham singh parihar says:
    3 years ago

    As always deepak paji are my favorite. Exactly words with full details

    Reply
    • CineYatra says:
      3 years ago

      धन्यवाद

      Reply
  2. Nirmal kumar says:
    3 years ago

    पा’ जी। धन्यवाद पैसे बचाने के लिए। 😀😀

    Reply
    • CineYatra says:
      3 years ago

      पिछली बार के वादे अनुसार अब चेक भिजवा दीजिए

      Reply
  3. Dr. Renu Goel says:
    3 years ago

    Really nyc review
    And time saving

    Reply
    • CineYatra says:
      3 years ago

      thanks…

      Reply

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