-दीपक दुआ… (This review is featured in IMDb Critics Reviews)
बिहार के चार छुटभैये किस्म के अपराधियों की कहानी कहती है यह फिल्म। ये चारों एक पुलिस वाले के कहने पर मुंबई जाते हैं एक बड़े ‘काम’ को अंजाम देकर बड़ा पैसा कमाने। लेकिन इन्हें जिस लड़की को मारने को कहा जाता है वह इनमें से एक को भा जाती है और बस, यहीं से इनकी ज़िंदगी बदलने लगती है।
फिल्म अपने कलेवर में काफी कुछ कहना चाहती है। एक सार्थक संदेश देने की कसक इसमें नज़र भी आती है। लेकिन यह अपनी इस कोशिश में सफल नहीं हो पाती क्योंकि इसे लिखने और बनाने में गहराई और ईमानदारी का अभाव नज़र आता है। कहानी और पटकथा कई जगह पर अतार्किक हो जाती है। फिल्म की एकमात्र खासियत इसकी रफ्तार है लेकिन इंटरवल के बाद तो फिल्म जैसे बैठ ही जाती है। लगातार लगता है कि अब कुछ होगा लेकिन होता कुछ नहीं है। फिर अंत में इसे जिसे तरह से समेटा गया है वह भी बहुत बचकाना लगता है।
फिल्म की शुरुआत से अंत तक की कहानी इन चारों में से एक किसी लेखिका को सुना रहा है। अंत में वह इस कहानी को फाड़ कर फेंक देती है तो लगता है कि उसने सही ही किया। जिस तरह से इस फिल्म की स्क्रिप्ट को लिखा गया है उसे भी फाड़ देना चाहिए था। फिल्म में गालियों और अश्लीलता की भरमार है। यथार्थ के नाम पर इसे उचित ठहराया जा रहा है। लेकिन यथार्थ में भी इस कदर अति नहीं होती। फिर रिएलिटी और सिनेमा में कुछ फर्क भी तो होना चाहिए।
रवि किशन, यशपाल शर्मा, मुरली शर्मा और इस फिल्म के निर्देशक मनीष वात्सल्य की एक्टिंग प्रभावी रही। अभिनेत्री हेज़ल क्राउनी को अभी एक्टिंग का पाठ पढ़ना बाकी है। बाकी कलाकारों का काम साधारण रहा। गीत-संगीत भी साधारण है। मनीष का निर्देशन असरदार लगता है लेकिन अधकचरी पटकथा को संभाल नहीं पाता। छोटे सैंटर्स के सिंगल स्क्रीन थिएटरों पर इस फिल्म को भले ही चार पैसे की कमाई हो जाए लेकिन यह ज़्यादा देर तक याद रखी जाने वाली फिल्म नहीं है।
अपनी रेटिंग-2 स्टार
(इस फिल्म की रिलीज़ के समय मेरा यह रिव्यू किसी अन्य पोर्टल पर प्रकाशित हुआ था।)
Release Date-14 September, 2012
(दीपक दुआ फिल्म समीक्षक व पत्रकार हैं। 1993 से फिल्म-पत्रकारिता में सक्रिय। मिज़ाज से घुमक्कड़। ‘सिनेयात्रा डॉट कॉम’ (www.cineyatra.com) के अलावा विभिन्न समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, न्यूज पोर्टल आदि के लिए नियमित लिखने वाले दीपक ‘फिल्म क्रिटिक्स गिल्ड’ के सदस्य हैं और रेडियो व टी.वी. से भी जुड़े हुए हैं।)
भाई जी कैसे बर्दाश्त कर लेते हो ऐसी फिल्में 😊
रोते-झींकते… हा…हा…हा…