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Home फिल्म/वेब रिव्यू

रिव्यू-मजबूरी का नाम ‘इंदु सरकार’

Deepak Dua by Deepak Dua
2017/07/29
in फिल्म/वेब रिव्यू
0
रिव्यू-मजबूरी का नाम ‘इंदु सरकार’
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-दीपक दुआ… (This Review is featured in IMDb Critics Reviews)

दो-चार सौ साल पहले की किसी घटना या व्यक्ति पर फिल्म बने और उसे लेकर लोगों के अलग-अलग नजरिए सामने आएं, हंगामा या विवाद हो तो भी समझ में आता है। लेकिन महज 35-40 साल पहले के कालखंड पर कोई फिल्मकार खुल कर इस डर से अपनी बात न कह सके कि सरकार क्या कहेगी, सैंसर बुरा न मान जाए, किसी कौम या पार्टी के बंदे न पीछे पड़ जाएं, तो इसे दुर्भाग्य ही कहा जाएगा।

ताजा मिसाल मधुर भंडारकर की फिल्म ‘इंदु सरकार’ है। 1975-77 के आपातकाल के दौरान इस देश ने काफी कुछ झेला। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और उनके सुपर पॉवरफुल बेटे संजय गांधी ने पूरे देश को अपनी मुठ्ठी में किया हुआ था। उस दौरान जो कुछ भी हुआ, वह कागजों में मौजूद है, उस दौर के कई लोग भी हमारे बीच हैं जिनका देखा और लिखा हुआ भी उपलब्ध है। उन उपलब्ध दस्तावेजों, यादों और पत्रकार राम बहादुर राय जैसे कई व्यक्तियों से मिली जानकारियों के बाद बनी इस फिल्म में उन 19-20 महीनों की कई सच्ची घटनाओं का जिक्र है लेकिन अगर फिल्म के शुरू में ही एक लंबा डिस्क्लेमर यह कह दे कि यह सब काल्पनिक है तो यकीन मानिए इसे दुर्भाग्य ही कहा जाएगा।

फिल्म में कहीं किसी चरित्र का असली नाम नहीं है। ऐसा ही शुजित सरकार की ‘मद्रास कैफे’ में भी था लेकिन यह फिल्म न तो उस जैसी शानदार बन पाई और न ही हार्ड-हिटिंग। मधुर ने इसमें आपातकाल की पृष्ठभूमि में एक औरत इंदु सरकार की निजी कहानी दिखाई है जिसके बहाने से वह उस दौर की कई महत्वपूर्ण घटनाओं को पिरोते चलते हैं। लेकिन जब मधुर किसी खास चीज को जरूरत से ज्यादा तवज्जो देते हैं और किसी को बस छू कर निकल जाते हैं तो साफ महसूस होता है कि उनकी नीयत सिनेमा के जरिए किसी एजेंडा को साधने की थी। एक फिल्मकार जब यूं किसी एक पक्ष की तरफ झुकने लगे तो यह सिनेमा का दुर्भाग्य ही कहा जाएगा।

कीर्ति कुल्हारी, तोता रॉय चौधरी, अनुपम खेर, शीबा चड्ढा, अंकुर विकल, जाकिर हुसैन जैसे सभी कलाकारों का काम प्रभावी रहा है। नील नितिन मुकेश बेहद असरदार रहे। फिल्म को लेकर किए गए शोध की झलक तो इसमें दिखती है लेकिन उसे रियल टच देने के लिए जिस डिटेलिंग की जरूरत थी उसमें काफी कमियां रह गईं। अपनी फिल्मों में अभी तक सिर्फ मुंबईया माहौल दिखाते रहे मधुर पहली बार बाहर निकले और दिल्ली पर केंद्रित कहानी चुनी लेकिन शूटिंग के लिए उन्हें फिर वही मुंबई ही मिला? फिल्म के सैट उनके रचे इस नकली माहौल की पोल खोलते हैं। यह बनावटीपन कहानी में भी झलकता है जब पर्दे पर होने वाला अत्याचार और बर्बरता आपके अंदर टीस जगाने या आपको मुट्ठियां भींचने पर मजबूर नहीं कर पाती। फिल्म में इमरजेंसी के दौर के कई चरित्र हैं लेकिन अगर आपने इतिहास नहीं पढ़ा है तो आप उन्हें पहचान नहीं पाते और न ही उनके साथ जुड़ पाते हैं। बतौर फिल्मकार मधुर इस फिल्म में मजबूर दिखे। हाथ में हथौड़ा हो और आप जोर से चोट मारने की बजाय बस ठकठका कर रह जाएं तो यह दुर्भाग्य ही है… आपका, हमारा, सिनेमा का, इस देश का।

अपनी रेटिंग-दो स्टार

Release Date-28 July, 2017

(दीपक दुआ फिल्म समीक्षक व पत्रकार हैं। 1993 से फिल्म-पत्रकारिता में सक्रिय। मिज़ाज से घुमक्कड़। ‘सिनेयात्रा डॉट कॉम’ (www.cineyatra.com) के अलावा विभिन्न समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, न्यूज पोर्टल आदि के लिए नियमित लिखने वाले दीपक ‘फिल्म क्रिटिक्स गिल्ड’ के सदस्य हैं और रेडियो व टी.वी. से भी जुड़े हुए हैं।)

Tags: anupam kheremergencyindira ghandhiindu sarkar reviewkirti kulharimadhur bhandarkarneil nitin mukeshsanjay gandhitota roy chowdhuryइंदु सरकार
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