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Home फिल्म/वेब रिव्यू

रिव्यू-पंचर कॉमेडी है ‘फुकरे रिटर्न्स’

Deepak Dua by Deepak Dua
2017/12/09
in फिल्म/वेब रिव्यू
0
रिव्यू-पंचर कॉमेडी है ‘फुकरे रिटर्न्स’
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-दीपक दुआ… (This Review is featured in IMDb Critics Reviews)

‘फुकरे’ लौट आए हैं। यूं तो पिछली फिल्म को आए करीब साढ़े चार साल बीत चुके हैं लेकिन ‘फुकरे रिटर्न्स’ के अंदर कहानी सिर्फ एक साल आगे खिसकी है। भोली पंजाबन जुगत लड़ा कर जेल से बाहर आ गई है और आते ही उसने इन फुकरों की नाक में दम कर दिया है। चूचा को अब लॉटरी वाला सपना नहीं बल्कि भविष्य में होने वाली कोई घटना दिखाई देने लगी है। लेकिन इस बार ये लोग भोली को नहीं बल्कि नेता बाबू लाल भाटिया को पाठ पढ़ाने में लगे हैं।

चूचा के साथ हर बार कुछ न कुछ अनोखा होता रहे और ये चारों किसी मुश्किल में पड़ कर निकलते रहें तो यकीन मानिए ‘फुकरे’ सीरिज़ की फिल्में शानदार, यादगार हो सकती हैं। लेकिन अपनी इस दूसरी ही कोशिश में इसे लिखने और बनाने वाले जिस कदर चूक गए हैं, उससे इस सीरिज़ का भविष्य चाहे जैसा हो, वर्तमान तो धुंधला ही दिख रहा है। ठोक-पीट कर जबरन सीक्वेल बनाया जाए तो ऐसा ही होता है।

ऐसा नहीं है कि फिल्म एकदम ही खोखली है। 2013 में आई ‘फुकरे’ अपने जिन तत्वों के दम पर हौले-हौले चलती हुई दर्शकों के दिलोदिमाग पर छा कर कामयाब कहलाई थी, वे सभी बातें उसके इस सीक्वेल में भी हैं। लेकिन दिक्कत यही है कि वैसी ही सारी बातें हैं, जो पिछली बार थीं और इस बार न तो ये बातें फ्रेश लग रही हैं और न दमदार। कहानी भी जबरन खिंची हुई लगती है।

चूचा के साथ हुई अनोखी घटना फिल्म शुरू होने के एक घंटे बाद सामने आती है। तब तक यह आपको इधर-उधर गलियों में घुमाती रहती है। और इसके बाद भी इसने कोई हाईवे नहीं पकड़ा है। ऊबड़-खाबड़ रास्ते पर लड़खड़ाती हुई यह आपको बराबर झटके देती है और अहसास कराती है कि इस कहानी का इंजन पुराना पड़ा चुका है, टायर घिस चुके हैं, भले ही ऊपर से रंग-रोगन शानदार किया गया हो। अरे, सिर्फ गैग्स और पंचेस पर ही हंसना हो तो टी.वी. के पकाऊ काॅमेडी शोज़ बुरे हैं क्या?

एक बड़ी कमी यह भी रही कि इस बार कहानी में सारे किरदारों को विस्तार नहीं दिया गया। पुलकित सम्राट इस बार केंद्र में दिखे ही नहीं। मनजोत सिंह, अली फ़ज़ल, विशाखा सिंह, प्रिया आनंद वगैरह की जरूरत ही महसूस नहीं करवाई गई। यहां तक कि पंडित जी और भोली पंजाबन का किरदार भी हल्का ही रहा। वो तो पंकज त्रिपाठी और ऋचा चड्ढा काबिल कलाकार हैं जो अपनी कोशिशों से अपने किरदारों को ऊपर ले गए। हां, नेता बाबू लाल का रोल इस बार काफी बड़ा रहा और राजीव गुप्ता ने उसे सधे हुए ढंग से निभाया भी। चूचा बने वरुण अपनी सीमित अदाओं के बावजूद पर्दे पर जब-जब दिखे, अच्छे लगे। अगर वह हास्य-श्रेणी में कोई अवार्ड भी ले उड़ें तो हैरानी नहीं होनी चाहिए।

बीफ, स्वैग, येल यूनिवर्सिटी, व्हाट्सऐप, कॉमनवैल्थ घोटाला वगैरह पर कमैंट करके फिल्म मौजूं होने का अहसास भले ही कराए लेकिन इसकी जरूरत से ज्यादा और जबरन खींची गई स्क्रिप्ट के साथ-साथ कॉमेडी उपजाने के लिए इस्तेमाल किए गए घिसे-पिटे तीर-तुक्के इसे एक औसत फिल्म का दर्जा ही देते हैं। इस बार तो म्यूजिक भी कमजोर रहा।

अगर इन फुकरों ने इसी तरह अधकचरे अंदाज में ही आना है तो बेहतर होगा कि इनसे कहा जाए-भैया, तुम यहीं से रिटर्न हो लो। तुम अपने घर में खुश रहो और हम अपने घर में पिछली वाली ‘फुकरे’ देख कर खुश हो लेंगे।

अपनी रेटिंग-दो स्टार

Release Date-08 December, 2017

(दीपक दुआ फिल्म समीक्षक व पत्रकार हैं। 1993 से फिल्म–पत्रकारिता में सक्रिय। मिज़ाज से घुमक्कड़। ‘सिनेयात्रा डॉट कॉम’ (www.cineyatra.com) के अलावा विभिन्न समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, न्यूज पोर्टल आदि के लिए नियमित लिखने वाले दीपक ‘फिल्म क्रिटिक्स गिल्ड’ के सदस्य हैं और रेडियो व टी.वी. से भी जुड़े हुए हैं।)

Tags: Ali Fazalexcel entertainmentfukrey returns reviewmanjot singhmrighdeep singh lambapankaj tripathipriya anandpulkit samratrajeev guptaricha chaddavarun sharmavishakha singh
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