-दीपक दुआ… (This review is featured in IMDb Critics Reviews)
बतौर डायरेक्टर अभिषेक कपूर की पहली फिल्म ‘आर्यन’ को छोड़ दें तो अपनी बाकी दोनों फिल्मों-‘रॉक ऑन’ और ‘काय पो चे’ से उन्होंने अपनी इमेज एक सेंसिबल निर्देशक की तो बनाई ही है। इस फिल्म में भी वह अपनी उस समझदारी को दिखाते हैं और कुछ दृश्यों में बेहद मैच्योर और सधे हुए निर्देशन का नमूना भी पेश करते हैं। लेकिन यह सब कुछ दृश्यों तक ही सीमित है। यहां यह भी कह सकते हैं कि खुद को अति समझदार, अति मैच्योर और अति आर्टिस्टिक दिखाने के फेर में अभिषेक फिल्म का नुकसान कर बैठे। आखिर, अति तो हर चीज की बुरी होती है न!
चार्ल्स डिंकेंस के लिखे ‘ग्रेट एक्सपैक्टेशंस’ की कहानी को श्रीनगर की पृष्ठभूमि में डालती यह फिल्म विशाल भारद्वाज की ‘हैदर’ की याद दिलाती है लेकिन यह उस जैसी नहीं है। वह फिल्म जहां राजनीतिक-सामाजिक हालात को दिखा रही थी वहीं यह सिर्फ उसकी बात भर कर के रह जाती है। यहां ज्यादा फोकस लव-स्टोरी पर है। लेकिन इस लव-स्टोरी में तड़प और कसक की कमी साफ झलकती है। कहानी का बहाव कभी ठहरा तो कभी उलझा हुआ होने से इसे समझने के लिए अतिक्ति ज़ोर लगाना पड़ता है। अंत में जब परतें खुलती हैं तो कुछ और ही फितूर सामने आता है, हालांकि वह अच्छा लगता है।
कैटरीना कैफ और आदित्य रॉय कपूर का काम साधारण से ऊपर नहीं उठ पाया है तो इसकी वजह है उनके किरदारों का पूरी शिद्दत से न लिखा जाना । कैटरीना तो इस रोल के लिए मिसफिट दिखती हैं। अजय देवगन और उनका किरदार फिल्म में न भी होते तो भी कोई फर्क नहीं पड़ना था। सही मायने में यह फिल्म तब्बू की है। उनके किरदार और उनकी अदाकारी की है। इसके अलावा कश्मीर की खूबसूरती को और ज़्यादा निखार कर दिखाती है यह फिल्म। चंद कमाल के दृश्यों के साथ-साथ कश्मीर और तब्बू के लिए इसे एक बार, सिर्फ एक ही बार देखा जा सकता है।
अपनी रेटिंग-ढाई स्टार
(नोट-इस फिल्म की रिलीज़ के समय मेरा यह रिव्यू किसी अन्य पोर्टल पर छपा था)
Release Date-12 February, 2016
(दीपक दुआ फिल्म समीक्षक व पत्रकार हैं। 1993 से फिल्म-पत्रकारिता में सक्रिय। मिज़ाज से घुमक्कड़। ‘सिनेयात्रा डॉट कॉम’ (www.cineyatra.com) के अलावा विभिन्न समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, न्यूज पोर्टल आदि के लिए नियमित लिखने वाले दीपक ‘फिल्म क्रिटिक्स गिल्ड’ के सदस्य हैं और रेडियो व टी.वी. से भी जुड़े हुए हैं।)