-दीपक दुआ… (This review is featured in IMDb Critics Reviews)
दक्षिण भारतीय भाषाओं में बनने वाली शानदार और सफल फिल्मों को हिन्दी में बना कर लाने का चलन तो अब काफी पुराना और पॉपुलर हो चुका है लेकिन वहां की फिल्मों को उनके ओरिजनल अंदाज में हिन्दी में डब करके लाने का चलन कभी जोर पकड़ ही नहीं पाया। ‘रोजा’, ‘हम से है मुकाबला’, ‘सपने’ और ‘रोबोट’ के अलावा कोई बड़ा नाम झट से याद नहीं आता है तो इसकी वजह है वहां की फिल्मों में ऐसे कलाकारों की मौजूदगी जो हिन्दी के बाज़ार में बिकाऊ नहीं माने जाते। ऐसे में तेलुगू की ‘ईगा’ का अपनी रिलीज़ के तीन ही महीने में ‘मक्खी’ के रूप में डब होकर यहां आना सुखद भी है और आश्चर्यजनक भी।
नए विचारों और उम्दा कहानियों के ज़बर्दस्त अकाल से जूझ रहे हिन्दी सिनेमा को ‘मक्खी’ जैसी फिल्में तगड़ा सबक दे सकती हैं। फिल्म की कहानी देखिए कितनी साधारण है। एक हीरो है, एक हीरोइन। हीरो की दो साल की मेहनत और इंतज़ार के बाद आखिर हीरोइन उससे प्यार करने लगती है। लेकिन तब तक वह कामुक और अमीर विलेन की नज़रों में भी चढ़ चुकी है। जालिम विलेन अपना रास्ता साफ करने के लिए हीरो को मार देता है और हीरोइन को इस बात का पता भी नहीं। लेकिन दस ही दिन में हीरो का पुनर्जन्म होता है-एक मक्खी के रूप में। और बस, यहीं से कहानी एक ऐसा दिलचस्प मोड़ लेती है कि आप न तो कुर्सी से हिल पाते हैं और न ही अपनी नज़रें पर्दे पर से हिला पाते हैं। कहां एक छोटी-सी मक्खी और कहां एक अमीर, ताकतवर, क्रूर इंसान। कैसे यह मक्खी उस लड़की को अपनी वापसी का अहसास कराती है, कैसे ये दोनों मिल कर खलनायक को बाकायदा चुनौती देकर मारते हैं, यह सब इस कदर रोचक और तार्किक ढंग से दिखाया गया है कि इस कहानी को सोचने और उस पर स्क्रिप्ट लिखने वालों की बुद्धि की दाद दी जा सकती है। कोई हैरानी नहीं होती जब आप पर्दे पर इस विचार को सोचने वाले के साथ-साथ ‘स्क्रिप्ट डॉक्टर’ तक का नाम भी पढ़ते हैं।
फिल्म की खासियत इसका सशक्त कंटेंट तो है ही, एस.एस. राजामौली का सधा हुआ निर्देशन भी है। पर्दे पर जो हो रहा है वह असल में संभव नहीं है लेकिन जिस तरह से हो रहा है, वह असंभव भी नहीं दिखता। यही इस कहानी की सफलता है कि वह अतार्किक को तार्किक और असंभव को संभव बना कर दिखाती है। असल में सिनेमा की सार्थकता दिखाती है यह फिल्म, सिनेमा के होने को जायज ठहराती है यह।
फिल्म के हीरो नानी और हीरोइन सामंथा का तो हिन्दी वालों ने नाम भी नहीं सुना होगा। सिर्फ खलनायक बने सुदीप को ही दो-एक बार देखा गया है। सभी का अभिनय कमाल का है। सामंथा को हिन्दी फिल्मों में ऑफर मिलने चाहिएं। म्यूजिक साधारण रहा है। स्पेशल इफेक्ट्स बेमिसाल हैं और इसलिए ज़्यादा अच्छे लगते हैं कि उनमें बनावटीपन नहीं झलकता। थोड़ी-सी दक्षिण भारतीय महक ज़रूर है इस फिल्म में लेकिन यह पूरी तरह से एक ऐसी मनोरंजक फिल्म है जिसे बच्चों और परिवार के साथ बार-बार एन्जॉय किया जा सकता है। इस मक्खी को ‘हिट’ मत कीजिए, इसे जरूर देखिए और हिट कीजिए।
अपनी रेटिंग-चार स्टार
(नोट-इस फिल्म की रिलीज़ के समय मेरा यह रिव्यू किसी अन्य पोर्टल पर छपा था)
Release Date-12 October, 2012
(दीपक दुआ फिल्म समीक्षक व पत्रकार हैं। 1993 से फिल्म–पत्रकारिता में सक्रिय। मिज़ाज से घुमक्कड़। ‘सिनेयात्रा डॉट कॉम’ (www.cineyatra.com) के अलावा विभिन्न समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, न्यूज पोर्टल आदि के लिए नियमित लिखने वाले दीपक ‘फिल्म क्रिटिक्स गिल्ड’ के सदस्य हैं और रेडियो व टी.वी. से भी जुड़े हुए हैं।)