• Home
  • Film Review
  • Book Review
  • Yatra
  • Yaden
  • Vividh
  • About Us
CineYatra
Advertisement
  • होम
  • फिल्म/वेब रिव्यू
  • बुक-रिव्यू
  • यात्रा
  • यादें
  • विविध
  • हमारे बारे में
No Result
View All Result
  • होम
  • फिल्म/वेब रिव्यू
  • बुक-रिव्यू
  • यात्रा
  • यादें
  • विविध
  • हमारे बारे में
No Result
View All Result
CineYatra
No Result
View All Result
ADVERTISEMENT
Home फिल्म/वेब रिव्यू

रिव्यू-जब कहानी ‘चोक्ड’ हो और कुछ न बोले

Deepak Dua by Deepak Dua
2020/06/14
in फिल्म/वेब रिव्यू
0
रिव्यू-जब कहानी ‘चोक्ड’ हो और कुछ न बोले
Share on FacebookShare on TwitterShare on Whatsapp

-दीपक दुआ… (This review is featured in IMDb Critics Reviews)
मुंबई। पति बेरोज़गार संगीतकार। गाना छोड़ चुकी पत्नी बैंक की नौकरी से घर चला रही है। एक बच्चा। हालत तंग, आमदनी सीमित, प्यार गायब। किचन की नाली बार-बार चोक हो जाती है। एक रात उस नाली में से नोटों के बंडल निकलते हैं। अगली रात फिर। पत्नी खुश। पर कुछ ही दिन में सरकार नोटबंदी लागू कर देती है। पुराने नोट अब नहीं चलेंगे। अब क्या हो? किस के हैं ये नोट? क्या होगा लोगों का, नोटों का, इस परिवार का?

कहानी का प्लॉट दिलचस्प है। होना भी चाहिए। नोटबंदी के बैकड्रॉप पर एक पति-पत्नी के, पड़ोसियों के, समाज के आपसी रिश्तों पर बात जो हो रही है। लेकिन दिक्कत यह है कि प्लॉट से उठ कर यह दिलचस्पी उस इमारत तक नहीं पहुंच पाती जिसे इस कहानी की ज़मीन पर खड़ा किया गया है। वजह…? वजह है इसे लिखने वालों की, इसे बनाने वालों की सोच में जमा वे उलझनें जो उन्हें यही स्पष्ट नहीं होने देतीं कि उन्हें कहना क्या है, किस तरह से कहना है और इस ‘कहने’ में क्या-क्या शामिल रखना है।

कहानी में काफी सारे अलग-अलग हिस्से हैं। सरिता और सुशांत के आपसी रिश्तों की तनातनी है। सरिता एक बार स्टेज पर गाते-गाते ‘चोक्ड’ हो गई थी, उसके भीतर वह डर अभी तक बाकी है। सुशांत की अपने पार्टनर से तनातनी है। सुशांत किसी रेड्डी से उधार लिए बैठा है, उसका चैप्टर अलग है। ऊपर वाले फ्लैट से आते नोटों का अलग मामला है। पड़ोसियों के साथ अलग जुगलबंदी चल रही है। नोटबंदी के बाद आए बदलावों की अपनी अलग कहानी है। लेकिन यह फिल्म इन तमाम हिस्सों को रोचकता के ताने-बाने में नहीं बुन पाती। रेड्डी वाला पूरा हिस्सा जबरन ठूंसा हुआ लगता है तो वहीं बाकी के हिस्सों में भी दोहराव और ज़बर्दस्ती नज़र आती है। नोटबंदी के दिनों में सामने आए समाज के अलग-अलग वर्गों की सोच को एक-दो बार दिखाने-सुनाने के अलावा यह फिल्म कोई हार्ड-हिटिंग बात भी नहीं करती। इस किस्म की फिल्म गहरी सोच, करारा व्यंग्य, तगड़ा हास्य, पैना थ्रिल ला सकती थी लेकिन इसमें ऐसा कुछ नहीं है।

निहित भावे के लेखन में ज़बर्दस्त उलझाव है। साफ लगता है कि उन्होंने काफी कुछ इस कहानी में ज़ोर लगा कर घुसाया है। फिल्म के सभी किरदार आम लोग हैं लेकिन सब के सब लालची, स्वार्थी, सिर्फ अपनी सोचने वाले। हर कोई दूसरे से बस दगा कर रहा है। पूरी फिल्म पर एक अजीब किस्म की नकारत्मकता छाई है जो देखने वालों को उदास करती है जबकि इस किस्म की कहानी से उम्मीद इसके ठीक उलट होती है। रही बात निर्देशन की तो अनुराग कश्यप जैसा नामी निर्देशक इस तरह की कहानी कहे, यह तो स्वाभाविक है लेकिन उसे इस तरह से कहे, यह गले से नहीं उतरता। पूरी फिल्म में कहीं भी ‘अनुराग कश्यप वाला टच’ नज़र नहीं आता। किसी असिस्टैंट से तो नहीं बनवा दी यह फिल्म?

सैयामी खेर, रोशन मैथ्यू, अमृता सुभाष, उपेंद्र लिमये, तुषार दलवी जैसे कलाकारों की सधी हुई एक्टिंग ही फिल्म को सहारा देती है। काफी सारे मराठी संवादों का इस्तेमाल इसे गैर-मराठी दर्शकों से दूर ले जाता है। एकदम निठल्ले बैठे हों, कमाने-धमाने की फिक्र न हो तो नेटफ्लिक्स पर आई इस फिल्म ‘चोक्ड-पैसा बोलता है’को देख सकते हैं।

(रेटिंग की ज़रूरत ही क्या है? रिव्यू पढ़िए और फैसला कीजिए कि फिल्म कितनी अच्छी या खराब है। और हां, इस रिव्यू पर अपने विचार ज़रूर बताएं।)

Release Date-05 June, 2020

(दीपक दुआ फिल्म समीक्षक व पत्रकार हैं। 1993 से फिल्म-पत्रकारिता में सक्रिय। मिज़ाज से घुमक्कड़। ‘सिनेयात्रा डॉट कॉम’ (www.cineyatra.com) के अलावा विभिन्न समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, न्यूज पोर्टल आदि के लिए नियमित लिखने वाले दीपक ‘फिल्म क्रिटिक्स गिल्ड’ के सदस्य हैं और रेडियो व टी.वी. से भी जुड़े हुए हैं।)

Tags: amruta subhashAnurag Kashyapchoked reviewNetflixnihit bhaveroshan mathewsaiyami kherupendra limaye
ADVERTISEMENT
Previous Post

रिव्यू-नमक नींबू की कमी से नीरस होती ‘गुलाबो सिताबो’

Next Post

रिव्यू-धीमे-धीमे कदम बढ़ाती ‘भोंसले’

Related Posts

रिव्यू-‘चोर निकल के भागा’ नहीं, चल कर गया
CineYatra

रिव्यू-‘चोर निकल के भागा’ नहीं, चल कर गया

रिव्यू-कहानी ‘कंजूस’ मनोरंजन ‘मक्खीचूस’
CineYatra

रिव्यू-कहानी ‘कंजूस’ मनोरंजन ‘मक्खीचूस’

वेब-रिव्यू : फिर ऊंची उड़ान भरते ‘रॉकेट बॉयज़ 2’
CineYatra

वेब-रिव्यू : फिर ऊंची उड़ान भरते ‘रॉकेट बॉयज़ 2’

वेब-रिव्यू : किस का पाप है ‘पॉप कौन’…?
CineYatra

वेब-रिव्यू : किस का पाप है ‘पॉप कौन’…?

रिव्यू-दमदार नहीं है ‘मिसेज़ चटर्जी वर्सेस नॉर्वे’ का केस
फिल्म/वेब रिव्यू

रिव्यू-दमदार नहीं है ‘मिसेज़ चटर्जी वर्सेस नॉर्वे’ का केस

रिव्यू-रंगीन चश्मा लगा कर देखिए ‘तू झूठी मैं मक्कार’
फिल्म/वेब रिव्यू

रिव्यू-रंगीन चश्मा लगा कर देखिए ‘तू झूठी मैं मक्कार’

Next Post
रिव्यू-धीमे-धीमे कदम बढ़ाती ‘भोंसले’

रिव्यू-धीमे-धीमे कदम बढ़ाती ‘भोंसले’

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

  • होम
  • फिल्म/वेब रिव्यू
  • बुक-रिव्यू
  • यात्रा
  • यादें
  • विविध
  • हमारे बारे में
संपर्क – [email protected]

© 2021 CineYatra - Design & Developed By Beat of Life Entertainment.

No Result
View All Result
  • होम
  • फिल्म/वेब रिव्यू
  • बुक-रिव्यू
  • यात्रा
  • यादें
  • विविध
  • हमारे बारे में

© 2021 CineYatra - Design & Developed By Beat of Life Entertainment.